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सोनभद्र : जड़ी-बूटी नष्ट होने से चरमराया आदिवासियों का आर्थिक ढांचा!
इस जंगल में सैकड़ों की तादाद में पलास के पेड़ हैं, जिन में कभी कीड़े लाख (लाही) पैदा करते थे, जिसका प्रयोग सौंदर्य प्रसाधन, चूड़ी और रंग बनाने में होता था और यहां की लाख जर्मनी व फ्रांस तक के व्यापारी खरीद कर ले जाते थे। इस समय बाजार में लाख की कीमत छह सौ रुपये प्रति किलोग्राम बताई जा रही है।
अब भी जड़ी-बूटियां बेचकर अपने परिवार की जीविका चलाने वाले म्योरपुर विकास खंड के परनी गांव का आदिवासी युवक अमरजीत अगरिया बताता है कि उसके पूर्वज जड़ी-बूटी और अन्य वन संपदा गांव-देहात में बेचकर आराम से दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर लेते थे, लेकिन वायु और जल में प्रदूषण की बाढ़ से जड़ी-बूटियां भी नष्ट हो चुकी हैं और लाख पैदा करने वाले कीड़े भी मर गए हैं।
अमरजीत कहता है, "सोन और हरदी पहाड़ी में अब भी कुछ जड़ी-बूटियां बची हैं, जो अब स्वर्ण अयस्क की खुदाई में नष्ट हो जाएंगी।" उसके मुताबिक, इन दोनों पहाड़ियों में विश्व के सबसे जहरीले सांप भी रहते हैं और यहां इन सांपों का जहर उतारने की जड़ी-बूटियां भी हैं। खुदाई से जहां विलुप्त प्रजाति के सांप खत्म होंगे, वहीं इनका विष उतारने वाली आयुर्वेद दवा भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाएगी।
गोहड़ा गांव का मंगलदेव, सोमारू और राजेंद्र बताते हैं कि जब से तीन हजार टन सोना मिलने की अफवाह फैली, तब से अधिकारी उन्हें सोन व हरदी पहाड़ी में जड़ी-बूटियां नहीं खोदने देते। इसके पहले दर्जनों की तादाद में आदिवासी यहां से दवा खोदकर बेचते रहे हैं।
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सोनभद्र
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