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'पाठा की पाठशाला' अभियान के जरिए पुलिस अपनी छवि सुधारने में जुटी

चित्रकूट। दस्यु उन्मूलन को लेकर बेगुनाहों के उत्पीड़न के कथित आरोप झेलने वाली चित्रकूट पुलिस अब 'पाठा की पाठशाला' अभियान के जरिए अपनी छवि सुधारने की कोशिश में लगी है। पाठा के जंगलों में बसे वनवासी पुलिस के इस अभियान की तारीफ कर रहे हैं। मिनी चंबल घाटी के नाम से चर्चित बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले का पाठा जंगल दस्यु सरगनाओं के लिए कभी सुरक्षित अभयारण्य माना जाता रहा है। यहां तीन दशक तक इनामी डकैत ददुआ (शिवकुमार कुर्मी) अपनी समानांतर सरकार चला चुका है। 2007 में एसटीएफ के साथ हुई एक मुठभेड़ में वह गिरोह के 13 साथियों के साथ मारा गया था।
ददुआ की मौत के बाद ठोकिया, रागिया, बलखड़िया ने पुलिस के सामने कड़ी चुनौती पेश की। लेकिन ये सभी डकैत भी पुलिस के हाथों या गैंगवार में मारे गए। कुछ पकड़े गए और कई ने मारे जाने के भय से समर्पण कर दिया। अब पाठा के जंगलों में साढ़े छह लाख रुपये का इनामी डकैत बबली कोल ही बचा है।
ददुआ की मौत के बाद ठोकिया, रागिया, बलखड़िया ने पुलिस के सामने कड़ी चुनौती पेश की। लेकिन ये सभी डकैत भी पुलिस के हाथों या गैंगवार में मारे गए। कुछ पकड़े गए और कई ने मारे जाने के भय से समर्पण कर दिया। अब पाठा के जंगलों में साढ़े छह लाख रुपये का इनामी डकैत बबली कोल ही बचा है।
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