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एशियाई खेलों में चीन का दबदबा कायम, भारत फिर 8वें स्थान पर
नई दिल्ली। एशियाई खेलों में चीन का वर्चस्व कायम है। यह अलग बात है कि 2010 और 2014 की तुलना में चीन ने जकार्ता में रविवार को समाप्त 18वें एशियाई खेलों में कम पदक जीते हैं लेकिन इसके बावजूद वह अपनी बादशाहत कायम रखने में सफल रहा। जहां तक भारत की बात है तो भारतीय खिलाडिय़ों ने 1951 के स्वर्णिम शो को फिर से दोहराते हुए एशियाई खेलों के इतिहास में सबसे अधिक पदक अपने नाम किए हैं।
वैश्विक स्तर पर खेल महाशक्ति माने जाने वाले चीन ने जकार्ता में 132 स्वर्ण, 92 रजत और 65 कांस्य के साथ कुल 289 पदक जीते। इसके अलावा जापान ही 200 पदकों का आंकड़ा पार कर सका। कुल 205 पदकों के साथ जापान दूसरे और 177 पदकों के साथ दक्षिण कोरिया तीसरे पायदान पर रहा जबकि भारत ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण के साथ कुल 69 पदक जीते। भारत ने 2010 में 65 पदक जीते थे और 1951 में 15 स्वर्ण जीते थे।
चीन हालांकि जकार्ता में एशियाई खेलों के पिछले संस्करणों के अपने शानदार प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाया। इंचियोन में चीन ने 151 स्वर्ण, 109 रजत और 85 कांस्य के साथ कुल 345 पदक जीते थे। ग्वांगझू में चीन ने अपनी मेजबानी में 199 स्वर्ण जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया लेकिन इस बार वह इसके करीब भी नहीं पहुंच सका। ग्वांगझू में चीन ने कुल 416 पदक जीते थे।
एशियाई खेलों की शुरुआत 1951 में हुई थी। चीन इस सफर में 1974 में शामिल हुआ लेकिन इसके बावजूद वह आज इन खेलों में सबसे अधिक पदक जीतने वाला देश बना हुआ है। जकार्ता को अगर छोड़ दिया जाए तो चीन ने इस महाद्वीपीय खेल महाकुम्भ के बीते 11 संस्करणों में कुल 2,976 पदक जीते थे, जिसमें 1,355 स्वर्ण, 928 रजत और 693 कांस्य पदक शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि एशियाई खेलों में आने के साथ ही चीनी वर्चस्व कायम हो गया था।
1974 में चीन जब पहली बार एशियाई खेलों में आया था, तब जापान और कोरिया और काफी हद तक ईरान का दबदबा था। 1974 के तेहरान एशियाई खेलों में चीन ने पदार्पण करते हुए 33 स्वर्ण पदकों सहित कुल 106 पदक जीते थे। वह तीसरे स्थान पर था। दूसरी ओर जापान 75 स्वर्ण पदकों के साथ पहले स्थान पर था। अपनी मेजबानी में उस साल ईरान ने 36 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया था, दक्षिण कोरिया 16 स्वर्ण पदक के साथ चौथे स्थान पर था।
वैश्विक स्तर पर खेल महाशक्ति माने जाने वाले चीन ने जकार्ता में 132 स्वर्ण, 92 रजत और 65 कांस्य के साथ कुल 289 पदक जीते। इसके अलावा जापान ही 200 पदकों का आंकड़ा पार कर सका। कुल 205 पदकों के साथ जापान दूसरे और 177 पदकों के साथ दक्षिण कोरिया तीसरे पायदान पर रहा जबकि भारत ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए 15 स्वर्ण के साथ कुल 69 पदक जीते। भारत ने 2010 में 65 पदक जीते थे और 1951 में 15 स्वर्ण जीते थे।
चीन हालांकि जकार्ता में एशियाई खेलों के पिछले संस्करणों के अपने शानदार प्रदर्शन को दोहरा नहीं पाया। इंचियोन में चीन ने 151 स्वर्ण, 109 रजत और 85 कांस्य के साथ कुल 345 पदक जीते थे। ग्वांगझू में चीन ने अपनी मेजबानी में 199 स्वर्ण जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया लेकिन इस बार वह इसके करीब भी नहीं पहुंच सका। ग्वांगझू में चीन ने कुल 416 पदक जीते थे।
एशियाई खेलों की शुरुआत 1951 में हुई थी। चीन इस सफर में 1974 में शामिल हुआ लेकिन इसके बावजूद वह आज इन खेलों में सबसे अधिक पदक जीतने वाला देश बना हुआ है। जकार्ता को अगर छोड़ दिया जाए तो चीन ने इस महाद्वीपीय खेल महाकुम्भ के बीते 11 संस्करणों में कुल 2,976 पदक जीते थे, जिसमें 1,355 स्वर्ण, 928 रजत और 693 कांस्य पदक शामिल हैं। ऐसा नहीं है कि एशियाई खेलों में आने के साथ ही चीनी वर्चस्व कायम हो गया था।
1974 में चीन जब पहली बार एशियाई खेलों में आया था, तब जापान और कोरिया और काफी हद तक ईरान का दबदबा था। 1974 के तेहरान एशियाई खेलों में चीन ने पदार्पण करते हुए 33 स्वर्ण पदकों सहित कुल 106 पदक जीते थे। वह तीसरे स्थान पर था। दूसरी ओर जापान 75 स्वर्ण पदकों के साथ पहले स्थान पर था। अपनी मेजबानी में उस साल ईरान ने 36 स्वर्ण पदकों के साथ पदक तालिका में दूसरा स्थान हासिल किया था, दक्षिण कोरिया 16 स्वर्ण पदक के साथ चौथे स्थान पर था।
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