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Bihar: बिहार में लीची के लिए अपनाई नई तकनीक, अब और भी ज्यादा होगी रसीली
डॉ. विशालनाथ ने बताया कि पूरब से पश्चिम दिशा में लगाने से लीची के हर पौधे को सूरज की रोशनी मिलेगी। इससे पौधा पुष्ट होगा और मजबूत पेड़ तैयार होगा। मजबूत पेड़ में लीची की मिठास और आकार दोनों में वृद्धि होगी। लीची के पेड़ को नियमित सूरज की रोशनी मिलने से उस पर कीट का प्रभाव भी कम पड़ने की संभावना रहेगी और उसे सौर ऊर्जा मिलती रहेगी।"
उन्होंने कहा कि इस विधि से तापमान बढ़ने का भी कम प्रभाव पड़ेगा। वे मानते हैं कि पहले लोग वर्गाकार पद्धति से पौधे लगाते थे। उन्होंने कहा कि पहले लोग पेड़ को अपने तरीके से बढ़ने देते थे और पेड़ झंझावत भी झेलते थे। जलवायु परिवर्तन के मौजूदा दौर में पेड़ पर दोतरफा मार पड़ रही है। वर्तमान विधि में पेड़ों को छोटा रखने के बाद किसान इसका प्रबंधन भी ठीक तरीके से कर सकेंगे।
डॉ. विशालनाथ ने कहा कि लीची उत्पादन की इस विधि के लिए संस्थान उन्नत किस्म के पौधे भी तैयार कर रहा है। क्षेत्र विस्तार योजना के तहत राज्य में ही नहीं, अन्य राज्यों- उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड में भी नई विधि से लीची उत्पादन का प्रशिक्षण दे रहा है।
उन्होंने बताया कि आमतौर पर फिलहाल एक हेक्टेयर में करीब सात टन लीची का उत्पदान होता है। डॉ. विशालनाथ का दावा है कि वर्ष 2050 तक देश में लीची का उत्पदान 17 लाख टन करने का लक्ष्य है। वर्तमान समय में लीची का उत्पादन करीब सात लाख टन है।
(आईएएनएस)
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