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शोषित वर्ग की आवाज थे मुंशी प्रेमचंद

नई दिल्ली। हिंदी के महान कथाकार मुंशी प्रेमचंद सिर्फ एक लेखक नहीं थे, बल्कि उनकी लेखनी ने समाज को आईना दिखाने और उसे दिशा देने का काम किया है। उनकी रचनाएं आज भी अपनी भूमिका निभा रही हैं, भले ही प्रेमचंद सशरीर समाज में मौजूद नहीं हैं। प्रेमचंद की कलम से निकले एक-एक शब्द समाज के सबसे पिछड़े वर्ग की आवाज हैं। वह आवाज आज भी गूंज रही है।
यही कारण है कि प्रेमचंद को सम्राट की उपाधि मिली, उपन्यास सम्राट। किसी लेखक के लिए यह शब्द शायद पहली बार इस्तेमाल किया गया। ऐसे महान रचनाकार का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में एक साधारण परिवार में 31 जुलाई, 1880 को हुआ था।
प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई थी। वह जब सात वर्ष के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया और 14 वर्ष की आयु में प्रेमचंद का विवाह कर दिया गया। यह विवाह सफल नहीं रहा। इसके कुछ समय बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया।
गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीडऩ जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां प्रेमचंद के साहित्य सृजन को कमजोर नहीं कर पाईं, बल्कि इन परिस्थितियों ने उनकी लेखनी को और धार ही दिया।
‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘पूस की रात’ जैसी कालजयी कहानियों में प्रेमचंद की लेखनी की धार देखी जा सकती है। ये कहानियां आज भी किसी भी पाठक को हिलाकर रख देने की काबीलियत रखती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल में अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रेमचंद की तीन कहानियों- ‘ईदगाह’, ‘नशा’ और ‘पूस की रात’ का उल्लेख किया था।
प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय, संस्मरण लगभग सभी विधाओं में अपनी कलम चलाई। ‘गबन’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘कर्मभूमि’ जैसे उनके उपन्यास आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं।
उन्होंने ‘गोदान’ जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की, जिसे एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है।
प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक और आर्थिक विषमता, शोषण और कुरीतियां प्रमुख रूप से प्रतिबिंबित होती हैं। वह विधवा-विवाह के समर्थक थे और उन्होंने स्वयं 1906 में एक विधवा शिवरानी से विवाह किया। इनसे उनकी तीन संतानें हुईं।
वर्ष 1910 में राष्ट्रप्रेम से प्रेरित होने के कारण उनकी रचना ‘सोजे वतन’ को तत्कालीन ब्रिटिश शासन ने जब्त कर लिया गया था और उसकी सारी प्रतियां जला दी गई थीं। प्रेमचंद के लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बगैर अनुमति उन्हें कुछ भी लिखने की इजाजत नहीं थी। लेकिन उन्होंने लेखन बंद नहीं किया।
वह अब तक अपनी सारी रचनाएं नवाबराय के नाम से प्रकाशित करते थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने प्रेमचंद नाम अपना लिया और इसी नाम से लिखने लगे। और प्रेमचंद ने जो लिखा वह सबके सामने है। वह हिंदी के एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्हें देश ही नहीं, दुनिया भर में जाना-पहचाना जाता है।
ऐसा महान रचनाकार 8 अक्टूबर, 1936 को इस दुनिया से विदा हो गया। वह सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत आज भी हमें दिशा देने का काम कर रही है।
(आईएएनएस)
यही कारण है कि प्रेमचंद को सम्राट की उपाधि मिली, उपन्यास सम्राट। किसी लेखक के लिए यह शब्द शायद पहली बार इस्तेमाल किया गया। ऐसे महान रचनाकार का जन्म उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के लमही गांव में एक साधारण परिवार में 31 जुलाई, 1880 को हुआ था।
प्रेमचंद की आरंभिक शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई थी। वह जब सात वर्ष के थे, तभी उनकी मां का निधन हो गया और 14 वर्ष की आयु में प्रेमचंद का विवाह कर दिया गया। यह विवाह सफल नहीं रहा। इसके कुछ समय बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया।
गरीबी, अभाव, शोषण तथा उत्पीडऩ जैसी जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियां प्रेमचंद के साहित्य सृजन को कमजोर नहीं कर पाईं, बल्कि इन परिस्थितियों ने उनकी लेखनी को और धार ही दिया।
‘दो बैलों की कथा’, ‘ईदगाह’, ‘पूस की रात’ जैसी कालजयी कहानियों में प्रेमचंद की लेखनी की धार देखी जा सकती है। ये कहानियां आज भी किसी भी पाठक को हिलाकर रख देने की काबीलियत रखती हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी हाल में अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में प्रेमचंद की तीन कहानियों- ‘ईदगाह’, ‘नशा’ और ‘पूस की रात’ का उल्लेख किया था।
प्रेमचंद ने उपन्यास, कहानी, नाटक, समीक्षा, लेख, संपादकीय, संस्मरण लगभग सभी विधाओं में अपनी कलम चलाई। ‘गबन’, ‘सेवासदन’, ‘निर्मला’, ‘कर्मभूमि’ जैसे उनके उपन्यास आज भी अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए हैं।
उन्होंने ‘गोदान’ जैसे कालजयी उपन्यास की रचना की, जिसे एक आधुनिक क्लासिक माना जाता है।
प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक और आर्थिक विषमता, शोषण और कुरीतियां प्रमुख रूप से प्रतिबिंबित होती हैं। वह विधवा-विवाह के समर्थक थे और उन्होंने स्वयं 1906 में एक विधवा शिवरानी से विवाह किया। इनसे उनकी तीन संतानें हुईं।
वर्ष 1910 में राष्ट्रप्रेम से प्रेरित होने के कारण उनकी रचना ‘सोजे वतन’ को तत्कालीन ब्रिटिश शासन ने जब्त कर लिया गया था और उसकी सारी प्रतियां जला दी गई थीं। प्रेमचंद के लेखन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। बगैर अनुमति उन्हें कुछ भी लिखने की इजाजत नहीं थी। लेकिन उन्होंने लेखन बंद नहीं किया।
वह अब तक अपनी सारी रचनाएं नवाबराय के नाम से प्रकाशित करते थे, लेकिन इसके बाद उन्होंने प्रेमचंद नाम अपना लिया और इसी नाम से लिखने लगे। और प्रेमचंद ने जो लिखा वह सबके सामने है। वह हिंदी के एक ऐसे रचनाकार हैं, जिन्हें देश ही नहीं, दुनिया भर में जाना-पहचाना जाता है।
ऐसा महान रचनाकार 8 अक्टूबर, 1936 को इस दुनिया से विदा हो गया। वह सशरीर हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी विरासत आज भी हमें दिशा देने का काम कर रही है।
(आईएएनएस)
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