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दो जिला राजस्व अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति, यहां खबर पढ़ें
चण्डीगढ़ । हरियाणा सरकार ने दो तत्कालीन जिला राजस्व अधिकारियों (सीडीसी) महेंद्र सिंह सांगवान और नरेश श्योकंद को उनकी संदिग्ध सत्यनिष्ठा और अपने सरकारी कत्र्तव्यों का संतोषजनक निर्वहन न करने के चलते 55 वर्ष की आयु के बाद अपरिपक्व (प्रीमैच्योर) रूप से सेवानिवृत्त कर दिया है।
एक सरकारी प्रवक्ता ने यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि महेंद्र सिंह सांगवान के खिलाफ प्रासंगिक दंड एवं अपील नियमों के नियम-7 के तहत पांच आरोप पत्र थे। एक आरोप पत्र में, उप मंडल अधिकारी (नागरिक) के रूप में कार्य करते समय ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने तथा मोटर वाहनों के पंजीकरण में अनियमितताओं के आरोप थे। तीन आरोप पत्र भूमि अधिग्रहण मामलों में आरएफए दायर करने में देरी के कारण जारी किए गए थे। शेष एक आरोपपत्र जिला पंचकूला में गांव चौकी के भूमि अधिग्रहण मुआवजे के वितरण में अनियमितताओं के चलते जारी किया गया था।
नरेश श्योकंद के खिलाफ प्रासंगिक दंड एवं अपील नियमों के नियम-7 के तहत दो आरोप पत्र थे। एक आरोप पत्र भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के खाते से 47 करोड़ रुपये के गबन के अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण मुआवजे की 203.50 करोड़ रुपये राशि के संबंध में वित्तीय अनियमितता के संबंध में था। दूसरा आरोप पत्र 22 जुलाई, 2010 को बिक्री विलेख के संबंध में गलत निर्णय पारित करने और बाद में इस मामले में अतिरिक्त उपायुक्त द्वारा की गई जांच में भाग लेने में विफल रहने के संबंध में था।
एक सरकारी प्रवक्ता ने यहां यह जानकारी देते हुए बताया कि महेंद्र सिंह सांगवान के खिलाफ प्रासंगिक दंड एवं अपील नियमों के नियम-7 के तहत पांच आरोप पत्र थे। एक आरोप पत्र में, उप मंडल अधिकारी (नागरिक) के रूप में कार्य करते समय ड्राइविंग लाइसेंस जारी करने तथा मोटर वाहनों के पंजीकरण में अनियमितताओं के आरोप थे। तीन आरोप पत्र भूमि अधिग्रहण मामलों में आरएफए दायर करने में देरी के कारण जारी किए गए थे। शेष एक आरोपपत्र जिला पंचकूला में गांव चौकी के भूमि अधिग्रहण मुआवजे के वितरण में अनियमितताओं के चलते जारी किया गया था।
नरेश श्योकंद के खिलाफ प्रासंगिक दंड एवं अपील नियमों के नियम-7 के तहत दो आरोप पत्र थे। एक आरोप पत्र भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के खाते से 47 करोड़ रुपये के गबन के अतिरिक्त भूमि अधिग्रहण मुआवजे की 203.50 करोड़ रुपये राशि के संबंध में वित्तीय अनियमितता के संबंध में था। दूसरा आरोप पत्र 22 जुलाई, 2010 को बिक्री विलेख के संबंध में गलत निर्णय पारित करने और बाद में इस मामले में अतिरिक्त उपायुक्त द्वारा की गई जांच में भाग लेने में विफल रहने के संबंध में था।
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