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पर्युषण पर्व का क्षमावाणी के साथ समापन

khaskhabar.com : शुक्रवार, 08 सितम्बर 2017 09:00 AM (IST)
पर्युषण पर्व का क्षमावाणी के साथ समापन
सवाई माधोपुर। दिगम्बर जैन समाज के पर्वाधिराज पर्युषण महापर्व की शुरूआत क्षमा धर्म से होती है और समापन भी क्षमावाणी पर्व के रूप में होती है। इसमें मन, वचन और काया द्वारा जाने-अनजाने में हुई गलततियों, भूलों के लिए सभी जीवों से क्षमा मांगी जाती है और क्षमा की जाती है। क्षमा में सत्य का बल होता है तथा प्रेम, आस्था, ममता व समता का रस होता है।

पर्युषण पर्व के अवसर पर सकल दिगम्बर जैन समाज द्वारा क्षमावाणी पर्व मनाया गया। इस दौरान नगर परिषद क्षेत्र में स्थित सभी 14 जिनालयों में विशेष रूप से सुबह क्षमावाणी की पूजन की गई तथा सांयकाल जिनेन्द्र भगवान के बड़े कलशाभिषेक, श्रीजी की माल, क्षमावाणी कार्यक्रमों की धूम रही। साथ ही उपवास करने वाले तपस्वियों का बहुमान किया गया।

समाज के प्रवक्ता प्रवीण जैन ने बताया कि समाज के सभी व्यक्ति एकत्रित होकर शहर स्थित जिनालयों में पहुँचकर जिनेन्द्र भगवान के कलशाभिषेक कार्यक्रमों में शामिल हुये।
कलशाभिषेक कार्यक्रम के पश्चात मुख्य रूप से क्षमा याचना स्थल शहर के पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर में समाज के अध्यक्ष पदम कुमार छाबड़ा के नेतृत्व में समाज के सभी व्यक्ति क्षमावाणी मनाने के लिए एकत्रित हुऐ।

इस दौरान शिक्षाविद् व स्वाध्यायी विमलचन्द जैन श्रीमाल ने सारगर्भित शब्दों में क्षमावाणी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पर्युषण पर्व में दस दिन निरन्तर धर्म की आराधना करते हुए मन में जो निर्मलता व पवित्रता उत्पन्न होती है, उसी का वाणी में प्रकट होना ही क्षमावाणी है। साथ ही अन्य वक्ताओं ने भी क्षमावाणी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पर्व का अर्थ है जो हमारी आत्मा को पवित्र कर दे, जो हमारी आत्मा को पापों से बचाये, जो हमारी आत्मा को पुण्य का संचय करा दे। ऐसे आत्मिक क्षण ही पर्व कहलाते है। राग और द्वैष दोनों में साम्य भाव रखकर सभी जीवों की रक्षा करना, उनके प्रति क्षमा भाव धारण करना ही धर्म है। मनुष्य के जीवन में अज्ञान, अहंकार व प्रमादवश भूल हो जाना स्वभाविक है। आत्मशुद्धि के पावन पुनीत पर्व-क्षमावाणी पर जो क्षमा करते है और क्षमा मांगते है वही संसाररूपी समुद्र को पार कर लेते है। उन्होंने कहा कि वैर-भाव का त्याग कर, क्षमा-भाव धारण करने से मनुष्य का कल्याण हो सकता है तथा क्षमा करने से ही परमार्थ की सिद्धि हो सकती है। “क्षमा मानव जीवन की शोभा है, क्षमा हृदय का आभूषण है।‘‘ क्षमावाणी पर सभी को यह संदेश दिया गया।

इस दौरान समाज के अध्यक्ष पदम कुमार छाबड़ा, महामंत्री विनय पापड़ीवाल, कोषाध्यक्ष अशोक पांड्या, मंदिर समितियों एवं सामाजिक संगठनों के पदाधिकारियों सहित काफी संख्या में समाज के गणमान्य महिला पुरूष मौजूद थे।

इसके बाद सभी ने आपस में जाने -अनजाने में हुई भूलों के लिए हाथ जोड़कर एक-दूसरे से क्षमा मांगी, गले मिले, बडे़ बुर्जुगों के चरण स्पर्श किये। साथ ही घर-घर जाकर भी क्षमा मांगी और मिश्री-गोला भेंट में दिये गऐ।

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