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'पाठा की पाठशाला' अभियान के जरिए पुलिस अपनी छवि सुधारने में जुटी
अब तक चले दस्यु उन्मूलन अभियान के दौरान चित्रकूट पुलिस पर हमेशा कोल
वनवासियों के उत्पीड़न और उन्हें दस्यु संरक्षण के नाम पर फर्जी मुकदमों
में जेल भेजने के आरोप लगते रहे हैं। लेकिन अब स्थितियां बदली हुई हैं।
पुलिस ने कोल वनवासियों के बच्चों को शिक्षा की मुख्य धारा से जोड़ने के
लिए 'पाठा की पाठशाला' नामक अभियान शुरू किया है। जो बचपन जंगल में बकरी
चराने में बीतता था, अब वह पाठशालाओं में 'ककहरा' सीखने में बीते, इसकी
कोशिश की जा रही है।
इस पहल के अगुआ, जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बताते हैं कि बच्चों के दिमाग में यह बैठाना जरूरी है कि पुलिस सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करती, बल्कि वह रचनात्मक भी है। बच्चों का भविष्य शिक्षा से सुधारा जा सकता है। पुलिस अब भी दस्यु उन्मूलन में लगी है, लेकिन वह वनवासी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी प्रेरित करती है। इसके लिए दस्यु प्रभावित गांवों को लक्ष्य बनाकर 'पाठा की पाठशाला' अभियान शुरू किया गया है, और मानिकपुर के थानाध्यक्ष के. पी. दुबे को इसका प्रभारी बनाया गया है।"
उल्लेखनीय है कि चित्रकूट जिले के मानिकपुर और मारकुंडी थाना क्षेत्र के घने जंगली इलाके दस्यु प्रभावित माने जाते हैं, और यहां वनवासियों के लगभग 60 गांव हैं। इन गांवों में इस अभियान को चलाया जाना है। दो सप्ताह पहले शुरू हुआ यह अभियान स्कूल खुलने तक यानी पहली जुलाई तक चलेगा और उसके बाद अगले 15 दिनों तक इस बात का पता लगाया जाएगा कि जिन बच्चों को प्रेरित किया गया, उन पर इस अभियान का कितना असर हुआ, और वे स्कूल जा रहे हैं या नहीं।
इस पहल के अगुआ, जिले के पुलिस अधीक्षक मनोज झा बताते हैं कि बच्चों के दिमाग में यह बैठाना जरूरी है कि पुलिस सिर्फ दंडात्मक कार्रवाई नहीं करती, बल्कि वह रचनात्मक भी है। बच्चों का भविष्य शिक्षा से सुधारा जा सकता है। पुलिस अब भी दस्यु उन्मूलन में लगी है, लेकिन वह वनवासी बच्चों को स्कूल भेजने के लिए भी प्रेरित करती है। इसके लिए दस्यु प्रभावित गांवों को लक्ष्य बनाकर 'पाठा की पाठशाला' अभियान शुरू किया गया है, और मानिकपुर के थानाध्यक्ष के. पी. दुबे को इसका प्रभारी बनाया गया है।"
उल्लेखनीय है कि चित्रकूट जिले के मानिकपुर और मारकुंडी थाना क्षेत्र के घने जंगली इलाके दस्यु प्रभावित माने जाते हैं, और यहां वनवासियों के लगभग 60 गांव हैं। इन गांवों में इस अभियान को चलाया जाना है। दो सप्ताह पहले शुरू हुआ यह अभियान स्कूल खुलने तक यानी पहली जुलाई तक चलेगा और उसके बाद अगले 15 दिनों तक इस बात का पता लगाया जाएगा कि जिन बच्चों को प्रेरित किया गया, उन पर इस अभियान का कितना असर हुआ, और वे स्कूल जा रहे हैं या नहीं।
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चित्रकूट
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