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तंजौर पेंटिंग वर्कशॉप का ऑनलाईन आयोजन
जयपुर । भारत की प्राचीन पारंपरिक कला शैलियों में से एक तंजौर पेंटिंग पर आधारित पेंटिंग वर्कशॉप का आयोजन राजस्थान स्टूडियो की सहायता से शुक्रवार को किया गया। भारत की आर्टिस्ट कम्यूनिटी ‘द सर्किल‘ के लिये आयोजित इस निःशुल्क वर्कशॉप का संचालन चेन्नई के प्रसिद्ध कलाकार गुरु डॉ. शिवाजी संतोष ने किया। वर्कशॉप सिरीज़ का आयोजन आजादी का अमृत महोत्सव - सेलिब्रेटिंग इंडिया एट 75 के तहत किया जा रहा है।
कला संत के रूप में प्रसिद्ध शिवाजी संतोष ने बताया कि तंजौर पेंटिंग का इतिहास 1670 के दशक से संबंधित है। मराठा दरबार द्वारा इस कला को संरक्षण मिला जो तंजौर के प्रशासक भी थे। तमिलनाडु में मराठों के शासन से भी पहले भित्ति रेखाचित्रों के आधार पर इस कला को तंजौर पेंटिंग का नाम मिला। सोने एवं रत्नों के उपयोग के आधार पर मैसूर पेंटिंग और तंजौर पेंटिंग को पहचाना जाता है। उन दिनों शाही परिवारों द्वारा तंजौर पेंटिंग, मैसूर पेंटिंग, केरला म्यूराल पेंटिंग, राजस्थान पेंटिंग और मिथिला पेंटिंग कलाओं संरक्षण किया जाता था। तंजौर पेंटिंग मूल रूप से लकड़ी के तख्त पर की जाती है। इसमें आकर्षक रंगों और विवरण के साथ चित्र इसकी विशेषता होती है, जो मूल रूप से सोने की पन्नी और कीमती रत्नों से सुसज्जित होते हैं।
विशेषज्ञों द्वारा पेशेवर रूप से बनाई गई तंजौर पेंटिंग 3 से 4 पीढ़ियों तक चलती है, यहां तक कि कभी-कभी 5वीं पीढ़ी तक भी अगर ऐतिहात से रखा जाए। तंजौर पेंटिंग के माध्यम से पारिवारिक इतिहास एवं नामों का गुप्त संचार के रूप में आगामी पीढ़ियों तक पहुचाने के लिये भी एन्क्रिप्ट किया जाता है। विभिन्न महत्वपूर्ण अवसरों के दौरान मेहमानों को सम्मानित करने के लिए तंजौर पेंटिंग को सबसे कीमती एवं शानदार उपहार के रूप में भी देखा जाता है। यह कला, लालित्य, समृद्धि और सकारात्मकता का प्रतीक है। बहुत से लोग तंजौर पेंटिंग को समृद्धि और धन सम्पदा का प्रतीक मानते हैं, जो उनके जीवन को सुखद बना देगा।
कला संत के रूप में प्रसिद्ध शिवाजी संतोष ने बताया कि तंजौर पेंटिंग का इतिहास 1670 के दशक से संबंधित है। मराठा दरबार द्वारा इस कला को संरक्षण मिला जो तंजौर के प्रशासक भी थे। तमिलनाडु में मराठों के शासन से भी पहले भित्ति रेखाचित्रों के आधार पर इस कला को तंजौर पेंटिंग का नाम मिला। सोने एवं रत्नों के उपयोग के आधार पर मैसूर पेंटिंग और तंजौर पेंटिंग को पहचाना जाता है। उन दिनों शाही परिवारों द्वारा तंजौर पेंटिंग, मैसूर पेंटिंग, केरला म्यूराल पेंटिंग, राजस्थान पेंटिंग और मिथिला पेंटिंग कलाओं संरक्षण किया जाता था। तंजौर पेंटिंग मूल रूप से लकड़ी के तख्त पर की जाती है। इसमें आकर्षक रंगों और विवरण के साथ चित्र इसकी विशेषता होती है, जो मूल रूप से सोने की पन्नी और कीमती रत्नों से सुसज्जित होते हैं।
विशेषज्ञों द्वारा पेशेवर रूप से बनाई गई तंजौर पेंटिंग 3 से 4 पीढ़ियों तक चलती है, यहां तक कि कभी-कभी 5वीं पीढ़ी तक भी अगर ऐतिहात से रखा जाए। तंजौर पेंटिंग के माध्यम से पारिवारिक इतिहास एवं नामों का गुप्त संचार के रूप में आगामी पीढ़ियों तक पहुचाने के लिये भी एन्क्रिप्ट किया जाता है। विभिन्न महत्वपूर्ण अवसरों के दौरान मेहमानों को सम्मानित करने के लिए तंजौर पेंटिंग को सबसे कीमती एवं शानदार उपहार के रूप में भी देखा जाता है। यह कला, लालित्य, समृद्धि और सकारात्मकता का प्रतीक है। बहुत से लोग तंजौर पेंटिंग को समृद्धि और धन सम्पदा का प्रतीक मानते हैं, जो उनके जीवन को सुखद बना देगा।
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