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साल 2018 : जूझती रहीं भारतीय हॉकी टीमें, नहीं रच पाई इतिहास
नई दिल्ली। इस साल भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमों के लिए विश्व पटल पर छाप छोडऩे के कई बड़े अवसर थे लेकिन अपने खेमे के बदलते माहौल से जूझती दोनों टीमें ऐसा कर पाने में नाकाम रही। इस साल पांच बड़े टूर्नामेंट-राष्ट्रमंडल खेल, एशियाई खेल, चैम्पियंस ट्रॉफी, एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी और विश्व कप का आयोजन हुआ लेकिन इन आयोजनों में भारतीय टीमें (महिला एवं पुरुष) स्वर्णिम इतिहास को बनाने में नाकाम रहीं।
साल की शुरुआत भारतीय पुरुष टीम के लिए सबसे अहम टूर्नामेंट सुल्तान अजलान शाह कप के साथ हुई थी और वह अच्छी शुरुआत कर सकती थी लेकिन प्रदर्शन को लेकर उसके उतार-चढ़ाव की झलक इसी टूर्नामेंट में ही नजर आ गई, जिसमें उसे छठा स्थान हासिल हुआ और टीम बिना कप के घर लौटी। राष्ट्रमंडल खेलों जैसे बड़े टूर्नामेंट की बात की जाए, तो ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित हुए इस टूर्नामेंट में दोनों ही टीमें ग्रुप स्तर पर अच्छे प्रदर्शन और खिताबी जीत की प्रबल दावेदार माने जाने के बावजूद पदक हासिल करने में असफल रहीं।
महिला टीम को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। उसके पास कांस्य पदक हासिल करने का अच्छा मौका था लेकिन वह इसमें नाकाम रही। पुरुष टीम भी कांस्य पदक से चूक कर चौथे स्थान पर रही। एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी में महिला टीमों ने अपनी साख को बचाने के लिए खेल में सुधार किया और रजत पदक अपने नाम किया लेकिन स्वर्ण पदक की चाह अधूरी रह गई। पुरुष टीम को इस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक मिला, लेकिन वह उसकी किस्मत थी।
फाइनल मैच बारिश के कारण रद्द हो गया और ऐसे में भारत और पाकिस्तान को संयुक्त रूप से खिताबी विजेता घोषित कर दिया गया। भारतीय पुरुष टीम के लिए इस साल आखिरी बार आयोजित हुए चैम्पियंस ट्रॉफी में अपने कौशल का सिक्का चमकाने का मौका था लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के आगे उसका कौशल फीका पड़ गया और उसे रजत पदक से संतोष करना पड़ा और आखिरी चैम्पियंस ट्रॉफी वल्र्ड नम्बर-1 टीम ऑस्ट्रेलिया के साथ चली गई।
महिला हॉकी टीम के लिए एशियाई खेलों से पहले सबसे बड़ा मौका था लंदन में हुआ हॉकी विश्व कप टूर्नामेंट लेकिन इस टूर्नामेंट में उसके खेल की कमी साफ तौर पर नजर आई। भारतीय महिला टीम को विश्व कप में आठवां स्थान हासिल हुआ। चैम्पियंस ट्रॉफी के खिताब से चूकी पुरुष टीम और विश्व कप में खराब प्रदर्शन से आलोचनाएं बटोरने वाली महिला टीम का अगला पड़ाव एशियाई खेल था, जहां दोनों अपनी खराब किस्मत को फिर से चमका सकती थीं।
महिला टीम ने जहां इसमें मेहनत करते हुए रजत पदक हासिल किया, वहीं पुरुष टीम को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। भारतीय महिला टीम के लिए एशियाई खेलों के बाद बड़े टूर्नामेंट का दौरा समाप्त हो गया लेकिन पुरुष टीम के पास अब भी एक मौका था। अपने गढ़ ओडिशा में आयोजित हुए पुरुष हॉकी विश्व कप के खिताब से साल का शानदार समापन करने का।
साल की शुरुआत भारतीय पुरुष टीम के लिए सबसे अहम टूर्नामेंट सुल्तान अजलान शाह कप के साथ हुई थी और वह अच्छी शुरुआत कर सकती थी लेकिन प्रदर्शन को लेकर उसके उतार-चढ़ाव की झलक इसी टूर्नामेंट में ही नजर आ गई, जिसमें उसे छठा स्थान हासिल हुआ और टीम बिना कप के घर लौटी। राष्ट्रमंडल खेलों जैसे बड़े टूर्नामेंट की बात की जाए, तो ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में आयोजित हुए इस टूर्नामेंट में दोनों ही टीमें ग्रुप स्तर पर अच्छे प्रदर्शन और खिताबी जीत की प्रबल दावेदार माने जाने के बावजूद पदक हासिल करने में असफल रहीं।
महिला टीम को चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। उसके पास कांस्य पदक हासिल करने का अच्छा मौका था लेकिन वह इसमें नाकाम रही। पुरुष टीम भी कांस्य पदक से चूक कर चौथे स्थान पर रही। एशियाई चैम्पियंस ट्रॉफी में महिला टीमों ने अपनी साख को बचाने के लिए खेल में सुधार किया और रजत पदक अपने नाम किया लेकिन स्वर्ण पदक की चाह अधूरी रह गई। पुरुष टीम को इस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक मिला, लेकिन वह उसकी किस्मत थी।
फाइनल मैच बारिश के कारण रद्द हो गया और ऐसे में भारत और पाकिस्तान को संयुक्त रूप से खिताबी विजेता घोषित कर दिया गया। भारतीय पुरुष टीम के लिए इस साल आखिरी बार आयोजित हुए चैम्पियंस ट्रॉफी में अपने कौशल का सिक्का चमकाने का मौका था लेकिन ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के आगे उसका कौशल फीका पड़ गया और उसे रजत पदक से संतोष करना पड़ा और आखिरी चैम्पियंस ट्रॉफी वल्र्ड नम्बर-1 टीम ऑस्ट्रेलिया के साथ चली गई।
महिला हॉकी टीम के लिए एशियाई खेलों से पहले सबसे बड़ा मौका था लंदन में हुआ हॉकी विश्व कप टूर्नामेंट लेकिन इस टूर्नामेंट में उसके खेल की कमी साफ तौर पर नजर आई। भारतीय महिला टीम को विश्व कप में आठवां स्थान हासिल हुआ। चैम्पियंस ट्रॉफी के खिताब से चूकी पुरुष टीम और विश्व कप में खराब प्रदर्शन से आलोचनाएं बटोरने वाली महिला टीम का अगला पड़ाव एशियाई खेल था, जहां दोनों अपनी खराब किस्मत को फिर से चमका सकती थीं।
महिला टीम ने जहां इसमें मेहनत करते हुए रजत पदक हासिल किया, वहीं पुरुष टीम को कांस्य पदक से ही संतोष करना पड़ा। भारतीय महिला टीम के लिए एशियाई खेलों के बाद बड़े टूर्नामेंट का दौरा समाप्त हो गया लेकिन पुरुष टीम के पास अब भी एक मौका था। अपने गढ़ ओडिशा में आयोजित हुए पुरुष हॉकी विश्व कप के खिताब से साल का शानदार समापन करने का।
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