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लोहड़ी के उल्लास में डूबे लोग
लोहड़ी का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व है स्थानीय भाषा में यह कहावत काफी
प्रसिद्घ है कि ‘आई लोहड़ी गया शीत कोढ़ी‘ अर्थात लोहड़ी आने से शीत का
प्रकोप कम हो जाता है। इसे खिचड़ी का त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है।
इस पर्व को दक्षिण भारत में पोंगल, पश्चिम बंगाल में मकर सक्रांति और असम
में बिहू के नाम से मनाया जाता है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान में 12 राशियां
मानी गयी हैं एवं प्रत्येक राशि में प्रत्येक माह में संक्रमण होता है।
ज्योतिष में मकर राशि का स्वामी शनि तथा प्रतीक चिन्ह मकर को माना गया है।
हिन्दू धर्म तथा संस्कृति में मकर एक पवित्र जीव है। मकर संक्रान्ति में सूर्य अपना पथ परिवर्तित कर उत्तरायण में प्रविष्ट होते हैं अत: इसे अत्यंत पवित्रा माना जाता है। प्रत्यक्षत: मकर-सक्रान्ति से ऋतु-परिवर्तन रेखाकिंत किया जाता है तथा इसी पावन दिवस से क्रमश: दिन तथा रात्रि के समयमान में परिवर्तन होता है। लोहड़ी का त्यौहार विकराल शीत से राहत पहुंचने का संकेत देता है।
इसे सूर्योपासना का प्रमुख पर्व भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार इसी दिन विष्णु ने असुरों का संहार किया। अन्य शब्दों में उन्होंने नकारात्मक शक्ति का संहार कर सकारात्मक शक्ति की स्थापना इसी दिन की। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगीरथ ने गंगा सागर में अपने पितरों का तर्पण किया और इसीदिन स्वर्ग से गंगा पृथ्वी पर आकर सागर से मिली। देवव्रत भीष्म ने इसी अवसर की प्रतीक्षा शरशैया पर की थी और सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्यागे थे।
हर साल हिमाचल प्रदेश में राज्य स्तरीय मेला कांगड़ा जिला के धरोहर गांव प्रागपुर में हर्षोल्लास एवं पारंपरिक गरिमा के साथ मनाया जाता है। इस मेले को आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न जिलों से सांस्कृतिक दलों को भी आमंत्रित किया गया है इसके अतिरिक्त मेले में विद्युत आपूर्ति, पेयजल और कानून एवं व्यवस्था बनाने के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं।
अत: कहा जा सकता है कि लोहड़ी का पर्व अपना ऐतिहासिक, नैतिक, सामाजिक, धर्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व रहता है। यह पर्व सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारे और खुशहाली का संदेश भी देता है जिससे राष्ट्र की एकता और अखंडता को बल मिलता है।
हिन्दू धर्म तथा संस्कृति में मकर एक पवित्र जीव है। मकर संक्रान्ति में सूर्य अपना पथ परिवर्तित कर उत्तरायण में प्रविष्ट होते हैं अत: इसे अत्यंत पवित्रा माना जाता है। प्रत्यक्षत: मकर-सक्रान्ति से ऋतु-परिवर्तन रेखाकिंत किया जाता है तथा इसी पावन दिवस से क्रमश: दिन तथा रात्रि के समयमान में परिवर्तन होता है। लोहड़ी का त्यौहार विकराल शीत से राहत पहुंचने का संकेत देता है।
इसे सूर्योपासना का प्रमुख पर्व भी कहा जाता है। पौराणिक मान्यतानुसार इसी दिन विष्णु ने असुरों का संहार किया। अन्य शब्दों में उन्होंने नकारात्मक शक्ति का संहार कर सकारात्मक शक्ति की स्थापना इसी दिन की। यह भी कहा जाता है कि इसी दिन भगीरथ ने गंगा सागर में अपने पितरों का तर्पण किया और इसीदिन स्वर्ग से गंगा पृथ्वी पर आकर सागर से मिली। देवव्रत भीष्म ने इसी अवसर की प्रतीक्षा शरशैया पर की थी और सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्यागे थे।
हर साल हिमाचल प्रदेश में राज्य स्तरीय मेला कांगड़ा जिला के धरोहर गांव प्रागपुर में हर्षोल्लास एवं पारंपरिक गरिमा के साथ मनाया जाता है। इस मेले को आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न जिलों से सांस्कृतिक दलों को भी आमंत्रित किया गया है इसके अतिरिक्त मेले में विद्युत आपूर्ति, पेयजल और कानून एवं व्यवस्था बनाने के लिए व्यापक प्रबंध किए गए हैं।
अत: कहा जा सकता है कि लोहड़ी का पर्व अपना ऐतिहासिक, नैतिक, सामाजिक, धर्मिक तथा ऐतिहासिक महत्त्व रहता है। यह पर्व सामाजिक सौहार्द, आपसी भाईचारे और खुशहाली का संदेश भी देता है जिससे राष्ट्र की एकता और अखंडता को बल मिलता है।
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