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मध्य प्रदेश : 13 साल में 26 दुष्कर्मियों को सुनाई जा चुकी है फांसी की सजा, लेकिन...
भोपाल। राज्य की राजधानी भोपाल में मासूम संग दुष्कर्म और फिर उसकी हत्या करने वाले दरिंदे विष्णु प्रसाद को फांसी की सजा दिए जाने की मांग उठ रही है, मगर हैरान करने वाली बात यह है कि राज्य की विभिन्न जेलों में 26 ऐसे दरिंदे पड़े हुए हैं, जिन्हें निचली अदालतें फांसी की सजा सुना चुकी हैं, उच्च और सर्वोच्च न्यायालय में फैसला न हो पाने के कारण मौत के हकदार इन दोषियों की जिंदगी बढ़ती जा रही है। राजधानी में आठ साल की मासूम को हवस का शिकार बनाकर उसे मौत के घाट उतारे जाने की घटना से हर वर्ग आक्रोशित है।
लोग सडक़ों पर उतरकर रोष जाहिर कर रहे हैं, हर तरफ से मांग उठ रही है कि आरोपी विष्णु प्रसाद को सख्त से सख्त सजा दी जाए। उसे फांसी की सजा हो, ताकि आगे कोई वहशी किसी मासूम के साथ दरिंदगी करने की हिम्मत न कर सके। लेकिन कहानी सिर्फ यही नहीं, बल्कि ऐसी और भी कई कहानियां हैं, जो अंतिम फैसले का इंतजार कर रही हैं। राज्य में बीते 13 सालों में मासूमों के साथ हुई दरिंदगी और उस पर निचली अदालतों के फैसलों पर गौर करें तो 26 ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है।
मगर उनमें से एक पर भी अब तक अमल नहीं हो पाया है। क्योंकि निचली अदालत के फैसलों पर या तो उच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया, या फिर सर्वोच्च न्यायालय ने। ऊंची अदालतों में मामले अब भी विचाराधीन हैं। सतना जिले के उचेहरा थाना क्षेत्र के परसमनिया गांव में शिक्षक महेंद्र सिंह गौड़ ने 30 जून 2018 को अपने घर के बाहर सो रही चार साल की मासूम को अगवा कर उसे अपनी हवस का शिकार बनाया था, और जान से मारने की कोशिश की थी। मासूम की खुशनसीबी रही कि वह बच गई।
उसे लगभग ढाई माह तक जीवन और मौत के बीच संघर्ष करना पड़ा। नागौद के अपर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा ने 81 दिनों में मामले की सुनवाई कर आरोपी को दोषी करार दिया और उसे फांसी की सजा सुनाई। उसके बाद गौड़ को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिली। उसे दो मार्च 2019 को फांसी की सजा दिए जाने का डेथ वारंट भी जारी हो गया था, मगर सर्वोच्च न्यायालय से स्थगन मिलने पर फांसी की सजा स्थगित कर दी गई।
महेंद्र वर्तमान में जबलपुर के केंद्रीय जेल में है। इसी तरह का एक अन्य मामला भोपाल के रोशनपुरा के ग्वाल मोहल्ले का है। सतनाम की पांच वर्षीय बेटी को दिलीप बनकर ने 20 अगस्त 2005 को अपनी हवस का शिकार बनाया और बाद में बालिका की हत्या कर दी। इस मामले की लगभग सात साल जिला एवं सत्र न्यायालय में सुनवाई चली। न्यायाधीश सुषमा खोसला ने आरोपी को 22 फरवरी 2013 को फांसी की सजा सुनाई। आरोपी ने उच्च न्यायालय में अपील की, जहां से उसे राहत नहीं मिली। वर्तमान में मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। दिलीप इन दिनों भोपाल के केंद्रीय जेल में है।
लोग सडक़ों पर उतरकर रोष जाहिर कर रहे हैं, हर तरफ से मांग उठ रही है कि आरोपी विष्णु प्रसाद को सख्त से सख्त सजा दी जाए। उसे फांसी की सजा हो, ताकि आगे कोई वहशी किसी मासूम के साथ दरिंदगी करने की हिम्मत न कर सके। लेकिन कहानी सिर्फ यही नहीं, बल्कि ऐसी और भी कई कहानियां हैं, जो अंतिम फैसले का इंतजार कर रही हैं। राज्य में बीते 13 सालों में मासूमों के साथ हुई दरिंदगी और उस पर निचली अदालतों के फैसलों पर गौर करें तो 26 ऐसे आरोपियों को फांसी की सजा सुनाई जा चुकी है।
मगर उनमें से एक पर भी अब तक अमल नहीं हो पाया है। क्योंकि निचली अदालत के फैसलों पर या तो उच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया, या फिर सर्वोच्च न्यायालय ने। ऊंची अदालतों में मामले अब भी विचाराधीन हैं। सतना जिले के उचेहरा थाना क्षेत्र के परसमनिया गांव में शिक्षक महेंद्र सिंह गौड़ ने 30 जून 2018 को अपने घर के बाहर सो रही चार साल की मासूम को अगवा कर उसे अपनी हवस का शिकार बनाया था, और जान से मारने की कोशिश की थी। मासूम की खुशनसीबी रही कि वह बच गई।
उसे लगभग ढाई माह तक जीवन और मौत के बीच संघर्ष करना पड़ा। नागौद के अपर सत्र न्यायालय के न्यायाधीश दिनेश कुमार शर्मा ने 81 दिनों में मामले की सुनवाई कर आरोपी को दोषी करार दिया और उसे फांसी की सजा सुनाई। उसके बाद गौड़ को उच्च न्यायालय से राहत नहीं मिली। उसे दो मार्च 2019 को फांसी की सजा दिए जाने का डेथ वारंट भी जारी हो गया था, मगर सर्वोच्च न्यायालय से स्थगन मिलने पर फांसी की सजा स्थगित कर दी गई।
महेंद्र वर्तमान में जबलपुर के केंद्रीय जेल में है। इसी तरह का एक अन्य मामला भोपाल के रोशनपुरा के ग्वाल मोहल्ले का है। सतनाम की पांच वर्षीय बेटी को दिलीप बनकर ने 20 अगस्त 2005 को अपनी हवस का शिकार बनाया और बाद में बालिका की हत्या कर दी। इस मामले की लगभग सात साल जिला एवं सत्र न्यायालय में सुनवाई चली। न्यायाधीश सुषमा खोसला ने आरोपी को 22 फरवरी 2013 को फांसी की सजा सुनाई। आरोपी ने उच्च न्यायालय में अपील की, जहां से उसे राहत नहीं मिली। वर्तमान में मामला सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है। दिलीप इन दिनों भोपाल के केंद्रीय जेल में है।
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