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फिलेंडर ने कम समय में ही छोड़ी बड़ी छाप, कौन भरेगा उनकी जगह? पढ़ें...
नई दिल्ली। दक्षिण अफ्रीका ने जोहानसबर्ग के द वांडरर्स स्टेडियम में इंग्लैंड के खिलाफ 24 से 27 जनवरी तक चार मैचों की टेस्ट सीरीज का आखिरी मैच खेला और यह मैच दक्षिण अफ्रीका तेज गेंदबाज वर्नोन फिलेंडर का आखिरी अंतरराष्ट्रीय मैच भी रहा। फिलेंडर ने सीरीज से पहले ही कह दिया था कि इसके बाद वे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को अलविदा कह देंगे।
साल 2007 में वनडे और टी20 पदार्पण करने वाले फिलेंडर ने साल 2011 में अपना पहला टेस्ट मैच खेला और समय के साथ वे दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के नियमित गेंदबाज बने, जबकि सीमित ओवरों में वे ज्यादा नहीं खेले। अपने देश के लिए उन्होंने सिर्फ 30 वनडे और सात टी20 मैच खेले। टेस्ट में उनका मैचों का आकंड़ा 64 का है। टेस्ट में उनके 224, वनडे में 41 और टी20 में 4 विकेट रहे। कम समय, लेकिन छाप इतनी बड़ी कि जिसे भर पाना अब दक्षिण अफ्रीका के लिए लगभग नामुमकिन-सा है।
वो भी उस दौर में जब यह देश अपनी क्रिकेट के स्तर को लेकर नीचे ही जा रहा है, ऐसे में फिलेंडर जैसे गेंदबाज का जाना टीम में बड़ा शून्य पैदा कर गया है। टीम की बल्लेबाजी संघर्ष कर रही है। हाशिम अमला, अब्राहम डिविलियर्स के विकल्पों से अछूत इस टीम की तेज गेंदबाजी ही इसे कुछ हद तक प्रतिस्पर्धी बनाती थी, क्योंकि इसमें कागिसो रबाडा और फिलेंडर जैसे नाम थे। अब फिलेंडर गए हैं तो यह शून्य ही रह गया है। फिलेंडर की कमी नए प्रबंधन को भी खलेगी।
मार्क बाउचर नए मुख्य कोच बने हैं और हैंसी क्रोनिये की मौत के बाद दक्षिण अफ्रीका को ऊपर लाने वाले कप्तान ग्रीम स्मिथ क्रिकेट निदेशक। जैक्स कैलिस जैसा नाम भी सपोर्ट स्टाफ में है। इन सभी से अपने देश की क्रिकेट को पुर्नर्जीवित करने की उम्मीद है और चुनौती भी। फिलेंडर के जाने के बाद से यह चुनौती और बढ़ गई है।
फिलेंडर वो गेंदबाज नहीं थे जो आम तौर पर दक्षिण अफ्रीका में देखे जाते हैं, तेजी और बाउंस के बादशाह। फिलेंडर की गति ज्यादा नहीं थी, लेकिन वे स्विंग का इस्तेमाल अच्छे से करते थे। पूरा विश्व उन्हें एक चतुर तेज गेंदबाज के रूप में जानता है। फिलेंडर ने सबसे ज्यादा अपने दिमाग का ही इस्तेमाल किया है।
साल 2007 में वनडे और टी20 पदार्पण करने वाले फिलेंडर ने साल 2011 में अपना पहला टेस्ट मैच खेला और समय के साथ वे दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट टीम के नियमित गेंदबाज बने, जबकि सीमित ओवरों में वे ज्यादा नहीं खेले। अपने देश के लिए उन्होंने सिर्फ 30 वनडे और सात टी20 मैच खेले। टेस्ट में उनका मैचों का आकंड़ा 64 का है। टेस्ट में उनके 224, वनडे में 41 और टी20 में 4 विकेट रहे। कम समय, लेकिन छाप इतनी बड़ी कि जिसे भर पाना अब दक्षिण अफ्रीका के लिए लगभग नामुमकिन-सा है।
वो भी उस दौर में जब यह देश अपनी क्रिकेट के स्तर को लेकर नीचे ही जा रहा है, ऐसे में फिलेंडर जैसे गेंदबाज का जाना टीम में बड़ा शून्य पैदा कर गया है। टीम की बल्लेबाजी संघर्ष कर रही है। हाशिम अमला, अब्राहम डिविलियर्स के विकल्पों से अछूत इस टीम की तेज गेंदबाजी ही इसे कुछ हद तक प्रतिस्पर्धी बनाती थी, क्योंकि इसमें कागिसो रबाडा और फिलेंडर जैसे नाम थे। अब फिलेंडर गए हैं तो यह शून्य ही रह गया है। फिलेंडर की कमी नए प्रबंधन को भी खलेगी।
मार्क बाउचर नए मुख्य कोच बने हैं और हैंसी क्रोनिये की मौत के बाद दक्षिण अफ्रीका को ऊपर लाने वाले कप्तान ग्रीम स्मिथ क्रिकेट निदेशक। जैक्स कैलिस जैसा नाम भी सपोर्ट स्टाफ में है। इन सभी से अपने देश की क्रिकेट को पुर्नर्जीवित करने की उम्मीद है और चुनौती भी। फिलेंडर के जाने के बाद से यह चुनौती और बढ़ गई है।
फिलेंडर वो गेंदबाज नहीं थे जो आम तौर पर दक्षिण अफ्रीका में देखे जाते हैं, तेजी और बाउंस के बादशाह। फिलेंडर की गति ज्यादा नहीं थी, लेकिन वे स्विंग का इस्तेमाल अच्छे से करते थे। पूरा विश्व उन्हें एक चतुर तेज गेंदबाज के रूप में जानता है। फिलेंडर ने सबसे ज्यादा अपने दिमाग का ही इस्तेमाल किया है।
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