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फिलेंडर ने कम समय में ही छोड़ी बड़ी छाप, कौन भरेगा उनकी जगह? पढ़ें...
समय के साथ उनकी तेजी और कम होती गई और विकेट लेने की क्षमता भी। अपने टेस्ट
करियर की आखिरी 18 पारियों में फिलेंडर एक बार भी पांच या उससे ज्यादा विकेट नहीं ले पाए। सेंचुरियन में इंग्लैंड के खिलाफ इसी सीरीज के मैच में फिलेंडर ने पहली पारी में चार विकेट लिए थे, लेकिन दूसरी पारी में खाली हाथ लौटे थे। आखिरी टेस्ट भी उनका यादगार नहीं रहा। पहली पारी दो विकेट लेने के बाद दूसरी पारी में वे सिर्फ 1.3 ओवरों ही फेंकने के बाद चोटिल होने के कारण मैदान छोड़ गए।
34 साल के फिलेंडर जानते थे कि उनका शरीर अब साथ नहीं दे रहा है और इसलिए वे अलविदा कह गए और अपने पीछे सवाल भी छोड़ गए कि अब कौन आएगा, क्योंकि कम तेजी और बाउंस के बाद भी फिलेंडर प्रभावी रहे और लगातार बल्लेबाजों के लिए परेशानी पैदा करते रहे। इसे खासियत ही कहा जाएगा और अब क्या इस खासियत जैसा कोई और दक्षिण अफ्रीका में आएगा? यह सवाल उनसे पूछा भी गया कि क्या उन्हें इस बात की चिंता है कि उनके जैसा कोई दूसरा आएगा? क्रिकबज ने फिलेंडर के हवाले से लिखा है, मैं यह नहीं कहूंगा कि यह गायब हो रहा है।
हमें सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम आगे गेंद करते रहें और हमेशा तेजी की चिंता न करें। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि हम गेंद को स्विंग कर सकें, क्योंकि खेल की यही संपत्ति है जो आपको एक दिन महान गेंदबाज बनाएगी। हमें बस ध्यान रखना है कि यह स्कील्स बनी रहें। सीनियर खिलाडिय़ों को यह युवाओं तक पहुंचाना होगा।
यह कितना आसान होगा और वक्त बताएगा और क्योंकि हर किसी की अपनी खासियत होती है और फिलेंडर की खासियत निश्चित तौर पर तेजी-बाउंस नहीं थी, बल्कि सटीकता, स्विंग और बेहतरीन टप्पा थी और इनके साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेज गेंदबाज के लिए अपने आप को प्रभाव रखना हमेशा चुनौती भरा रहा है।
करियर की आखिरी 18 पारियों में फिलेंडर एक बार भी पांच या उससे ज्यादा विकेट नहीं ले पाए। सेंचुरियन में इंग्लैंड के खिलाफ इसी सीरीज के मैच में फिलेंडर ने पहली पारी में चार विकेट लिए थे, लेकिन दूसरी पारी में खाली हाथ लौटे थे। आखिरी टेस्ट भी उनका यादगार नहीं रहा। पहली पारी दो विकेट लेने के बाद दूसरी पारी में वे सिर्फ 1.3 ओवरों ही फेंकने के बाद चोटिल होने के कारण मैदान छोड़ गए।
34 साल के फिलेंडर जानते थे कि उनका शरीर अब साथ नहीं दे रहा है और इसलिए वे अलविदा कह गए और अपने पीछे सवाल भी छोड़ गए कि अब कौन आएगा, क्योंकि कम तेजी और बाउंस के बाद भी फिलेंडर प्रभावी रहे और लगातार बल्लेबाजों के लिए परेशानी पैदा करते रहे। इसे खासियत ही कहा जाएगा और अब क्या इस खासियत जैसा कोई और दक्षिण अफ्रीका में आएगा? यह सवाल उनसे पूछा भी गया कि क्या उन्हें इस बात की चिंता है कि उनके जैसा कोई दूसरा आएगा? क्रिकबज ने फिलेंडर के हवाले से लिखा है, मैं यह नहीं कहूंगा कि यह गायब हो रहा है।
हमें सिर्फ इस बात का ध्यान रखना होगा कि हम आगे गेंद करते रहें और हमेशा तेजी की चिंता न करें। हमें इस बात को सुनिश्चित करना होगा कि हम गेंद को स्विंग कर सकें, क्योंकि खेल की यही संपत्ति है जो आपको एक दिन महान गेंदबाज बनाएगी। हमें बस ध्यान रखना है कि यह स्कील्स बनी रहें। सीनियर खिलाडिय़ों को यह युवाओं तक पहुंचाना होगा।
यह कितना आसान होगा और वक्त बताएगा और क्योंकि हर किसी की अपनी खासियत होती है और फिलेंडर की खासियत निश्चित तौर पर तेजी-बाउंस नहीं थी, बल्कि सटीकता, स्विंग और बेहतरीन टप्पा थी और इनके साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेज गेंदबाज के लिए अपने आप को प्रभाव रखना हमेशा चुनौती भरा रहा है।
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