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स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी की भूमिका को भुलाया नहीं जा सकता : आंध्र राज्यपाल
अमरावती। आंध्र प्रदेश के राज्यपाल बिस्वा भूषण हरिचंदन ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को उनकी 125वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। राजभवन में नेताजी की स्मृति में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया।
उन्होंने कहा, "महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान पर लाखों लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। नेताजी शांतिपूर्ण विरोध में विश्वास नहीं करते थे, हालांकि वह महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे।"
हरिचंदन ने कहा कि नेताजी ने महात्मा गांधी को स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता के रूप में स्वीकार किया था।
उन्होंने कहा कि नेताजी का ²ढ़ विश्वास था कि शक्तिशाली ब्रिटिश सत्ता को शांतिपूर्ण तरीकों से देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, इसलिए उन्हें लगता था कि सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है।
राज्यपाल ने कहा कि नेताजी ने अपना आधार सिंगापुर में स्थानांतरित कर लिया और आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत को ब्रिटिश बेड़ियों से मुक्त करने के लिए जर्मनों और जापानियों के साथ हाथ मिलाकर ब्रिटिश सेना के खिलाफ सैन्य संघर्ष छेड़ा।
उन्होंने कहा, "भारत न केवल एक स्वतंत्र राष्ट्र है, बल्कि सैन्य और आर्थिक दोनों रूप से विश्व की एक बड़ी शक्ति भी है।" राज्यपाल ने कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों के कारण ही हमारा देश समृद्ध बना है।
हरिचंदन ने कहा कि नेताजी का युवाओं को किया आह्वान, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुन्हें आजादी दूंगा' ने एक सनसनी पैदा कर दी थी, जिससे बड़ी संख्या में युवा ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान में शामिल हुए।
इसके बाद हरिचंदन ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में अपना योगदान भी दिया।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात की। हरिचंदन ने एक चेक के माध्यम से अपना योगदान दिया।"
प्रतिनिधिमंडल में वाई. राघवुलु, दुर्गा प्रसाद राजू, भारत कुमार और कृष्ण प्रसाद शामिल थे।
--आईएएनएस
उन्होंने कहा, "महात्मा गांधी द्वारा भारत छोड़ो आंदोलन के आह्वान पर लाखों लोग स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। नेताजी शांतिपूर्ण विरोध में विश्वास नहीं करते थे, हालांकि वह महात्मा गांधी का बहुत सम्मान करते थे।"
हरिचंदन ने कहा कि नेताजी ने महात्मा गांधी को स्वतंत्रता आंदोलन के महान नेता के रूप में स्वीकार किया था।
उन्होंने कहा कि नेताजी का ²ढ़ विश्वास था कि शक्तिशाली ब्रिटिश सत्ता को शांतिपूर्ण तरीकों से देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता है, इसलिए उन्हें लगता था कि सशस्त्र संघर्ष आवश्यक है।
राज्यपाल ने कहा कि नेताजी ने अपना आधार सिंगापुर में स्थानांतरित कर लिया और आजाद हिंद फौज का गठन किया और भारत को ब्रिटिश बेड़ियों से मुक्त करने के लिए जर्मनों और जापानियों के साथ हाथ मिलाकर ब्रिटिश सेना के खिलाफ सैन्य संघर्ष छेड़ा।
उन्होंने कहा, "भारत न केवल एक स्वतंत्र राष्ट्र है, बल्कि सैन्य और आर्थिक दोनों रूप से विश्व की एक बड़ी शक्ति भी है।" राज्यपाल ने कहा कि हमारे स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा किए गए बलिदानों के कारण ही हमारा देश समृद्ध बना है।
हरिचंदन ने कहा कि नेताजी का युवाओं को किया आह्वान, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुन्हें आजादी दूंगा' ने एक सनसनी पैदा कर दी थी, जिससे बड़ी संख्या में युवा ब्रिटिश शासन का विरोध करने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान में शामिल हुए।
इसके बाद हरिचंदन ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण में अपना योगदान भी दिया।
एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के एक प्रतिनिधिमंडल ने शनिवार को राजभवन में राज्यपाल से मुलाकात की। हरिचंदन ने एक चेक के माध्यम से अपना योगदान दिया।"
प्रतिनिधिमंडल में वाई. राघवुलु, दुर्गा प्रसाद राजू, भारत कुमार और कृष्ण प्रसाद शामिल थे।
--आईएएनएस
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