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गंभीर हालत में धौलपुर एसएनसीयू में आई नवजात, स्वस्थ होकर लौटी
धौलपुर/जयपुर। कम वजन अथवा समय पूर्व जन्मे नवजात शिशुओं के लिए जिला अस्पतालों में संचालित एसएनसीयू जीवनदायिनी केन्द्र के रूप स्थापित हो रहे हैं। हजारों नवजात शिशुओं को इनकी सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं। इसका एक उदाहरण है धौलपुर निवासी ब्रजेश शर्मा व विद्यावती की नवजात बिटिया की जीवन रक्षा की कहानी। इनकी बिटिया जन्म के समय बहुत गंभीर संक्रमण की स्थिति में थी।
बच्ची आगरा के एक निजी अस्पताल में 10 अप्रैल को जन्मी और 6 दिन तक वहां की नवजात शिशु की विशेष ईकाई में भर्ती रही। उसका जन्म के समय वजन मात्र 830 ग्राम था और संक्रमण तेजी से बढ़ने से जीवन-मौत के बीच संघर्षरत थी। निजी चिकित्सकों ने उसे उच्च चिकित्सा संस्थान के लिए रेफर कर दिया।
पिता ब्रजेश अपनी नवजात बिटिया को 16 अप्रैल को धौलपुर लाकर जिला अस्पताल के एसएनसीयू ले गए, वहां प्रभारी डॉ. विजय की देखरेख में उपचार शुरू हुआ। डॉ. विजय ने बताया कि बेबी एसएनसीयू में भर्ती के समय बहुत गंभीर स्थिति में थी। कम वजन होने के साथ ही उसे हाईपोथर्मिया, हाईपोग्लेसिया, हाईपोकैल्सिमा के साथ खून की कमी थी। साथ ही वह दूध भी नहीं पी रही थी। इसके बाद एसएनसीयू में बेटी की इंटेसिव केयर के साथ सभी आवश्यक दवाइयां देते हुए उपचार शुरू किया गया। लगातार 56 दिन के इलाज के दौरान उसे आवश्यकता पड़ने पर दो बार ब्लड भी चढ़ाया गया। जिला अस्पताल में वंचित बच्चों को मां का दूध उपलब्ध कराने के लिए संचालित आंचल मदर मिल्क बैंक से ‘मां’ के दूध की व्यवस्था कर चम्मच से बेबी को धीरे-धीरे दूध पिलवाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि 10 जून को डिस्चार्ज के दौरान बिटिया का वजन बढ़कर 1.290 किलोग्राम था और उसने चम्मच से दूध भी पीना शुरू कर दिया था।
बच्ची आगरा के एक निजी अस्पताल में 10 अप्रैल को जन्मी और 6 दिन तक वहां की नवजात शिशु की विशेष ईकाई में भर्ती रही। उसका जन्म के समय वजन मात्र 830 ग्राम था और संक्रमण तेजी से बढ़ने से जीवन-मौत के बीच संघर्षरत थी। निजी चिकित्सकों ने उसे उच्च चिकित्सा संस्थान के लिए रेफर कर दिया।
पिता ब्रजेश अपनी नवजात बिटिया को 16 अप्रैल को धौलपुर लाकर जिला अस्पताल के एसएनसीयू ले गए, वहां प्रभारी डॉ. विजय की देखरेख में उपचार शुरू हुआ। डॉ. विजय ने बताया कि बेबी एसएनसीयू में भर्ती के समय बहुत गंभीर स्थिति में थी। कम वजन होने के साथ ही उसे हाईपोथर्मिया, हाईपोग्लेसिया, हाईपोकैल्सिमा के साथ खून की कमी थी। साथ ही वह दूध भी नहीं पी रही थी। इसके बाद एसएनसीयू में बेटी की इंटेसिव केयर के साथ सभी आवश्यक दवाइयां देते हुए उपचार शुरू किया गया। लगातार 56 दिन के इलाज के दौरान उसे आवश्यकता पड़ने पर दो बार ब्लड भी चढ़ाया गया। जिला अस्पताल में वंचित बच्चों को मां का दूध उपलब्ध कराने के लिए संचालित आंचल मदर मिल्क बैंक से ‘मां’ के दूध की व्यवस्था कर चम्मच से बेबी को धीरे-धीरे दूध पिलवाना शुरू किया। उन्होंने बताया कि 10 जून को डिस्चार्ज के दौरान बिटिया का वजन बढ़कर 1.290 किलोग्राम था और उसने चम्मच से दूध भी पीना शुरू कर दिया था।
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