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शासन सचिवालय में आग बुझाने के उपकरणों के रख-रखाव में हुआ खेल !
जयपुर । राजधानी के शासन सचिवालय में आग बुझाने के उपकरणों के रख-रखाव में लापरवाही का मामला सामने आ रहा है। स्थिति यह है कि सचिवालय की छत पर फायर फाइटिंग सिस्टम की पाइप लाईनों का जाल बिछा हुआ है लेकिन पाईपों की स्थिति जर्जर और पुराने हो चुके है। इन पाईपों कई सारे वेल्डिंग के निशान भी स्पष्ट रूप से दिख रहे है।
सूत्रों के अनुसार पीडब्ल्यूडी इलेक्ट्रिक विंग के अभियंता टेंडर से लेकर कार्यादेश और फिर भुगतान तक की प्रक्रिया मनमर्जी से करते आए हैं। सचिवालय में बैठे अधिकारियों को इस बाबत कुछ भी मालूम नहीं होता।
शासन सचिवालय के रजिस्ट्रार प्रेमनारायण सैन ने बताया कि सचिवालय में फायर फाइटिंग के काम से संबंधित कोई भी पत्रावली हमें आज तक प्राप्त नहीं हुई। न तो कभी टेंडर की कॉपी दिखाई गई और न ही कार्यादेश की। पीडब्ल्यूडी के अधिकारी अपने स्तर पर काम करवाते आए है जिसकी जानकारी कभी नहीं दी जाती।
नाम न छापने की शर्त पर सचिवालय के कुछ कर्मचारियों ने बताया कि फायर फाइटिंग सिस्टम की नियमित टेस्टिंग कब होती है किसी को पता नहीं। नियमानुसार सिस्टम को जांच परखने के लिए माह में एक बार मॉक ड्रिल होनी चाहिये लेकिन वो भी नहीं होती। सूत्रों के मुताबिक लगभग 35 से 40 लाख रुपए इन मशीनरियों पर पानी के जैसे बहाया जा रहा है और यह प्रक्रिया पिछले काफी समय से चल रही है। यानी कि मेंटिनेंस के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके है। इतनी राशि में तो पूरा सिस्टम ही बदला जा सकता था।
वहीं इस मामले में सार्वजनिक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता (विद्युत ) जगत सिंह मीना का कहना है कि सचिवालय में अग्निरोधी संयत्रों में गड़बड़ी की जानकारी मिली है। शिकायत मिलने पर निश्चित रूप से जांच करवाई जाएगी। वैसे सक्षम स्तर पर मॉनिटरिंग की जाती रहनी चाहिये जिससे हादसों के वक्त कदम उठाने में आसानी रहे।
सूत्रों के अनुसार पीडब्ल्यूडी इलेक्ट्रिक विंग के अभियंता टेंडर से लेकर कार्यादेश और फिर भुगतान तक की प्रक्रिया मनमर्जी से करते आए हैं। सचिवालय में बैठे अधिकारियों को इस बाबत कुछ भी मालूम नहीं होता।
शासन सचिवालय के रजिस्ट्रार प्रेमनारायण सैन ने बताया कि सचिवालय में फायर फाइटिंग के काम से संबंधित कोई भी पत्रावली हमें आज तक प्राप्त नहीं हुई। न तो कभी टेंडर की कॉपी दिखाई गई और न ही कार्यादेश की। पीडब्ल्यूडी के अधिकारी अपने स्तर पर काम करवाते आए है जिसकी जानकारी कभी नहीं दी जाती।
नाम न छापने की शर्त पर सचिवालय के कुछ कर्मचारियों ने बताया कि फायर फाइटिंग सिस्टम की नियमित टेस्टिंग कब होती है किसी को पता नहीं। नियमानुसार सिस्टम को जांच परखने के लिए माह में एक बार मॉक ड्रिल होनी चाहिये लेकिन वो भी नहीं होती। सूत्रों के मुताबिक लगभग 35 से 40 लाख रुपए इन मशीनरियों पर पानी के जैसे बहाया जा रहा है और यह प्रक्रिया पिछले काफी समय से चल रही है। यानी कि मेंटिनेंस के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके है। इतनी राशि में तो पूरा सिस्टम ही बदला जा सकता था।
वहीं इस मामले में सार्वजनिक निर्माण विभाग के मुख्य अभियंता (विद्युत ) जगत सिंह मीना का कहना है कि सचिवालय में अग्निरोधी संयत्रों में गड़बड़ी की जानकारी मिली है। शिकायत मिलने पर निश्चित रूप से जांच करवाई जाएगी। वैसे सक्षम स्तर पर मॉनिटरिंग की जाती रहनी चाहिये जिससे हादसों के वक्त कदम उठाने में आसानी रहे।
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