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भोपाल गैस त्रासदी के 35 साल : आज भी साफ पानी तक नसीब नहीं, बढ़ रही बीमारों की संख्या
भोपाल। मध्यप्रदेश की राजधानी में 35 साल पहले हुई गैस त्रासदी के पीडि़तों का दर्द कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है। साढ़े तीन दशकों में राज्य और केंद्र में सरकारें बदलती रहीं, लेकिन नहीं बदली पीडि़तों की किस्मत। इन्हें उतनी मदद नहीं मिली, जितनी की जरूरत थी। गैस पीडि़तों को न आर्थिक मदद मिली, न ठीक से स्वास्थ्य सेवाएं। हाल इतना बुरा है कि इन्हें पीने के लिए साफ और शुद्ध पानी तक नसीब नहीं है।
दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) ने हजारों लोगों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था। उस मंजर के गवाह अब भी उस रात को याद कर दहशतजदा हो जाते हैं और वे उस भयावह रात को याद ही नहीं करना चाहते। गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक विकलांग पैदा हो रही है।
शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के जन्म लेने का सिलसिला जारी है। इन्हीं बच्चों में से एक है, मोहम्मद जैद (15)। इस बच्चे की जिंदगी बोझ बन गई है। उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि उसे यह सजा आखिर क्यों मिल रही है? और विधवा मुमताज बी का क्या कसूर था जो जिंदगी पहाड़ बन गई? एक चिंगारी ट्रस्ट है, गैस पीडि़तों पर रहम और मेहरबानी कर रहा है।
इस ट्रस्ट की चंपा देवी शुक्ला और रशीदा बी बताती हैं कि उनके संस्थान में हर रोज 170 बच्चे आते हैं। इन बच्चों को यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है। इन बच्चों को चिंगारी पुनर्वास केंद्र लाने और छोडऩे के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क मध्यान्ह भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है।
दो-तीन दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात यूनियन कार्बाइड संयंत्र से रिसी जहरीली गैस मिथाइल आइसो साइनाइड (मिक) ने हजारों लोगों को एक ही रात में मौत की नींद सुला दिया था। उस मंजर के गवाह अब भी उस रात को याद कर दहशतजदा हो जाते हैं और वे उस भयावह रात को याद ही नहीं करना चाहते। गैस का शिकार बने परिवारों की दूसरी और तीसरी पीढ़ी तक विकलांग पैदा हो रही है।
शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के जन्म लेने का सिलसिला जारी है। इन्हीं बच्चों में से एक है, मोहम्मद जैद (15)। इस बच्चे की जिंदगी बोझ बन गई है। उसे यह समझ में नहीं आ रहा कि उसे यह सजा आखिर क्यों मिल रही है? और विधवा मुमताज बी का क्या कसूर था जो जिंदगी पहाड़ बन गई? एक चिंगारी ट्रस्ट है, गैस पीडि़तों पर रहम और मेहरबानी कर रहा है।
इस ट्रस्ट की चंपा देवी शुक्ला और रशीदा बी बताती हैं कि उनके संस्थान में हर रोज 170 बच्चे आते हैं। इन बच्चों को यहां फिजियो थेरेपी, स्पीच थेरेपी, विशेष शिक्षा वगैरह उपलब्ध कराई जाती है। इन बच्चों को चिंगारी पुनर्वास केंद्र लाने और छोडऩे के लिए वाहन सुविधा है, साथ ही इन्हें नि:शुल्क मध्यान्ह भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है।
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