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ग्वालियर की महिलाएं मोदी को भेजेंगी 1000 सेनेटरी नैपकीन
ग्वालियर। महिलाओं द्वारा मासिक धर्म के दिनों में उपयोग की जाने वाली सेनेटरी नैपकीन को भी जीएसटी के दायरे में लाए जाने से उसकी कीमतें बढ़ गई हैं। सरकार के इस फैसले के खिलाफ मध्य प्रदेश के ग्वालियर की महिलाओं ने सेनेटरी नैपकीन को कर मुक्त करने के लिए अभियान चलाया है और फैसला लिया है कि महिलाओं के हस्ताक्षरित एक हजार नैपकीन और पोस्टकार्ड प्रधानमंत्री को भेजेंगी।
ग्वालियर निवासी प्रीति देवेंद्र जोशी ने कहा कि एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता अभियान चला रहे हैं और दूसरी ओर सेनेटरी नैपकीन को 'लग्जरी सामान' में शामिल किए हुए हैं। किशोरियों से लेकर 40 वर्ष की उम्र तक हर महिला को हर महीने चार-पांच दिनों तक इसकी जरूरत पड़ती है।
उन्होंने कहा, "सेनेटरी नैपकीन पहले से ही महंगा था, महंगाई के दौर में हर महिला नैपकीन आसानी से नहीं खरीद पाती थीं। नए कर लग जाने से तो वह और भी महंगा हो गया है। ऐसे में सेनेटरी नैपकीन का उपयोग मध्यवर्ग की महिलाएं तक नहीं कर पाएंगी, गरीब परिवार की महिलाएं तो इसे खरीदने की सोच भी नहीं सकतीं।"
महिलाओं के इस अभियान का समर्थन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता हरिमोहन भसनेरिया ने कहा कि कई महिलाओं ने महंगा होने के बाद से इन नैपकीन का उपयोग ही बंद कर दिया है। वे फटे-पुराने कपड़े के टुकड़े से काम चला लेती हैं। इससे संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। जब घर की महिला ही स्वस्थ्य नहीं रहेगी, संक्रमण ग्रस्त हो जाएगी, तो परिवार का क्या हाल होगा।
आंदोलन की रूपरेखा के मुताबिक, पांच मार्च को एक हजार नैपकीन प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड के साथ भेजे जाएंगे। दूसरे चरण में एक लाख और तीसरे चरण में पांच लाख नैपकीन भेजे जाएंगे। यह देशव्यापी अभियान शुरू हो चुका है।
ग्वालियर निवासी प्रीति देवेंद्र जोशी ने कहा कि एक तरफ देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वच्छता अभियान चला रहे हैं और दूसरी ओर सेनेटरी नैपकीन को 'लग्जरी सामान' में शामिल किए हुए हैं। किशोरियों से लेकर 40 वर्ष की उम्र तक हर महिला को हर महीने चार-पांच दिनों तक इसकी जरूरत पड़ती है।
उन्होंने कहा, "सेनेटरी नैपकीन पहले से ही महंगा था, महंगाई के दौर में हर महिला नैपकीन आसानी से नहीं खरीद पाती थीं। नए कर लग जाने से तो वह और भी महंगा हो गया है। ऐसे में सेनेटरी नैपकीन का उपयोग मध्यवर्ग की महिलाएं तक नहीं कर पाएंगी, गरीब परिवार की महिलाएं तो इसे खरीदने की सोच भी नहीं सकतीं।"
महिलाओं के इस अभियान का समर्थन करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता हरिमोहन भसनेरिया ने कहा कि कई महिलाओं ने महंगा होने के बाद से इन नैपकीन का उपयोग ही बंद कर दिया है। वे फटे-पुराने कपड़े के टुकड़े से काम चला लेती हैं। इससे संक्रमण फैलने का खतरा बना रहता है। जब घर की महिला ही स्वस्थ्य नहीं रहेगी, संक्रमण ग्रस्त हो जाएगी, तो परिवार का क्या हाल होगा।
आंदोलन की रूपरेखा के मुताबिक, पांच मार्च को एक हजार नैपकीन प्रधानमंत्री को पोस्टकार्ड के साथ भेजे जाएंगे। दूसरे चरण में एक लाख और तीसरे चरण में पांच लाख नैपकीन भेजे जाएंगे। यह देशव्यापी अभियान शुरू हो चुका है।
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