Advertisement
भगवान नरसिंह की रंगभरी शोभायात्रा : गोरखपुर में रंगों का उल्लास कराता है बरसाने का अहसास
लोगों के मुताबिक कारोबार के लिहाज से गोरखपुर का दिल माने जाने वाले
साहबगंज से इसकी शुरुआत 1944 में हुई थी। शुरू में गोरखपुर की परंपरा के
अनुसार इसमें कीचड़ का ही प्रयोग होता है। हुड़दंग अलग से। अपने गोरखपुर
प्रवास के दौरान नानाजी देशमुख ने इसे नया स्वरूप दिया। राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की सक्रिय भागीदारी से इसका स्वरूप बदला, साथ ही
लोगों की भागीदारी भी बढ़ी।
गोरखपुर के निवासी और कई बार इस यात्रा में भाग ले चुके वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय ने बताया कि होली के दिन सुबह भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर चौराहे से शुरू होती है। जाफराबाजार, घासीकटरा, आर्यनगर, बक्शीपुर, रेती चौक और उर्दू होते हुए घंटाघर पर ही जाकर समाप्त होती है। होली के दिन की इस शोभायात्रा से एक दिन पहले घंटाघर से ही होलिका दहन शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भी गोरक्षापीठाधीश्वर परंपरागत रूप से शामिल होते हैं।
गोरखपुर के निवासी और कई बार इस यात्रा में भाग ले चुके वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय ने बताया कि होली के दिन सुबह भगवान नरसिंह की शोभायात्रा घंटाघर चौराहे से शुरू होती है। जाफराबाजार, घासीकटरा, आर्यनगर, बक्शीपुर, रेती चौक और उर्दू होते हुए घंटाघर पर ही जाकर समाप्त होती है। होली के दिन की इस शोभायात्रा से एक दिन पहले घंटाघर से ही होलिका दहन शोभायात्रा निकाली जाती है। इसमें भी गोरक्षापीठाधीश्वर परंपरागत रूप से शामिल होते हैं।
Advertisement
Advertisement
गोरखपुर
उत्तर प्रदेश से
सर्वाधिक पढ़ी गई
Advertisement