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15 वर्ष की उम्र में हुई शादी और बन गई मिसाल,जानें कैसे ?

khaskhabar.com : सोमवार, 05 फ़रवरी 2018 3:26 PM (IST)
15 वर्ष की उम्र में हुई शादी और बन गई मिसाल,जानें कैसे ?
बाड़मेर। जिले की समदडी ब्लाॅक की ग्राम पंचायत भलरो के बाड़ा की रहने वाली 60 वर्षीय खम्मा कंवर को देखकर कोई सोच भी नहीं सकता है कि वे इस आयु में भी इतना काम करती हैं और समय की बहुत ही पाबन्द है। पंचायत की उपसरपंच होने के बाद इनकी पंचायत के काम में रूचि देखते ही बनती है। खास बात ये है कि इनकी शादी 15 वर्ष की अल्प आयु में भलरो के बाड़ा के रहने वाले पढ़े लिखे कुंवर भंवर सिंह के साथ हुई। कम उम्र में विवाह होने के बाद गृहस्थी का भार उनके उपर पड़ गया।

आर्थिक रूप से सक्षम परिवार होने के कारण आर्थिक रूप से इतनी परेशानी नही हुई। अपने शादी के बारे में बताते हुए कहती है कि मेरे पूर्वजन्मों का अच्छा कर्मो का फल ही था कि मेरे पति भंवर सिंह की रेलवे में नौकरी लग गई। मन में पति के नौकरी लगने की खुशी भी थी और उनसे बिछडने का दुख भी था। लेकिन अपने कलेजे पर पत्थर रखकर उन्हें नौकरी करने के लिए भेजना पड़ा।


खम्मा कंवर अपने बचपन के बारे में कहती है कि हमारे समय पर सब कुछ आज जैसा नहीं था। महिला या लड़कियों का घर से बाहर जाना बहुत ही मुश्किल होता था।

उन्हें ज्यादा पढ़ाने के बारे में तो सोचा तक नहीं जाता था। मेरी शिक्षा पांचवीं तक ही हो पाई थी। मैं पढ़ लिख सकती थी। उस समय महिलाओं का शिक्षा प्राप्त करना गलत माना जाता था। उस समय लोगों की सोच थी कि महिलाओं को झाडू पोछें और घर के कार्यों में दक्ष होना चाहिए ताकि ससुराल जाने के बाद उनको किसी भी प्रकार की दिक्कत न हो। उनकी सोच थी कि ज्यादा पढ़ा लिखाकर इनको कौनसी नौकरी करवानी है। इस कारण मेरी शिक्षा कम ही हो पायी।

2015 में जब चुनाव हुए तो इनके वार्ड के सदस्यों ने वार्ड से खड़े होने के लिए कहा तो इन्होंने चुनाव के लिए अपना नामांकन दाखिल कर दिया। इनकेे सामने किसी ने भी अपना नामांकन दाखिल नहीं किया तो निर्वाचन अधिकारी ने निर्विरोध विजेता घोषित किया।

प्रथम बार प्रिया के द्वारा समदड़ी में आयोजित किये गये दो दिवसीय प्रशिक्षण में इन्होंने भाग लिया और दोनों दिन अपनी बात साफ तरह से कहने और सबसे पहले आकर बैठ जाने के कारण सभी इनको पंसद करने लग गये। इस प्रशिक्षण के दौरान बहुत सारे सवाल पूछे। उस प्रशिक्षण के बारे में अपना अनुभव बताते हुए कहती हैं कि मैंने पहली बार इस प्रशिक्षण के दौरान जाना कि गर्भवती महिला और बच्चों के मरने क्या कारण है ? न तो मैंने कभी इस बारे में सोचा ही नहीं सब भगवान की मर्जी समझती रही। मैंने पहली बार समझा किस प्रकार से स्वास्थ्य में पंचायती राज के प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए सुधार करवाने का प्रयास कर सकते हैं।

इस प्रशिक्षण के बाद मैंने एक से दो घंटे तक पंचायत राज की भूमिका,स्वास्थ्य केन्द्रों में मिलने वाली सुविधा,समुदाय की भूमिका और मातु एवं शिुशु मृत्यु को कम करने के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की। इतना सब कुछ जानने के बाद अब मैंने सोचा कि जब गांव में आंगनबाड़ी केन्द्र है,उप स्वास्थ्य केन्द्र है तो फिर कोई बच्चा टीकाकरण से वंचित नहीं रहना चाहिए। कोई गर्भवती महिला बिना जांच के न रहनी चाहिए बस उसी दिन से ठान लिया कि अब मैं सप्ताह में एक बार जरूर इन आंगनबाड़ी केन्द्रों पर जाकर देखा करूंगी। सुबोध सर और सभी बहुत ही अच्छे स्वभाव के है और उनके समझाने के तरीके को सबने पसंद किया पर इस तरह सिखाने का सिलसिला चलते रहना चाहिये।

प्रशिक्षण के बाद से उप सरपंच सुबह सुबह आंगनवाडी केन्द्रो ंपर पहुचकर आंगनवाडी केन्द्रो का समय पर खुले इस बात को सुनिश्चित कर रही है। वह मातृ, शिशु स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस पर भी जाती है और महिलाओ ंसे बात कर उनकी समस्या को सुनती है।

इन्ही के प्रयास से यहा पर ग्राम स्वास्थ्य समिति का गठन हो पाया है और अब राजस्व गॅाव में करवाने के लिये प्रयार कर रही है। संस्था के द्वारा हमारे यहां पर दो प्रशिक्षण आयोजित किए जा चुके है। दोनो में मेंने भाग लिया और अब इतनी जानकारी हो गयी है कि समुदाय के साथ मिलकर ही गलत सामाजिक परम्पराओ जो इंसानो पर बंदिश लगाती है। उन्हे दुर किया जा सकता है। ताकि स्वस्थ जन स्वस्थ पंचायत का जो सुबोध जी के द्वारा दिखाया गया हमारे लिए सपना न रहकर हकीकत बने।

खम्मा कवंर के सवाल अब आंगनवाडी केन्द्र और उपस्वास्थ्य केन्द्र के कर्मचारियों को काम सही समय पर करने के लिये मजबूर कर रहे है। अपनी पंचायत की साफ सफाई को लेकर भी बहुत ही सचेत रहती है और स्वच्छ भारत के तरह अपनी पंचायत को खुले में शौच से मुक्त करने के लिये प्रयार कर रही है। वो इस समय अपनी पंचायत के लोगों के बीच में चर्चा का केन्द्र बनी हुई है। वो एॅनरोड फोन चलाना सीखना चाहती है। बहुत जी जल्दी वो खरीद लेगीं और फिर हमें फोॅटो भेजा करेंगी अभी वो अपने फोटो नहीं ले पाती है।

गांव के सरपंच का उन्हें बहुत सहयोग मिल रहा है। अपने सपने के बारे में बताते हुये कहती है कि प्रिया के अधिकारियों, कर्मचारियों को अपनी ओर से मैं बहुत बहुत शुक्रिया अदा करती हूॅ कि मैं महिला होकर कभी महिलाओें और बच्चों के बारे मे इतनी गंभीर नहीं हुई जितनी संस्था द्वारा किए गए प्रयासों से प्रेरित हुई। मैं जब तक चैन से नहीं बैठूंगी तब तक मेरी ग्राम पंचायत में महिला और बच्चों के स्वास्थ्य और विकास को लेकर सब में एक समझ नहीं बन जाती हैं। आने वाले समय में महिला सभा कराने का प्रयास कर रही हूं।

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