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हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की उपलब्धि, मक्खन और घी से निकल सकेंगे पेस्टिसाइड

khaskhabar.com : मंगलवार, 12 जून 2018 6:51 PM (IST)
हिसार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की उपलब्धि, मक्खन और घी से निकल सकेंगे पेस्टिसाइड
हिसार। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार को विश्लेषणात्मक तकनीक शीर्षक ‘मक्खन/घी में बहु-अवशेष (मल्टी रेज़ड्यू)के आकलन की पद्घति’ के लिए पेटेंट प्रदान किया गया है। केन्द्र सरकार के पेटेंट कार्यालय भारतीय बौद्घिक सम्पदा द्वारा यह पेटेंट 20 वर्षों के लिए दिया गया है। विश्वविद्यालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि कुलपति प्रो. के.पी.सिंह ने इस तकनीक के विकास के लिए विश्वविद्यालय के कीटविज्ञान विभाग की सीनियर एनालेटिकल केमिस्ट (सेवानिवृत्त) डॉ. बीना कुमारी और उनकी टीम के रिसर्च एसोसिएट डॉ. शशि सिंह, डॉ. जगदीप सिंह और सीनियर पेस्टीसाइड केमिस्ट (सेवानिवृत्त) डॉ. टी.एस.कठपाल को बधाई दी है।

उन्होंने बताया कि विशेषकर कृषि के मौजूदा परिदृश्य में पर्यावरण अवयवों और खाद्य वस्तुओं में कीटनाशक अवशेष एक गंभीर वैश्विक समस्या है और स्वास्थ्य के लिए चुनौती है। सभी श्रेणियों के कीटनाशकों के अवशेषों की पहचान के लिए केवल एक तरह के कीटनाशकों हेतु आकलन तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसलिए, गैस लिक्विड क्रोमैटोग्राफी का इस्तेमाल करके मक्खन व घी में एक साथ ओर्गेनोक्लोरिन, सिंथेटिक, पाइरेथरॉइड्स, ओर्गेनोफास्फेट्स और कार्बामेट्स से संबंधित कीटनाशकों के सभी चारों प्रमुख समूहों के दूषित पदार्थों के निर्धारण के लिए तीव्र, साधारण और प्रामाणिक तकनीक विकसित की गई है।

उन्होंने बताया कि चूंकि यह तकनीक अति साधारण और संवेदनशील है तथा इसमें समय भी कम लगता है। इसलिए इसे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यवसाय में दूध के साथ-साथ मक्खन और घी बनाने वाले डेरी उद्योगों और दुग्ध संयंत्रों द्वारा अपनाया जा सकता है। इस तकनीक को अपनाने से अवशेषों की मौजूदगी के साथ-साथ उनके स्तर का भी पता लगाया जा सकता है। इससे वे कीटनाशक अवशेषों को हटाने के लिए पहले से मौजूद परिशोधन प्रक्रिया का इस्तेमाल कर सकते हैं और उपभोक्ताओं को भारतीय खाद्य सुरक्षा मानक प्राधिकरण द्वारा निर्धारित अधिकतम अवशेष सीमा से कम अवशेषों के साथ या अवशेष मुक्त मक्खन या घी उपलब्ध करवा सकते हैं।

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