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खेल दिवस : इन दिग्गजों ने की ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग
नई दिल्ली। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान-भारत रत्न से नवाजा जाए तभी जाकर खेल दिवस की सार्थकता होगी। ओलंपियन मुक्केबाज अखिल कुमार, द्रोणाचार्य अवार्डी कोच अजय कुमार बंसल, जूडो ओलंपियन यशपाल सोलंकी, अंतरराष्ट्रीय तैराक मीनाक्षी पाहूजा सहित जाने-माने खिलाडिय़ों और कोचों ने एक स्वर में यह मांग की है।
फिजीकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पैफी) और दिल्ली खेल पत्रकार संघ (डीएसजेए) द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय खेल दिवस के महत्व को लेकर रविवार को यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सेमीनार में खिलाडिय़ों और वक्ताओं ने एक स्वर में ऐसे विचार व्यक्त किए। सभी का मानना था कि भारत रत्न पर मेजर ध्यानचंद का सबसे पहले हक था और यह सम्मान तो उन्हें बिना मांगे मिल जाना चाहिए।
सेमीनार में ओलंपियन मुक्केबाज अखिल, हॉकी के द्रोणाचार्य एके बंसल, जूडो ओलंपियन यशपाल, मैराथन धाविका सुनीता गोदारा, अंतरराष्ट्रीय तैराक मीनाक्षी, डीएसजेए के अध्यक्ष एस. कन्नन और सचिव राजेंद्र सजवान और वरिष्ठ खेल पत्रकार राजारमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ध्यानचंद की शख्सियत बहुत बड़ी है और उन्हें यह सम्मान मिलना ही चाहिए। इस अवसर पर पैफी के राष्ट्रीय सचिव पीयूष जैन ने बताया कि देश के 251 शहरों में 29 अगस्त के राष्ट्रीय खेल दिवस को लेकर एक साथ पैफी की ओर से खेल दिवस समारोह मनाया जाएगा। 10 शहरों में इसकी शुरूआत हो चुकी है।
उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य यही है कि हम दद्दा को याद करें और उनकी याद में कुछ गतिविधियां करें। बंसल ने कहा, कुछ समय पहले हमने दद्दा (ध्याचंद) के लिये प्रदर्शन किया था और उस समय मैंने दद्दा के बेटे अशोक ध्यानचंद को कहा था कि हम अवार्ड क्यों मांग रहे हैं। उनकी शख्सियत बहुत बड़ी है। उन्हें तो यह सम्मान बिना मांगे ही मिल जाना चाहिए। खेल दिवस एक दिन नहीं बल्कि सालों साल चलते रहना चाहिए। हमें रोजाना ही खेल दिवस मनाना चाहिए।
अखिल ने खेल दिवस के लिए जोर देते हुए कहा, खेल दिवस का मतलब तभी है जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह जागरूक हों और देश के लोग शारीरिक रूप से फिट रहें। देश में यह संस्कृति पनपनी चाहिए कि बच्चे कोई न कोई खेल जरूर खेलते रहें और खुद को अनावश्यक गतिविधियों से दूर रखें।
सोलंकी ने कहा, हमारे जन्म से पहले के इस खिलाड़ी की गाथा को हम आज भी जिस तरह याद कर रहे हैं उससे यह पता लगता है कि वे कितने महान थे। मेरा मानना है कि खिलाडिय़ों की सेवा को उनके संन्यास के बाद लिया जाना चाहिए। ऐसा देखने में आया है कि पिछले 20 वर्षों में जिन खिलाडिय़ों ने अच्छे परिणाम दिए हैं उनमें से 90 फीसदी अब खेलों में ही शामिल नहीं हैं जबकि उन्हें वापस खेलों में लाया जाना चाहिए।
फिजीकल एजुकेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पैफी) और दिल्ली खेल पत्रकार संघ (डीएसजेए) द्वारा संयुक्त रूप से राष्ट्रीय खेल दिवस के महत्व को लेकर रविवार को यहां कांस्टीट्यूशन क्लब में आयोजित सेमीनार में खिलाडिय़ों और वक्ताओं ने एक स्वर में ऐसे विचार व्यक्त किए। सभी का मानना था कि भारत रत्न पर मेजर ध्यानचंद का सबसे पहले हक था और यह सम्मान तो उन्हें बिना मांगे मिल जाना चाहिए।
सेमीनार में ओलंपियन मुक्केबाज अखिल, हॉकी के द्रोणाचार्य एके बंसल, जूडो ओलंपियन यशपाल, मैराथन धाविका सुनीता गोदारा, अंतरराष्ट्रीय तैराक मीनाक्षी, डीएसजेए के अध्यक्ष एस. कन्नन और सचिव राजेंद्र सजवान और वरिष्ठ खेल पत्रकार राजारमन ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि ध्यानचंद की शख्सियत बहुत बड़ी है और उन्हें यह सम्मान मिलना ही चाहिए। इस अवसर पर पैफी के राष्ट्रीय सचिव पीयूष जैन ने बताया कि देश के 251 शहरों में 29 अगस्त के राष्ट्रीय खेल दिवस को लेकर एक साथ पैफी की ओर से खेल दिवस समारोह मनाया जाएगा। 10 शहरों में इसकी शुरूआत हो चुकी है।
उन्होंने कहा, इसका उद्देश्य यही है कि हम दद्दा को याद करें और उनकी याद में कुछ गतिविधियां करें। बंसल ने कहा, कुछ समय पहले हमने दद्दा (ध्याचंद) के लिये प्रदर्शन किया था और उस समय मैंने दद्दा के बेटे अशोक ध्यानचंद को कहा था कि हम अवार्ड क्यों मांग रहे हैं। उनकी शख्सियत बहुत बड़ी है। उन्हें तो यह सम्मान बिना मांगे ही मिल जाना चाहिए। खेल दिवस एक दिन नहीं बल्कि सालों साल चलते रहना चाहिए। हमें रोजाना ही खेल दिवस मनाना चाहिए।
अखिल ने खेल दिवस के लिए जोर देते हुए कहा, खेल दिवस का मतलब तभी है जब हम अपने स्वास्थ्य के प्रति पूरी तरह जागरूक हों और देश के लोग शारीरिक रूप से फिट रहें। देश में यह संस्कृति पनपनी चाहिए कि बच्चे कोई न कोई खेल जरूर खेलते रहें और खुद को अनावश्यक गतिविधियों से दूर रखें।
सोलंकी ने कहा, हमारे जन्म से पहले के इस खिलाड़ी की गाथा को हम आज भी जिस तरह याद कर रहे हैं उससे यह पता लगता है कि वे कितने महान थे। मेरा मानना है कि खिलाडिय़ों की सेवा को उनके संन्यास के बाद लिया जाना चाहिए। ऐसा देखने में आया है कि पिछले 20 वर्षों में जिन खिलाडिय़ों ने अच्छे परिणाम दिए हैं उनमें से 90 फीसदी अब खेलों में ही शामिल नहीं हैं जबकि उन्हें वापस खेलों में लाया जाना चाहिए।
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