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कांग्रेस शासित राज्यों में पार्टी की नई पहल! सत्ता और संगठन में समन्वय के लिए बनाई समिति
भोपाल। राजनीतिक दलों के संगठनों की ताकत ही उसे सत्ता के शिखर पर ले जाती है। यह बात अब कांग्रेस को भी समझ में आने लगी है। कांग्रेस शासित राज्यों में पार्टी ने संगठन को ज्यादा तरजीह देने का कदम बढ़ाया है। इसके जरिए सत्ता में संगठन का दखल ठीक वैसे ही हो जाएगा, जिस तरह भाजपा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर से भेजे गए पदाधिकारियों खासकर संगठन मंत्रियों का होता है।
कांग्रेस हाईकमान ने मध्य प्रदेश सहित कांग्रेस शासित अन्य राज्यों में सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल के लिए समन्वय समितियों का गठन किया है। राज्य की समन्वय समिति का अध्यक्ष प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया को बनाया गया है तो सदस्य मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव, राज्य सरकार के मंत्री जीतू पटवारी और मीनाक्षी नटराजन होंगी।
सत्ता और संगठन में समन्वय बनाने के लिए राज्य स्तर पर बनाई गई समिति कांग्रेस में हो रहे बदलाव की ओर इशारा कर रही है। संभवत: कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार हुआ है। इस नई व्यवस्था का आशय यही माना जा रहा है कि राज्य की सरकारें मनमाने तौर पर काम नहीं कर सकेंगी और उन पर परोक्ष रूप से पार्टी की कमान तो रहेगी ही, साथ में संगठन की ताकत भी बढ़ेगी। इसके अलावा संगठन में काम करने वालों की भी अहमियत बढ़ेगी।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सत्ताधारी प्रदेशों में कांग्रेस का प्रभारी महासचिव सबसे ताकतवर हो गया है। इसकी भूमिका भाजपा में संघ की ओर से भेजे गए संगठन मंत्री जैसी होगी। भाजपा संगठन में संगठन मंत्री सबसे ताकतवर होता है, जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां मुख्यमंत्री भी संगठन मंत्री की सहमति के बिना नीतिगत फैसला नहीं ले सकता। कांग्रेस शासित राज्य में इस समन्वय समिति के अस्तित्व में आने से सत्ता के हिस्सेदार बने नेताओं की मनमानी पर अंकुश लगेगा। वहीं नीतिगत फैसलों में संगठन की भी रायशुमारी रहेगी।
कांग्रेस हाईकमान ने मध्य प्रदेश सहित कांग्रेस शासित अन्य राज्यों में सत्ता और संगठन के बीच बेहतर तालमेल के लिए समन्वय समितियों का गठन किया है। राज्य की समन्वय समिति का अध्यक्ष प्रभारी महासचिव दीपक बावरिया को बनाया गया है तो सदस्य मुख्यमंत्री कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और अरुण यादव, राज्य सरकार के मंत्री जीतू पटवारी और मीनाक्षी नटराजन होंगी।
सत्ता और संगठन में समन्वय बनाने के लिए राज्य स्तर पर बनाई गई समिति कांग्रेस में हो रहे बदलाव की ओर इशारा कर रही है। संभवत: कांग्रेस के इतिहास में यह पहली बार हुआ है। इस नई व्यवस्था का आशय यही माना जा रहा है कि राज्य की सरकारें मनमाने तौर पर काम नहीं कर सकेंगी और उन पर परोक्ष रूप से पार्टी की कमान तो रहेगी ही, साथ में संगठन की ताकत भी बढ़ेगी। इसके अलावा संगठन में काम करने वालों की भी अहमियत बढ़ेगी।
कांग्रेस सूत्रों का कहना है कि सत्ताधारी प्रदेशों में कांग्रेस का प्रभारी महासचिव सबसे ताकतवर हो गया है। इसकी भूमिका भाजपा में संघ की ओर से भेजे गए संगठन मंत्री जैसी होगी। भाजपा संगठन में संगठन मंत्री सबसे ताकतवर होता है, जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां मुख्यमंत्री भी संगठन मंत्री की सहमति के बिना नीतिगत फैसला नहीं ले सकता। कांग्रेस शासित राज्य में इस समन्वय समिति के अस्तित्व में आने से सत्ता के हिस्सेदार बने नेताओं की मनमानी पर अंकुश लगेगा। वहीं नीतिगत फैसलों में संगठन की भी रायशुमारी रहेगी।
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