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फिरोजाबाद में त्रिकोणीय संघर्ष, क्या बच पाएगा समाजवादी पार्टी का गढ़, देखें

लखनऊ। समाजवादी पार्टी की गढ़ मानी जाने वाली फिरोजाबाद सीट पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है। वर्ष 2014 के मोदी लहर में भी यह सीट सपा के महासचिव रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव को मिल गई थी, लेकिन इस बार परिस्थितियां थोड़ी बदली हुई हैं।
यहां से सैफाई परिवार के दो दिग्गज आमने-सामने हैं। समाजवादी पार्टी से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाले शिवपाल यादव अपने भतीजे और निवर्तमान सांसद अक्षय यादव से ताल ठोकने को तैयार हैं।
सैफई परिवार में इन दो दिग्गजों की भिड़ंत का भाजपा ने भी पूरा लाभ उठाने का प्रयास किया है और अपने पुराने कार्यकर्ता डॉ़ चंद्रसेन जादौन को उम्मीदवार बनाकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। जनसंघ के जमाने से जुड़े डॉ़ जादौन ने वर्ष 1996 में घिरोर विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था, मगर जीत नहीं पाए थे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विनय चतुर्वेदी फिरोजाबाद सीट को सपा की परंपरागत सीट मान रहे हैं।
इनका कहना है कि सपा के रामजी लाल सुमन ने वर्ष 1999 और 2004 में लगातार सांसदी का चुनाव जीता, लेकिन वर्ष 2009 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चुनाव लड़कर जीत हासिल की और अब यह एक परिवार के प्रभुत्व वाली सीट बन गई। अखिलेश के सीट छोड़ने से हुए उपचुनाव में सैफई परिवार की बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में थीं, लेकिन कांग्रेस के राज बब्बर से चुनाव हार गई थीं। बावजूद इसके वर्ष 2014 में हुए चुनाव में एक बार यह सीट सैफई परिवार में आई। अक्षय यादव ने भाजपा के एस.पी. सिंह बघेल को करीब 1 लाख 14 हजार 59 वोटों से हराया था। यहां यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
जसरना और सिरसागंज में उनकी तदाद लगभग 1.5 लाख है। लेकिन उनमें बिखराव भी होगा। शिवपाल यादव संगठन की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। सपा के पुराने कार्यकर्ताओं में उनकी आज भी पकड़ है। विपक्ष के नेता और अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे शिवपाल को भी यहां भारी समर्थन मिल रहा है। यह बात अलग है कि कुछ उनके विरोध में भी हैं। अब शिवपाल के मैदान में उतरने से यह सीट सपा के लिए आसान नहीं रह गई है।
विश्लेषक विनय चतुर्वेदी के मुताबिक, अक्षय यादव के पास सपा के साथ अब बसपा की भी ताकत है जो उन्हें मजबूत बनाती है। कांग्रेस ने यहां पर अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। ऐसे में यादवों के साथ कुछ वोट उन्हें जाटवों और मुसलमानों का मिलता दिख रहा है, लेकिन सपा से बागी हुए तीन बार के विधायक हरिओम यादव और पूर्व विधायक अजीम भाई ने सपा का दामन छोड़ा है। अब शिवपाल खेमे में हैं। शिवपाल के साथ देने वाले अजीम की शहर के मुसलामानों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। मुसलामानों के वोट का एक हिस्सा शिवपाल के पक्ष में आने से इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि शिवपाल के कारण भाजपा द्वारा डमी उम्मीदवार उतारने की अफवाह थी, लेकिन चंद्रसेन जादौन के चुनाव मैदान में आने से अफवाह पर पूर्णविराम लग गया है। लड़ाई रोचक हो गई है।
अमित शाह उनके पक्ष में जनसभा कर परिवारवाद के खिलाफ हमला बोल चुके हैं। चतुर्वेदी की नजर में चंद्रसेन अनुभवी हैं। उन्हें मोदी के नाम का फायदा भी मिलेगा। बावजूद इसके सपा के गढ़ वाले विधानसभा क्षेत्रों में वोट पाना चुनौती है। वजह, सपा के साथ प्रसपा भी मैदान में है। पार्टी के मूल वोट बैंक को सभी अपनी-अपनी तरफ बिठाने में जोर-आजमाइश कर रहे हैं। चंद्रसेन के साथ बघेल बिरादरी का वोट उनके पक्ष में आ सकता है। साथ ही कुछ और भी बैकवर्ड वोट में सेंधमारी कर सकते हैं। अगर शिवपाल ने थोड़ी भी मजबूती से लड़ाई लड़ी और बसपा का वोट सपा के पक्ष में तब्दील नहीं हुआ तो भाजपा को फायदा हो सकता है।
सांसद अक्षय यादव ने शहर में जेडा झाल परियोजना शुरू करवाकर पानी की समस्या कुछ हद तक दूर की है। मेडिकल कॉलेज भी बनवाया है। आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे से फिरोजाबाद जुड़ा है। कांच उद्योग के चलते यहां ट्रांसपोर्ट महत्वपूर्ण है। इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। फिरोजाबाद, टूंडला, शिकोहाबाद और जसराना में भाजपा के विधायक हैं। सिरसागंज में सपा के विधायक हैं। टूंडला के रामसेवक का कहना है कि यहां पर सबसे बड़ी समस्या पानी की है। जसवंत नगर के रामप्यारे की मानें तो यहां पर सरकारी अस्पताल तो बना खड़ा है लेकिन डॉक्टर आते ही नहीं हैं।
सैफई परिवार में इन दो दिग्गजों की भिड़ंत का भाजपा ने भी पूरा लाभ उठाने का प्रयास किया है और अपने पुराने कार्यकर्ता डॉ़ चंद्रसेन जादौन को उम्मीदवार बनाकर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। जनसंघ के जमाने से जुड़े डॉ़ जादौन ने वर्ष 1996 में घिरोर विधानसभा से भाजपा की टिकट पर चुनाव लड़ा था, मगर जीत नहीं पाए थे। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक विनय चतुर्वेदी फिरोजाबाद सीट को सपा की परंपरागत सीट मान रहे हैं।
इनका कहना है कि सपा के रामजी लाल सुमन ने वर्ष 1999 और 2004 में लगातार सांसदी का चुनाव जीता, लेकिन वर्ष 2009 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चुनाव लड़कर जीत हासिल की और अब यह एक परिवार के प्रभुत्व वाली सीट बन गई। अखिलेश के सीट छोड़ने से हुए उपचुनाव में सैफई परिवार की बहू और अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव मैदान में थीं, लेकिन कांग्रेस के राज बब्बर से चुनाव हार गई थीं। बावजूद इसके वर्ष 2014 में हुए चुनाव में एक बार यह सीट सैफई परिवार में आई। अक्षय यादव ने भाजपा के एस.पी. सिंह बघेल को करीब 1 लाख 14 हजार 59 वोटों से हराया था। यहां यादव वोटर निर्णायक भूमिका में हैं।
जसरना और सिरसागंज में उनकी तदाद लगभग 1.5 लाख है। लेकिन उनमें बिखराव भी होगा। शिवपाल यादव संगठन की राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। सपा के पुराने कार्यकर्ताओं में उनकी आज भी पकड़ है। विपक्ष के नेता और अलग-अलग सरकारों में मंत्री रहे शिवपाल को भी यहां भारी समर्थन मिल रहा है। यह बात अलग है कि कुछ उनके विरोध में भी हैं। अब शिवपाल के मैदान में उतरने से यह सीट सपा के लिए आसान नहीं रह गई है।
विश्लेषक विनय चतुर्वेदी के मुताबिक, अक्षय यादव के पास सपा के साथ अब बसपा की भी ताकत है जो उन्हें मजबूत बनाती है। कांग्रेस ने यहां पर अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा है। ऐसे में यादवों के साथ कुछ वोट उन्हें जाटवों और मुसलमानों का मिलता दिख रहा है, लेकिन सपा से बागी हुए तीन बार के विधायक हरिओम यादव और पूर्व विधायक अजीम भाई ने सपा का दामन छोड़ा है। अब शिवपाल खेमे में हैं। शिवपाल के साथ देने वाले अजीम की शहर के मुसलामानों में अच्छी पकड़ मानी जाती है। मुसलामानों के वोट का एक हिस्सा शिवपाल के पक्ष में आने से इनकार नहीं किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि शिवपाल के कारण भाजपा द्वारा डमी उम्मीदवार उतारने की अफवाह थी, लेकिन चंद्रसेन जादौन के चुनाव मैदान में आने से अफवाह पर पूर्णविराम लग गया है। लड़ाई रोचक हो गई है।
अमित शाह उनके पक्ष में जनसभा कर परिवारवाद के खिलाफ हमला बोल चुके हैं। चतुर्वेदी की नजर में चंद्रसेन अनुभवी हैं। उन्हें मोदी के नाम का फायदा भी मिलेगा। बावजूद इसके सपा के गढ़ वाले विधानसभा क्षेत्रों में वोट पाना चुनौती है। वजह, सपा के साथ प्रसपा भी मैदान में है। पार्टी के मूल वोट बैंक को सभी अपनी-अपनी तरफ बिठाने में जोर-आजमाइश कर रहे हैं। चंद्रसेन के साथ बघेल बिरादरी का वोट उनके पक्ष में आ सकता है। साथ ही कुछ और भी बैकवर्ड वोट में सेंधमारी कर सकते हैं। अगर शिवपाल ने थोड़ी भी मजबूती से लड़ाई लड़ी और बसपा का वोट सपा के पक्ष में तब्दील नहीं हुआ तो भाजपा को फायदा हो सकता है।
सांसद अक्षय यादव ने शहर में जेडा झाल परियोजना शुरू करवाकर पानी की समस्या कुछ हद तक दूर की है। मेडिकल कॉलेज भी बनवाया है। आगरा लखनऊ एक्सप्रेस-वे से फिरोजाबाद जुड़ा है। कांच उद्योग के चलते यहां ट्रांसपोर्ट महत्वपूर्ण है। इस लोकसभा क्षेत्र में पांच विधानसभा क्षेत्र हैं। फिरोजाबाद, टूंडला, शिकोहाबाद और जसराना में भाजपा के विधायक हैं। सिरसागंज में सपा के विधायक हैं। टूंडला के रामसेवक का कहना है कि यहां पर सबसे बड़ी समस्या पानी की है। जसवंत नगर के रामप्यारे की मानें तो यहां पर सरकारी अस्पताल तो बना खड़ा है लेकिन डॉक्टर आते ही नहीं हैं।
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