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धान की फसल से किसानों का रूझान हटाने के लिए हरियाणा सरकार ने उठाया यह कदम

khaskhabar.com : मंगलवार, 21 मई 2019 6:44 PM (IST)
धान की फसल से किसानों का रूझान हटाने के लिए हरियाणा सरकार ने उठाया यह कदम
चण्डीगढ़ । हरियाणा के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने पानी व अन्य संसाधनों के संरक्षण के लिए धान बाहुल्य जिलों में किसानों का रूझान धान से हटाने व इसके लिए मक्का तथा दलहन व तिलहन जैसी अन्य फसलों की ओर प्रोत्साहित करने के लिए प्रदेश के सात खण्डों असंध, पुण्डरी, नरवाना, थानेसर, अंबाला-1, रादौर व गन्नौर में पायलट परियोजना 27 मई, 2019 से शुरू करने का निर्णय लिया है। इसके लिए विभाग के पोर्टल पर किसानों का पंजीकरण किया जाएगा।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल की अध्यक्षता में हुई बैठक के बाद इस बात का निर्णय लिया गया, जिसकी जानकारी मुख्यमंत्री ने हरियाणा निवास में पत्रकार सम्मेलन में दी।
मुख्यमंत्री ने बताया कि यह योजना देश में अपनी तरह की एक अनूठी होगी जिसे हरियाणा देश में सबसे पहले लागू कर रहा है। उन्होंने बताया कि किसान हित व जलसंरक्षण को देखते हुए विभाग ने यह योजना तैयार की है। इस योजना के तहत गैर-बासमती धान के क्षेत्र में मक्का फसल के विविधकरण होनेे से पानी की कुल बचत 0.71 करोड़ सैंटीमीटर (1 सेंटीमीटर=एक लाख लीटर) होना अपेक्षित है।
उल्लेखनीय है कि राज्य के सात जिलों नामत: यमुनानगर, अंबाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, जींद और सोनीपत धान बाहुल्य क्षेत्र में योजना के तहत इन जिलों के सात खंडों के क्षेत्र से धान की खेती को कम करने का प्रस्ताव है। यह स्कीम किसानों के हित को देखकर बनाई गई है ताकि इस पीढ़ी के किसानों को तो फसल उत्पादन में दोहरा लाभ मिले अपितु आने वाली पीढिय़ों के लिए पानी व अन्य संसाधनों को सरंक्षित किया जा सके।
मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बताया कि राज्य के लिए फसल विविधीकरण वर्तमान के समय की जरूरत है क्योंकि इससे पानी, बिजली की बचत और मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार होगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि 1970 के दशक में मक्का और दलहन हरियाणा की प्रमुख फसलें होती थीं, जोकि अब पूरी तरह से गायब हो चुकी हैं और इसके स्थान पर धान और गेहूं जैसी जलरोधी फसलों ने कब्जा कर लिया है। पुराने मक्का/दलहन क्षेत्र को वापस लाने के लिए धान की फसल का तत्काल विविधीकरण करके इन फसलों के अंतर्गत लाना हमारी प्राथमिकता है।
उन्होंने बताया कि मक्का व अन्य फसलें जैसे अरहर के विविधीकरण के लिए इच्छुक किसानों का एक पोर्टल पर पंजीकृत किया जाएगा। इस योजना के तहत पहचान किए गए किसानों को मुफ्त में बीज उपलब्ध करवाया जाएगा, जिसकी कीमत 1200 रूपये से 2000 रूपये तक है। बीज के अलावा 2000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से वित्तीय सहायता दो चरणों में प्रदान की जाएगी। इसमें 200 रुपए पोर्टल पर पंजीकरण के समय और शेष राशि 1800 रुपए बिजाई किए गए क्षेत्र के सत्यापन उपरांत किसानों के खाते डाले जाएंगे। योजना के तहत मक्का फसल का बीमा प्रीमियम प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत 766 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से भी सरकार द्वारा वहन किया जाएगा।
मनोहर लाल ने बताया कि मक्का उपज भी हैफेड, खाद्य एवं आपूर्ति विभाग जैसी सरकारी खरीद एजेंसियों के माध्यम से न्यूनतम समर्थन मूल्य की दर से की जाएगी। इसी तरह खरीफ सीजन के दौरान 2500 हैक्टेयर क्षेत्र में धान के स्थान पर दलहन फसल (अरहर) का भी विविधीकरण किया जाएगा। किसानों को दलहन फसल का बीज भी नि:शुल्क उपलब्ध करवाया जाएगा और उसी प्रकार से प्रोत्साहन भी दिया जायेगा। हरियाणा में धान को बदलने के लिए मक्का की फसल ही अंतिम उपाय है। मक्का फसल से हरा चारा, बेबी कॉर्न का उत्पादन भी किया जा सकता है जो कई गुना पानी की बचत, गेहूं की उपज में वृद्धि करने तथा जल संरक्षण के लिए उपयुक्त रहेगा। इससे खेती में कम रासायनों की जरूरत पड़ेगी। बेबी कॉर्न व कम अवधि की सब्जी फसलें उगाने से लोगों की प्रतिदिन की स्थानीय आवश्यकताएं तो पूरी होंगी ही साथ ही स्थानीय युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।
फसल विविधता योजना शुरू करने का उद्देश्य पानी, बिजली की बचत और मृदा स्वास्थ्य में सुधार करना भी है। राज्य में धान को अपनाने में प्रमुख चिंता पानी की कमी, बिजली की अधिक खपत, मिट्टी और मानव स्वास्थ्य में गिरावट, भविष्य की समस्याओं जैसे कि भूमिगत पानी के स्तर में गिरावट, भूजल प्रदूषण, गेहूं पर बुरा प्रभाव होता है। क्योंकि गेहूं की बिजाई में देरी के कारण गेहूं की परिपक्वता के समय टर्मिनल ताप का बढऩा जिस कारण गेहूं की पैदावार में कमी हो रही है जिससे किसानों को सीधा नुकसान हो रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर 50,000 हैक्टेयर क्षेत्र में धान के स्थान पर मक्का व अरहर की फसल की बुआई होती है तो गेहूं का उत्पादन 10 प्रतिशत अधिक होने का अनुमान है क्योंकि मक्का की फसल 90 से 100 दिन में पक कर तैयार होती है और 10 अक्तूबर तक खेत खाली हो जाते हैं। इसलिए गेहूं की बिजाई का समय पहले मिल जाता है जबकि धान की फसल तैयार होने में 130 से 140 दिन का समय लगता है और नवम्बर में खेत खाली होते हैं और उसके बाद पराली प्रबन्धन की एक समस्या रहती है।
योजना के तहत शामिल किये गये सात खण्डों में 195357 हैक्टेयर क्षेत्र में धान की फसल होती है जिसमें 45 प्रतिशत अर्थात 87900 हैक्टेयर क्षेत्र में गैर बासमती धान होता है और क्षेत्र में धान की फसल कम करना योजना का मुख्य उद्देश्य है।
मुख्यमंत्री ने जल प्रबन्धन की एक अन्य योजना हरियाणा तालाब प्राधिकरण के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि राष्ट्रीय हरित ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने हरियाणा की इस योजना के लिए प्रशंसा की है और अन्य राज्यों को इसका अनुसरण करने के लिए कहा है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में लगभग 14000 तालाब हैं, जिनके पानी को 3 पोंड व 5 पोंड प्रणाली से उपचारित कर सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है। पहले चरण में 4000 तालाबों में इसे लागू किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि सूखे तालाबों को साल में दो बार भरने की योजना भी चलाई गई है, जिसके फलस्वरूप भूजल स्तर में सुधार हुआ है।
इस योजना के तहत मक्का का बीज मुफ्त दिया जाएगा और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा के प्रीमियम की किस्त भी सरकार द्वारा वहन की जाएगी।
इस अवसर पर मुख्य सचिव डी.एस.ढेसी, मुख्यमंत्री के अतिरिक्त प्रधान सचिव वी.उमाशंकर, राजस्व एवं आपदा प्रबन्धन विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव, केशनी आनंद अरोड़ा, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव ज्योति अरोड़ा, खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, एस.एन.राय, सिचांई एवं जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव अनुराग रस्तोगी, मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार राजीव जैन, सूचना, जन सम्पर्क एवं भाषा विभाग के महानिदेशक, समीर पाल सरो के अलावा अन्य विभागों के वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे।

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