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होली के बाजार में लाल हुआ गुलाल, फीका पड़ा रंग
कानपुर। होली का त्योहार नजदीक आ रहा है और लोग फगुआ खेलने को बेताब है, लेकिन अब फगुआ में रंग फीका पड़ रहा है और उसकी जगह पर गुलाल अबीर ने पैठ बना ली है। होली के बाजार में इन दिनों गुलाल और अबीर लाल हो चुका है तो वहीं रंगों की बिक्री कमजोर है। रंग से जुड़े कारोबारियों का कहना है कि अबीर और रंग की बिक्री 90-10 के अनुपात में चल रही है।
होली के त्योहार में भले ही अब हफ्तों रंग न खेला जाता हो पर फगुआ का जोश कभी कम होने वाला नहीं है। फगुआ को लेकर बाजार पूरी तरह से सजे हुए हैं पर उनमें रंगों का भण्डारण कम दिख रहा है, हो भी क्यों न, अब लोगों में गुलाल अबीर सिर चढ़कर बोल रहा है और बाजार में ग्राहकों की भारी भीड़ देखी जा रही है।
हटिया बाजार में स्थित रंगों की दुकान छन्नू रंग वाले के मालिक विनोद सेठ ने बताया कि सात दशक से हमारा परिवार रंग का कारोबार कर रहा है। चार दशक पहले तक होली में रंगों की मांग बहुत अधिक रहती थी, लेकिन समय के अनुसार धीरे-धीरे इसकी मांग कम हुई और अब इसकी जगह गुलाल और अबीर ने ले रखा है। पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि पहले एक सप्ताह तक रंग खेला जाता है अब इसका दायरा भी कम हुआ है। लोग रंग को छुड़ाने में अपने को असहज मानते हैं और इसीलिए गुलाल अबीर का अधिक प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही ज्यादातर लोग गुलाल अबीर से होली खेलना अपनी शान भी मानते हैं। ऐसे में अब होली के बाजार पर रंगों की बिक्री कम हो गयी है, अगर अनुपात की दृष्टि से बात करें तो 90 फीसदी बाजार गुलाल अबीर का है तो वहीं 10 फीसदी ही रंगों का बाजार बचा है।
हर्बल रंगों का ही करें प्रयोग
विनोद सेठ ने बताया कि हमारी दुकान आज 75 वर्षों से ग्राहकों की सेहत का ख्याल रखते आ रही है। मेरे पिता छन्नू लाल सेठ ने किशोर साहब हींग वाले को प्रेरणा मान कर रंगों के व्यापार को शुरुआत की थी। आज हमारे पास सभी प्रकार के हर्बल रंगों का भंडार है जिसके उपयोग से न ही कोई नुकसान है न ही किसी प्रकार की कोई परेशानी होगी। हमने पूरी तरह से चाइनीज रंगों की बिक्री पर रोक लगा रखी है। जिससे हमारे पास आने वाले ग्राहकों को उनकी सेहत पर न कोई असर पड़ सके। इस बार हमारे पास रंगों में हर्बल अबीर, गुलाल व पानी वाले रंगों की अनेक प्रकार की श्रंखला है। होली में हर्बल निर्मित सूखे रंगों के साथ उनमें खुशबुओं का भी प्रयोग किया गया, जिसके लगाने के बाद गुलाब, चन्दन और बेले की खुशबू का भी आनंद ले सकेंगे। उन्होंने लोगों से अपील भी की कि होली के पर्व पर हर्बल रंगों का ही प्रयोग करें और अपनी सेहत का ख्याल रखें।
सूखे रंग से होली खेलने का बढ़ा प्रचलन
विनोद सेठ ने कहा कि हमारी सोच है कि ग्राहक हमसे पांच रुपये का भी रंग खरीदता है तो हम उसको साढ़े चार रुपए का माल देने की कोशिश करते है। जिससे हमारे रंगों को हमारी पहचान मिल सके। पहले के जमाने मे लोगों में होली के त्योहार को लेकर उत्साह रहता था। आस पास के क्षेत्रों से व्यापारी और ग्राहक पानी वाले रंगों में तरह-तरह के रंगों की मांग किया करते थे। उनमें सबसे ज्यादा देर तक रुकने वाले रंग की मांग रहती थी। ज्यादातर लोग पानी के रंगों से होली खेलने में आतुर रहते थे। लेकिन अब इस दौर में लोगों में सूखे रंगों से होली खेलने वाले संख्या 90 फीसदी है तो वहीं पानी के रंगों से खेलने वालों की संख्या 10 फीसदी ही रह गई है।
कोरोना डाल रहा असर
होली के पर्व से पहले अबकी बार पूरी दुनिया में कोरोना वायरस कहर ढा रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। ऐसे में लोग अबकी बार होली खेलने से कतराते दिख सकते हैं। इसी के चलते रंगों का बाजार पिछली बार की अपेक्षा कमजोर दिखाई दे रहा है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोरोना को लेकर पूरी तरह से सर्तक है पर इसके बावजूद भी लोगों में कहीं न कहीं डर बना हुआ है।
होली के त्योहार में भले ही अब हफ्तों रंग न खेला जाता हो पर फगुआ का जोश कभी कम होने वाला नहीं है। फगुआ को लेकर बाजार पूरी तरह से सजे हुए हैं पर उनमें रंगों का भण्डारण कम दिख रहा है, हो भी क्यों न, अब लोगों में गुलाल अबीर सिर चढ़कर बोल रहा है और बाजार में ग्राहकों की भारी भीड़ देखी जा रही है।
हटिया बाजार में स्थित रंगों की दुकान छन्नू रंग वाले के मालिक विनोद सेठ ने बताया कि सात दशक से हमारा परिवार रंग का कारोबार कर रहा है। चार दशक पहले तक होली में रंगों की मांग बहुत अधिक रहती थी, लेकिन समय के अनुसार धीरे-धीरे इसकी मांग कम हुई और अब इसकी जगह गुलाल और अबीर ने ले रखा है। पुराने दिनों को याद करते हुए उन्होंने बताया कि पहले एक सप्ताह तक रंग खेला जाता है अब इसका दायरा भी कम हुआ है। लोग रंग को छुड़ाने में अपने को असहज मानते हैं और इसीलिए गुलाल अबीर का अधिक प्रयोग करते हैं। इसके साथ ही ज्यादातर लोग गुलाल अबीर से होली खेलना अपनी शान भी मानते हैं। ऐसे में अब होली के बाजार पर रंगों की बिक्री कम हो गयी है, अगर अनुपात की दृष्टि से बात करें तो 90 फीसदी बाजार गुलाल अबीर का है तो वहीं 10 फीसदी ही रंगों का बाजार बचा है।
हर्बल रंगों का ही करें प्रयोग
विनोद सेठ ने बताया कि हमारी दुकान आज 75 वर्षों से ग्राहकों की सेहत का ख्याल रखते आ रही है। मेरे पिता छन्नू लाल सेठ ने किशोर साहब हींग वाले को प्रेरणा मान कर रंगों के व्यापार को शुरुआत की थी। आज हमारे पास सभी प्रकार के हर्बल रंगों का भंडार है जिसके उपयोग से न ही कोई नुकसान है न ही किसी प्रकार की कोई परेशानी होगी। हमने पूरी तरह से चाइनीज रंगों की बिक्री पर रोक लगा रखी है। जिससे हमारे पास आने वाले ग्राहकों को उनकी सेहत पर न कोई असर पड़ सके। इस बार हमारे पास रंगों में हर्बल अबीर, गुलाल व पानी वाले रंगों की अनेक प्रकार की श्रंखला है। होली में हर्बल निर्मित सूखे रंगों के साथ उनमें खुशबुओं का भी प्रयोग किया गया, जिसके लगाने के बाद गुलाब, चन्दन और बेले की खुशबू का भी आनंद ले सकेंगे। उन्होंने लोगों से अपील भी की कि होली के पर्व पर हर्बल रंगों का ही प्रयोग करें और अपनी सेहत का ख्याल रखें।
सूखे रंग से होली खेलने का बढ़ा प्रचलन
विनोद सेठ ने कहा कि हमारी सोच है कि ग्राहक हमसे पांच रुपये का भी रंग खरीदता है तो हम उसको साढ़े चार रुपए का माल देने की कोशिश करते है। जिससे हमारे रंगों को हमारी पहचान मिल सके। पहले के जमाने मे लोगों में होली के त्योहार को लेकर उत्साह रहता था। आस पास के क्षेत्रों से व्यापारी और ग्राहक पानी वाले रंगों में तरह-तरह के रंगों की मांग किया करते थे। उनमें सबसे ज्यादा देर तक रुकने वाले रंग की मांग रहती थी। ज्यादातर लोग पानी के रंगों से होली खेलने में आतुर रहते थे। लेकिन अब इस दौर में लोगों में सूखे रंगों से होली खेलने वाले संख्या 90 फीसदी है तो वहीं पानी के रंगों से खेलने वालों की संख्या 10 फीसदी ही रह गई है।
कोरोना डाल रहा असर
होली के पर्व से पहले अबकी बार पूरी दुनिया में कोरोना वायरस कहर ढा रहा है और भारत भी इससे अछूता नहीं रहा। ऐसे में लोग अबकी बार होली खेलने से कतराते दिख सकते हैं। इसी के चलते रंगों का बाजार पिछली बार की अपेक्षा कमजोर दिखाई दे रहा है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग की ओर से कोरोना को लेकर पूरी तरह से सर्तक है पर इसके बावजूद भी लोगों में कहीं न कहीं डर बना हुआ है।
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