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राजस्थानी पुस्तक “कद आवैला खरूंट" और “जुम्मै री नमाज” का लोकार्पण
बीकानेर। मुक्ति संस्था बीकानेर के तत्वावधान में जाने-माने कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी की दो राजस्थानी पुस्तकों का लोकार्पण हुआ।
कविता संग्रह “कद आवैला खरूंट" एवं कहानी संग्रह “जुम्मै री नमाज” का लोकार्पण प्रतिष्ठित नाटककार एवं आलोचक तथा एन.एस.डी. नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ.अर्जुनदेव चारण एवं केन्द्रीय साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्शक मंडल के संयोजक मधु आचार्य “आशावादी” के आतिथ्य में हुआ। पुस्तकों का प्रकाशन ऋचा इण्डिया पब्लिशर्स द्वारा किया गया है।
संवाद संयोजक राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि प्रारम्भ में अतिथियों को माल्यार्पण कर स्वागत किया गया । इस अवसर पर लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा कि राजस्थानी कविता में घावों की लूंठी परम्परा है। उनमें घावों की सराहना है। परम्परा में आज का कवि राजेन्द्र जोशी “घाव” को चरित्र के रुप में व्यक्त कर रहे हैं। यह सराहनीय बात है। कवि छिपाना जानता है उसमें आनन्द की सृष्टि होती है। परम्परा है कि जीवन में रस की तलाश रहती है। रस का छलकना उत्सव है। रचना के समक्ष यह चुनौती है, वह पाठक तक पहुंचता है या नहीं। राजेन्द्रजी को कथाकार के रूप में बात कहने का आंटा आता है। कहानी में से कहानीजन होता जा रहा है। ऐसे में ये कहानियां भरोसा दिलाती है कि कहनपन कैसा हो, लेकिन जोशीजी पाठक तक पहुंच पाठक के हृदय को स्पर्श करता है पाठक को लगता है कि उसकी बात कही गई है।
कविता संग्रह “कद आवैला खरूंट" एवं कहानी संग्रह “जुम्मै री नमाज” का लोकार्पण प्रतिष्ठित नाटककार एवं आलोचक तथा एन.एस.डी. नई दिल्ली के अध्यक्ष डॉ.अर्जुनदेव चारण एवं केन्द्रीय साहित्य अकादेमी में राजस्थानी भाषा परामर्शक मंडल के संयोजक मधु आचार्य “आशावादी” के आतिथ्य में हुआ। पुस्तकों का प्रकाशन ऋचा इण्डिया पब्लिशर्स द्वारा किया गया है।
संवाद संयोजक राजाराम स्वर्णकार ने बताया कि प्रारम्भ में अतिथियों को माल्यार्पण कर स्वागत किया गया । इस अवसर पर लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि डॉ.अर्जुनदेव चारण ने कहा कि राजस्थानी कविता में घावों की लूंठी परम्परा है। उनमें घावों की सराहना है। परम्परा में आज का कवि राजेन्द्र जोशी “घाव” को चरित्र के रुप में व्यक्त कर रहे हैं। यह सराहनीय बात है। कवि छिपाना जानता है उसमें आनन्द की सृष्टि होती है। परम्परा है कि जीवन में रस की तलाश रहती है। रस का छलकना उत्सव है। रचना के समक्ष यह चुनौती है, वह पाठक तक पहुंचता है या नहीं। राजेन्द्रजी को कथाकार के रूप में बात कहने का आंटा आता है। कहानी में से कहानीजन होता जा रहा है। ऐसे में ये कहानियां भरोसा दिलाती है कि कहनपन कैसा हो, लेकिन जोशीजी पाठक तक पहुंच पाठक के हृदय को स्पर्श करता है पाठक को लगता है कि उसकी बात कही गई है।
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