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जेकेके में कत्थक समारोह-2020, मंत्री बीडी कल्ला ने किया शुभारम्भ
जयपुर। कला, साहित्य एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने कहा है कि कत्थक भक्ति से ओतप्रोत ऐसी नृत्यकला है, जिसके माध्यम से भगवान को प्रसन्न किया जा सकता है। यह भगवान कृष्ण और भगवान शंकर से जड़ी अनूठी विधा है।
डॉ. कल्ला सोमवार को जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में जयपुर कथक केंद्र द्वारा आयोजित कत्थक समारोह 2020 का शुभारंभ करने के बाद आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में जेकेके की महानिदेशक किरण सोनी गुप्ता, कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख शासन सचिव तथा जयपुर कत्थक केंद्र की अध्यक्ष श्रेया गुहा, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के आयुक्त नीरज के. पवन सहित कला एवं संस्कृति प्रेमी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
डॉ. कल्ला ने कहा कि कत्थक में जयपुर घराने ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विद्यार्थी तैयार करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उन्होंने कहा कि यह घराना थली के नाम से प्रसिद्ध तालछापर एरिया से निकलकर जयपुर में शिफ्ट हुआ, इसके बाद यह जयपुर घराना कहलाया। इस घराने में फुटवर्क का अधिक मात्रा में है, लखनऊ घराने में नजाकत और नफासत का पुट अधिक है। बनारस और मध्य प्रदेश में भी कत्थक होता है, मगर इन सबके बीच जयपुर घराने के नृत्य गुरूओं के निर्देशन में तैयार विद्यार्थियों ने निरंतर देश और विदेश में अपनी प्रतिभा और हुनर की अमिट छाप छोड़ी है। जयपुर कत्थक केन्द्र कई वर्षों से राजस्थान में कत्थक को सिखाने और इसे संरक्षण देने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रहा है।
डॉ. कल्ला सोमवार को जवाहर कला केंद्र के रंगायन सभागार में जयपुर कथक केंद्र द्वारा आयोजित कत्थक समारोह 2020 का शुभारंभ करने के बाद आयोजित समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित कर रहे थे। कार्यक्रम में जेकेके की महानिदेशक किरण सोनी गुप्ता, कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख शासन सचिव तथा जयपुर कत्थक केंद्र की अध्यक्ष श्रेया गुहा, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के आयुक्त नीरज के. पवन सहित कला एवं संस्कृति प्रेमी एवं गणमान्य नागरिक उपस्थित थे।
डॉ. कल्ला ने कहा कि कत्थक में जयपुर घराने ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के विद्यार्थी तैयार करते हुए अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। उन्होंने कहा कि यह घराना थली के नाम से प्रसिद्ध तालछापर एरिया से निकलकर जयपुर में शिफ्ट हुआ, इसके बाद यह जयपुर घराना कहलाया। इस घराने में फुटवर्क का अधिक मात्रा में है, लखनऊ घराने में नजाकत और नफासत का पुट अधिक है। बनारस और मध्य प्रदेश में भी कत्थक होता है, मगर इन सबके बीच जयपुर घराने के नृत्य गुरूओं के निर्देशन में तैयार विद्यार्थियों ने निरंतर देश और विदेश में अपनी प्रतिभा और हुनर की अमिट छाप छोड़ी है। जयपुर कत्थक केन्द्र कई वर्षों से राजस्थान में कत्थक को सिखाने और इसे संरक्षण देने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभा रहा है।
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