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हॉकी में भारत के लिए मिला-जुला रहा 2017, एशिया में वर्चस्व कायम
यूरोप दौरे में भारत की महिला और पुरुष हॉकी टीम का प्रदर्शन अच्छा था।
इसके बाद दोनों टीमें ऑस्ट्रेलिया हॉकी लीग खेलने पहुंची। हालांकि, इससे
पहले दोनों टीमों के कोच से जुड़े विवाद ने माहौल गर्म कर दिया था। रोलेंट
ओल्टमैंस को 2020 टोक्यो ओलम्पिक तक पुरुष टीम के कोच पद की जिम्मेदारी दी
गई थी, लेकिन दस माह बाद ही उन्हें इस पद से हटाकर महिला टीम के कोच शुअर्ड
मरेन को नया कोच नियुक्त कर दिया गया, वहीं जूनियर विश्व कप विजेता टीम
कोच हरेंद्र सिंह को महिला टीम का कोच नियुक्त किया।
हरेंद्र को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें पुरुष टीम की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अचानक से मरेन को पुरुष टीम का कोच बना दिया गया। इस बदलाव के बाद अपने नए कोचों के मार्गदर्शन में महिला और पुरुष टीमें ऑस्ट्रेलिया हॉकी लीग का हिस्सा बनीं। हालांकि, दोनों टीमों के प्रदर्शन में उम्मीद के मुताबिक सुधार नहीं हुआ। महिला टीम इस लीग में केवल ग्रुप स्तर तक के ही मैच खेल सकी, वहीं पुरुष टीम ने इस लीग में मिला-जुला प्रदर्शन किया।
साल के अंत में पहुंचने तक महिला और पुरुष टीमें अपनी लय में आती नजर आईं। दोनों टीमों ने एशिया कप अपने नाम किया, जो दोनों टीमों की इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि भी साबित हुई। महिला टीम ने एशिया कप टूर्नामेंट में खिताबी जीत हासिल कर न केवल 13 साल के सूखे को खत्म किया, बल्कि अगले साल विश्व कप में अपना स्थान पक्का कर लिया। इसके अलावा, विश्व रैंकिंग में स्पेन को पछाड़ते हुए भारतीय महिला टीम शीर्ष-10 टीमों की सूची में भी शुमार हो गई। वह दो स्थान ऊपर उठते हुए 12वें से 10वें स्थान पर पहुंच गई।
भारतीय पुरुष टीम ने भी हीरो एशिया कप टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर तीसरी बार खिताबी जीत हासिल की। इससे पहले, उसने 2003 में कुआलालम्पुर और 2007 में चेन्नई में इस टूर्नामेंट को जीता था। साल के आखिरी महीने में भारत के भुवनेश्वर शहर ने पुरुष हॉकी वल्र्ड लीग फाइनल्स की मेजबानी की। इस लीग में भारतीय टीम का प्रदर्शन न केवल देखने लायक, बल्कि सराहना के काबिल भी रहा।
भारतीय पुरुष टीम भले ही इसमें खिताबी जीत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उन्होंने जर्मनी को 2-1 से मात देकर कांस्य पदक जीता। साल का अंत जीत के साथ करने के साथ ही अगले साल में टीम की कोशिश इसी प्रदर्शन को बरकरार रखने की होगी। दोनों टीमों के कोच जानते हैं कि हॉकी के लिए अगला साल महत्वपूर्ण है और टीमें अच्छा प्रदर्शन करेंगी।
हरेंद्र को पूरी उम्मीद थी कि उन्हें पुरुष टीम की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अचानक से मरेन को पुरुष टीम का कोच बना दिया गया। इस बदलाव के बाद अपने नए कोचों के मार्गदर्शन में महिला और पुरुष टीमें ऑस्ट्रेलिया हॉकी लीग का हिस्सा बनीं। हालांकि, दोनों टीमों के प्रदर्शन में उम्मीद के मुताबिक सुधार नहीं हुआ। महिला टीम इस लीग में केवल ग्रुप स्तर तक के ही मैच खेल सकी, वहीं पुरुष टीम ने इस लीग में मिला-जुला प्रदर्शन किया।
साल के अंत में पहुंचने तक महिला और पुरुष टीमें अपनी लय में आती नजर आईं। दोनों टीमों ने एशिया कप अपने नाम किया, जो दोनों टीमों की इस साल की सबसे बड़ी उपलब्धि भी साबित हुई। महिला टीम ने एशिया कप टूर्नामेंट में खिताबी जीत हासिल कर न केवल 13 साल के सूखे को खत्म किया, बल्कि अगले साल विश्व कप में अपना स्थान पक्का कर लिया। इसके अलावा, विश्व रैंकिंग में स्पेन को पछाड़ते हुए भारतीय महिला टीम शीर्ष-10 टीमों की सूची में भी शुमार हो गई। वह दो स्थान ऊपर उठते हुए 12वें से 10वें स्थान पर पहुंच गई।
भारतीय पुरुष टीम ने भी हीरो एशिया कप टूर्नामेंट में शानदार प्रदर्शन कर तीसरी बार खिताबी जीत हासिल की। इससे पहले, उसने 2003 में कुआलालम्पुर और 2007 में चेन्नई में इस टूर्नामेंट को जीता था। साल के आखिरी महीने में भारत के भुवनेश्वर शहर ने पुरुष हॉकी वल्र्ड लीग फाइनल्स की मेजबानी की। इस लीग में भारतीय टीम का प्रदर्शन न केवल देखने लायक, बल्कि सराहना के काबिल भी रहा।
भारतीय पुरुष टीम भले ही इसमें खिताबी जीत हासिल नहीं कर पाई, लेकिन उन्होंने जर्मनी को 2-1 से मात देकर कांस्य पदक जीता। साल का अंत जीत के साथ करने के साथ ही अगले साल में टीम की कोशिश इसी प्रदर्शन को बरकरार रखने की होगी। दोनों टीमों के कोच जानते हैं कि हॉकी के लिए अगला साल महत्वपूर्ण है और टीमें अच्छा प्रदर्शन करेंगी।
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