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स्टार शूटर राही सरनाबोत ने शेयर किए अपने अनुभव, पढ़ें पूरा इंटरव्यू
नई दिल्ली। जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रचने वाली भारत की महिला निशानेबाज राही सरनोबत अनुभव के साथ मानसिक तौर पर बेहद मजबूत हो गई हैं और वे अब भलीभांति जानती हैं कि दबाव से किस तरह से निपटना है। अनुभव ने राही को कड़ी से कड़ी प्रतिस्पर्धा के लिए भी तैयार कर दिया है और इसी के दम पर वे इसी महीने राष्ट्रीय राजधानी में होने वाले आईएसएसएफ विश्व कप में हिस्सा लेने जा रही हैं।
राही एशियाई खेलों में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। राही ने महिलाओं की 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में सोने का तमगा हासिल किया था। राही बीते 12 साल से निशानेबाजी कर रही हैं। वे निशानेबाजी में हालिया दौर में युवाओं के आगे आने से बेहद खुश हैं लेकिन साथ ही मानती हैं जितनी कम उम्र के निशानेबाज आ रहे हैं उनके आने से सीनियर निशानेबाजों पर दबाव और जिम्मेदारी दोनों बढ़ गई हैं।
इसी महीने 20 से 28 फरवरी तक राष्ट्रीय राजधानी में निशानेबाजी विश्व कप होना है। इस विश्व कप के माध्यम से खिलाड़ी टोक्यो ओलम्पिक-2020 के लिए कोटा भी हासिल कर सकते हैं। ओलम्पिक क्वालीफायर टूर्नामेंट होने और घर में खेलने में दबाव महूसस करने को लेकर राही ने आईएएनएस से साक्षात्कार में कहा कि दबाव तो हमेशा रहता है। जैसा की आपने देखा की टीम में काफी जूनियर खिलाड़ी हैं तो सीनियर खिलाडिय़ों पर ज्यादा जिम्मेदारी रहती है।
अनुभव जितना रहता है उतनी ही जिम्मेदारी रहती है। जूनियर खिलाडिय़ों के पास स्पेस है, परफॉर्म करने के लिए भी और नहीं करने के लिए भी, लेकिन सीनियरों के पास नहीं है। हमारे पास अब अनुभव है और इसी कारण हम अब दवाब से पार पाना सीख चुके हैं। उन्होंने कहा, अनुभव मिलने के बाद हर चीज को कैसे देखना है, नजरिया कैसा होना चाहिए। किस टूर्नामेंट में क्या सोचकर जाना है। क्या सोचकर कोटा की तरफ देखना है, यह सब रणनीति हमारे पास होती है। तो यह हमारे लिए हैंडल करना आसान है।
जब मैं 2012 में लदन ओलिम्पक खेलने गई थी तो मेरी मानसिकता अलग थी और मेरा नजरिया अलग था और अब अलग है। भारत में हालिया दौर में मनु भाकेर, मेहुली घोष, सौरभ चौधरी जैसे युवा निशानेबाज आए हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर अपने खेल से न सिर्फ निजी तौर पर ख्याति प्राप्त की साथ ही देश का भी नाम रोशन किया। युवाओं से मिल रही चुनौती और इसी कारण टीम में बने रहने को लेकर किए गए सवाल पर लंदन ओलम्पिक-2012 में हिस्सा ले चुकीं राही ने कहा कि भारतीय टीम में रहना कभी भी आसान नहीं था।
ऐसा कभी नहीं था कि भारतीय टीम में चयन हो गया और कुछ दबाव नहीं है। खिलाड़ी पहले भी थे, लेकिन अब कम उम्र के खिलाड़ी आगे आ गए हैं तो हमें लग रहा है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ गई, लेकिन हां जूनियर इतना अच्छा कर रहे हैं कि अब हम बाकायदा नेशनल्स में भी रणनीति बनाकर उतरते हैं।
यह अच्छी बात है क्योंकि विश्व स्तर पर भी हमें ऐसी ही प्रतिस्पर्धा का सामना करना है तो अगर वैसी ही प्रतिस्पर्धा हमें भारत में मिले तो यह अभ्यास के लिए अच्छा है। भारत में निशानेबाजी में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा और युवाओं के आने के पीछे राही एक बड़ा कारण सीनियर निशानेबाजों द्वारा तय किए पैमानों को भी मानती हैं।
राही एशियाई खेलों में निशानेबाजी में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। राही ने महिलाओं की 25 मीटर पिस्टल स्पर्धा में सोने का तमगा हासिल किया था। राही बीते 12 साल से निशानेबाजी कर रही हैं। वे निशानेबाजी में हालिया दौर में युवाओं के आगे आने से बेहद खुश हैं लेकिन साथ ही मानती हैं जितनी कम उम्र के निशानेबाज आ रहे हैं उनके आने से सीनियर निशानेबाजों पर दबाव और जिम्मेदारी दोनों बढ़ गई हैं।
इसी महीने 20 से 28 फरवरी तक राष्ट्रीय राजधानी में निशानेबाजी विश्व कप होना है। इस विश्व कप के माध्यम से खिलाड़ी टोक्यो ओलम्पिक-2020 के लिए कोटा भी हासिल कर सकते हैं। ओलम्पिक क्वालीफायर टूर्नामेंट होने और घर में खेलने में दबाव महूसस करने को लेकर राही ने आईएएनएस से साक्षात्कार में कहा कि दबाव तो हमेशा रहता है। जैसा की आपने देखा की टीम में काफी जूनियर खिलाड़ी हैं तो सीनियर खिलाडिय़ों पर ज्यादा जिम्मेदारी रहती है।
अनुभव जितना रहता है उतनी ही जिम्मेदारी रहती है। जूनियर खिलाडिय़ों के पास स्पेस है, परफॉर्म करने के लिए भी और नहीं करने के लिए भी, लेकिन सीनियरों के पास नहीं है। हमारे पास अब अनुभव है और इसी कारण हम अब दवाब से पार पाना सीख चुके हैं। उन्होंने कहा, अनुभव मिलने के बाद हर चीज को कैसे देखना है, नजरिया कैसा होना चाहिए। किस टूर्नामेंट में क्या सोचकर जाना है। क्या सोचकर कोटा की तरफ देखना है, यह सब रणनीति हमारे पास होती है। तो यह हमारे लिए हैंडल करना आसान है।
जब मैं 2012 में लदन ओलिम्पक खेलने गई थी तो मेरी मानसिकता अलग थी और मेरा नजरिया अलग था और अब अलग है। भारत में हालिया दौर में मनु भाकेर, मेहुली घोष, सौरभ चौधरी जैसे युवा निशानेबाज आए हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर अपने खेल से न सिर्फ निजी तौर पर ख्याति प्राप्त की साथ ही देश का भी नाम रोशन किया। युवाओं से मिल रही चुनौती और इसी कारण टीम में बने रहने को लेकर किए गए सवाल पर लंदन ओलम्पिक-2012 में हिस्सा ले चुकीं राही ने कहा कि भारतीय टीम में रहना कभी भी आसान नहीं था।
ऐसा कभी नहीं था कि भारतीय टीम में चयन हो गया और कुछ दबाव नहीं है। खिलाड़ी पहले भी थे, लेकिन अब कम उम्र के खिलाड़ी आगे आ गए हैं तो हमें लग रहा है कि प्रतिस्पर्धा बढ़ गई, लेकिन हां जूनियर इतना अच्छा कर रहे हैं कि अब हम बाकायदा नेशनल्स में भी रणनीति बनाकर उतरते हैं।
यह अच्छी बात है क्योंकि विश्व स्तर पर भी हमें ऐसी ही प्रतिस्पर्धा का सामना करना है तो अगर वैसी ही प्रतिस्पर्धा हमें भारत में मिले तो यह अभ्यास के लिए अच्छा है। भारत में निशानेबाजी में बढ़ती हुई प्रतिस्पर्धा और युवाओं के आने के पीछे राही एक बड़ा कारण सीनियर निशानेबाजों द्वारा तय किए पैमानों को भी मानती हैं।
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