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राजस्थान में वाटर लिट्रेसी मूवमेंट की जरूरत - राजेंद्र सिंह
जयपुर । मैग्सेसे अवार्ड विजेता राजेंद्र सिंह ने कहा है कि पानी को लेकर अब राजस्थान में वाटर लिट्रेसी मूवमेंट की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पहले राजस्थान पानी के संचयन को लेकर दुनिया को सिखाता था, लेकिन अब खुद राजस्थान के लोगों को पानी का संचयन सीखने की जरूरत है। जल एवं स्वच्छता सहयोग संगठन और यूनिसेफ के सहयोग से जल संचयन एवं संरक्षण विषय पर आयोजित कार्यशाला में राजेंद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश में जल सुरक्षा को लेकर एक एक्ट बनाने की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में तो वाटर लिट्रेसी मूवमेंट की वजह से पानी का संचयन तेजी से शुरू हो चुका है।
उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता को पानी का महत्व बताना जरूती है, जिससे पानी का संचयन खुद कर सके और साफ-सुधरा पानी उन्हें मिल सके। उन्होंने कहा कि पानी का सबसे बड़ा चोर सूरज देवता है। जब बड़े-बड़े डैम बनते है, तो इंजीनियर जिओ हाइ्ड्रो साइंटिस्ट को बुलाना उचित नहीं समझते है, इस बार के बचाव में कुछ सुझाव दे सके। उन्होंने कहा बताया कि जनआंदोलन के जरिये तरुण भारत संघ ने 11 हजार 800 वाटर स्ट्रेक्चर तैयार किए थे। लेकिन अब इस तरह का कार्य कराने के लिए जनजागरूता की जरूरत है।
कार्यशाला में जलदाय विभाग के प्रमुख शासन सचिव संदीप वर्मा ने कहा कि जल संचयन और संरक्षण के लिए वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना होगा। साथ ही शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जल संचयन और संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलानी होगी। इसके अलावा परंपरागत जलस्त्रोतों के संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश की जनता को पानी का महत्व बताना जरूती है, जिससे पानी का संचयन खुद कर सके और साफ-सुधरा पानी उन्हें मिल सके। उन्होंने कहा कि पानी का सबसे बड़ा चोर सूरज देवता है। जब बड़े-बड़े डैम बनते है, तो इंजीनियर जिओ हाइ्ड्रो साइंटिस्ट को बुलाना उचित नहीं समझते है, इस बार के बचाव में कुछ सुझाव दे सके। उन्होंने कहा बताया कि जनआंदोलन के जरिये तरुण भारत संघ ने 11 हजार 800 वाटर स्ट्रेक्चर तैयार किए थे। लेकिन अब इस तरह का कार्य कराने के लिए जनजागरूता की जरूरत है।
कार्यशाला में जलदाय विभाग के प्रमुख शासन सचिव संदीप वर्मा ने कहा कि जल संचयन और संरक्षण के लिए वाटर हार्वेस्टिंग को बढ़ावा देना होगा। साथ ही शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जल संचयन और संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलानी होगी। इसके अलावा परंपरागत जलस्त्रोतों के संरक्षण पर भी ध्यान देना होगा।
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