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हिमा सहित इन खिलाडिय़ों ने मुश्किलों से पार पाकर पाई सफलता
नई दिल्ली। असम के एक छोटे से गांव में रहने वाली हिमा दास बचपन से ही रोजाना तडक़े ही उठकर पास के ही मैदान में पहुंच जाया करती थीं। उनके पास पर्याप्त साधन भी नहीं थे और न ही ढंग का मैदान, बावजूद इसके वह जो मैदान उपलब्ध था उसी पर दौडऩे का अभ्यास किया करती थीं। यह मैदान उनके घर से सिर्फ 50 मीटर की दूरी पर था। चावल की खेती करने वाले की इस बेटी ने उस समय पूरे विश्व को अपने पैरों पर खड़ा कर दिया था जब इस उडऩपरी ने अंडर-20 विश्व चैम्पियनशिप में 400 मीटर स्पर्धा में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था।
वे इस स्पर्धा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली धावक बनी थीं। असम के ढींग शहर के करीब कांधुललिमारी गांव से 20 किलोमीटर दूर नगांव में रहने वाली इस लडक़ी ने इसके बाद हाल ही में एशियाई खेलों में महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर स्पर्धा में भी स्वर्ण पदक जीता। इस तरह की कई कहानियां भारतीय खेल जगत में मिल जाएंगी जहां खिलाडिय़ों ने गरीबी की बाधा तोड़ सफलता हासिल की हो और अपने परिवार तथा देश को गर्व करने का मौका दिया हो। स्वप्ना बर्मन भी इस तरह की एक और खिलाड़ी हैं।
उनके पिता पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में रिक्शा चालक हैं। स्वप्ना ने भी जकार्ता में खेले गए एशियाई खेलों में इतिहास रचा था। वे हैप्टाथलान में इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनी थीं। भारतीय सेना के नौकाचालक दत्तु बाबन भोकनाल ने भी कई बाधाओं को पार किया। उन्होंने अपने जीवन में कुआं खोदने से लेकर प्याज बेचने, पेट्रोल बेचने तक का काम किया। बावजूद इसके वे एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहे।
सेपकट्रा में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा हरीश कुमार दिल्ली में अपने परिवार की दुकान पर चाय बेचते हैं। यह चुनिंदा किस्से नहीं हैं। भारत की मशहूर एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने कहा कि यह अब एक रूटीन बन गया है। अंजू बॉबी जॉर्ज ने आईएएनएस से कहा कि शायद मुश्किल जीवनशैली के कारण और जिंदगी में कम विकल्प होने के कारण उनमें सफल होने की भूख होती है। उन्होंने कहा कि गांव में रहने वाले और गरीब परिवार के बच्चे रोज के काम की तरह शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।
स्कूल से लौटने के बाद या तो वे खेतों में काम करते हैं या खेल खेलते हैं। इसलिए हमारे कई स्टार खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं। हिमा के बचपन को याद करते हुए उनकी मां ने कहा कि वे हमेशा से प्रतिस्पर्धी थी और हार से उसे नफरत थी। स्वप्ना के पैर में छह उंगलियां हैं। उन्हें कभी अपने पैर के मुताबिक सही जूते नहीं मिले और इसी कारण जब से उन्होंने चलना शुरू किया है।
वे हमेशा दर्द में रहीं, लेकिन लगातार दर्द के बाद भी उन्होंने एशियाई खेलों में हेप्टाथलान में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। हेप्टाथलान में सात स्पर्धाएं होती हैं। स्वप्ना के पिता लंबे अरसे से बीमारी से ग्रसित हैं और इसी कारण बिस्तर पर ही हैं। स्वप्ना की मां बसोना ने आईएएनएस से कहा, यह उसके लिए आसान नहीं था। हम हमेशा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की।
वे इस स्पर्धा में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली धावक बनी थीं। असम के ढींग शहर के करीब कांधुललिमारी गांव से 20 किलोमीटर दूर नगांव में रहने वाली इस लडक़ी ने इसके बाद हाल ही में एशियाई खेलों में महिलाओं की चार गुणा 400 मीटर स्पर्धा में भी स्वर्ण पदक जीता। इस तरह की कई कहानियां भारतीय खेल जगत में मिल जाएंगी जहां खिलाडिय़ों ने गरीबी की बाधा तोड़ सफलता हासिल की हो और अपने परिवार तथा देश को गर्व करने का मौका दिया हो। स्वप्ना बर्मन भी इस तरह की एक और खिलाड़ी हैं।
उनके पिता पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी में रिक्शा चालक हैं। स्वप्ना ने भी जकार्ता में खेले गए एशियाई खेलों में इतिहास रचा था। वे हैप्टाथलान में इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की पहली महिला खिलाड़ी बनी थीं। भारतीय सेना के नौकाचालक दत्तु बाबन भोकनाल ने भी कई बाधाओं को पार किया। उन्होंने अपने जीवन में कुआं खोदने से लेकर प्याज बेचने, पेट्रोल बेचने तक का काम किया। बावजूद इसके वे एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने में कामयाब रहे।
सेपकट्रा में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा हरीश कुमार दिल्ली में अपने परिवार की दुकान पर चाय बेचते हैं। यह चुनिंदा किस्से नहीं हैं। भारत की मशहूर एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज ने कहा कि यह अब एक रूटीन बन गया है। अंजू बॉबी जॉर्ज ने आईएएनएस से कहा कि शायद मुश्किल जीवनशैली के कारण और जिंदगी में कम विकल्प होने के कारण उनमें सफल होने की भूख होती है। उन्होंने कहा कि गांव में रहने वाले और गरीब परिवार के बच्चे रोज के काम की तरह शारीरिक गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं।
स्कूल से लौटने के बाद या तो वे खेतों में काम करते हैं या खेल खेलते हैं। इसलिए हमारे कई स्टार खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं। हिमा के बचपन को याद करते हुए उनकी मां ने कहा कि वे हमेशा से प्रतिस्पर्धी थी और हार से उसे नफरत थी। स्वप्ना के पैर में छह उंगलियां हैं। उन्हें कभी अपने पैर के मुताबिक सही जूते नहीं मिले और इसी कारण जब से उन्होंने चलना शुरू किया है।
वे हमेशा दर्द में रहीं, लेकिन लगातार दर्द के बाद भी उन्होंने एशियाई खेलों में हेप्टाथलान में स्वर्ण पदक अपने नाम किया। हेप्टाथलान में सात स्पर्धाएं होती हैं। स्वप्ना के पिता लंबे अरसे से बीमारी से ग्रसित हैं और इसी कारण बिस्तर पर ही हैं। स्वप्ना की मां बसोना ने आईएएनएस से कहा, यह उसके लिए आसान नहीं था। हम हमेशा उसकी जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते थे, लेकिन उसने कभी शिकायत नहीं की।
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