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कौन से कैंसर रोगी ना लगाए कोविड वैक्सीन, यहां पढ़ें
जयपुर। कोविड वैक्सीन लगने की शुरूआत हो चुकी है, लेकिन वैक्सीन लगवाने को लेकर लोगों के मन में अभी भी डर और भ्रम बना हुआ है। कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से ग्रसित मरीजों में मन में इस वैैक्सीन को लेकर कई सवाल है। वहीं कैंसर रोग विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लड कैंसर सहित कुछ कैंसर रोगियों को कोविड वैक्सीन लगवाने के लिए विशेषज्ञ सावधानी रखनी होगी। भगवान महावीर कैंसर हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के वरिष्ठ कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ अजय बापना ने बताया कि कोविड वैक्सीन (कोविशिल्ड) की मौजूदा जानकारियों के अनुसार यह वैक्सीन कैंसर रोगियों के लिए सुरक्षित है।
डॉ बापना ने बताया कि एनसीसीएन के वर्तमान दिशा-निर्देश के अनुसार जिन रोगियों का ब्लड कैंसर का उपचार चल रहा है, उन रोगियों के ब्लड काउंट अगर कम हो तो इस इंजेक्शन को ना लगवाए। ब्लड काउंट जब तक नॉर्मल स्थिति में होने के बाद ही वह वैक्सीन लगवा सकते है। जिन रोगियों में बोन मेरा ट्रांसप्लांट किया गया है वह रोगी ट्रांसप्लांट के तीन माह तक यह वैक्सीन नही लगावा सकते है। साथ ही जिन रोगियों की हाल ही में सर्जरी हुई है, वह दो से तीन सप्ताह के बाद रिकवरी होने पर ही यह वैक्सीन लगवा सकेंगे।
कीमो के दौरान लग सकती हैं वैक्सीन
सोलिड टयूमर से ग्रसित रोगी जैसे मुंह एवं गले, ओवरी का कैंसर, स्तन कैंसर के रोगी का अगर उपचार चल रहा है तो वह रोगी अपने दो कीमो साइकल के बीच में या कीमो थैरेपी की शुरूआत से कुछ दिन पहले इस वैक्सीन को लगवा सकते है। जिन रोगियों का उपचार सफलता पूर्वक पूर्ण हो चुका है एवं कैंसर सरवाइवर्स को वैक्सीन बगैर किसी डर के लगाया जा सकता है।
रेडिएशन थैरेपी ले रहे रोगी सुरक्षित
रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की निदेशक डॉ निधि पाटनी ने बताया कि रेडिएशन थैरेपी ले रहे कैंसर रोगियों के लिए यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है। इस थैरेपी के दौरान भी कैंसर रोगियों को वैक्सीन लगाया जा सकता है।
देश में तेजी से बढ रहे कैंसर रोगी
बीएमसीएचआरसी के डॉ अरविन्द ठाकुरिया ने बताया कि देश में 2.5 मिलियन लोग कैंसर के साथ अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। इसके साथ ही देश में हर साल 11 लाख 57 हजार 294 कैंसर रोगी सामने आ रहे हैं। वहीं 7 लाख 84 हजार 821 लोग इस रोग की वजह से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। पुरूषों में मुंह, फेफडे और पेट के कैंसर तेजी से बढ रहे हैं, जबकि महिलाओं में स्तन और गर्भाशय के कैंसर सर्वाधिक सामने आ रहे हैं।
डॉ. ठाकुरिया का कहना है जागरूकता की कमी के चलते आज भी कैंसर रोगी रोग की बढ़ी हुई अवस्था में चिकित्सक के पास पहुंचते है, जिसकी वजह से उपचार के दौरान रोगी के मन में हमेेशा यह भय रहता है कि वह पूरी तरह ठीक हो पाएगा भी या नहीं। चिंता और भय का रोगी के उपचार पर नकारात्मक प्रभाव पडता है।
डॉ बापना ने बताया कि एनसीसीएन के वर्तमान दिशा-निर्देश के अनुसार जिन रोगियों का ब्लड कैंसर का उपचार चल रहा है, उन रोगियों के ब्लड काउंट अगर कम हो तो इस इंजेक्शन को ना लगवाए। ब्लड काउंट जब तक नॉर्मल स्थिति में होने के बाद ही वह वैक्सीन लगवा सकते है। जिन रोगियों में बोन मेरा ट्रांसप्लांट किया गया है वह रोगी ट्रांसप्लांट के तीन माह तक यह वैक्सीन नही लगावा सकते है। साथ ही जिन रोगियों की हाल ही में सर्जरी हुई है, वह दो से तीन सप्ताह के बाद रिकवरी होने पर ही यह वैक्सीन लगवा सकेंगे।
कीमो के दौरान लग सकती हैं वैक्सीन
सोलिड टयूमर से ग्रसित रोगी जैसे मुंह एवं गले, ओवरी का कैंसर, स्तन कैंसर के रोगी का अगर उपचार चल रहा है तो वह रोगी अपने दो कीमो साइकल के बीच में या कीमो थैरेपी की शुरूआत से कुछ दिन पहले इस वैक्सीन को लगवा सकते है। जिन रोगियों का उपचार सफलता पूर्वक पूर्ण हो चुका है एवं कैंसर सरवाइवर्स को वैक्सीन बगैर किसी डर के लगाया जा सकता है।
रेडिएशन थैरेपी ले रहे रोगी सुरक्षित
रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग की निदेशक डॉ निधि पाटनी ने बताया कि रेडिएशन थैरेपी ले रहे कैंसर रोगियों के लिए यह वैक्सीन पूरी तरह से सुरक्षित है। इस थैरेपी के दौरान भी कैंसर रोगियों को वैक्सीन लगाया जा सकता है।
देश में तेजी से बढ रहे कैंसर रोगी
बीएमसीएचआरसी के डॉ अरविन्द ठाकुरिया ने बताया कि देश में 2.5 मिलियन लोग कैंसर के साथ अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। इसके साथ ही देश में हर साल 11 लाख 57 हजार 294 कैंसर रोगी सामने आ रहे हैं। वहीं 7 लाख 84 हजार 821 लोग इस रोग की वजह से अकाल मौत का शिकार हो रहे हैं। पुरूषों में मुंह, फेफडे और पेट के कैंसर तेजी से बढ रहे हैं, जबकि महिलाओं में स्तन और गर्भाशय के कैंसर सर्वाधिक सामने आ रहे हैं।
डॉ. ठाकुरिया का कहना है जागरूकता की कमी के चलते आज भी कैंसर रोगी रोग की बढ़ी हुई अवस्था में चिकित्सक के पास पहुंचते है, जिसकी वजह से उपचार के दौरान रोगी के मन में हमेेशा यह भय रहता है कि वह पूरी तरह ठीक हो पाएगा भी या नहीं। चिंता और भय का रोगी के उपचार पर नकारात्मक प्रभाव पडता है।
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