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छोटी काशी महोत्सव में झोल पकौड़ी के खूब लग रहे चटकारे

मंडी। छोटी काशी महोत्सव के दौरान लगाए गए फूड फैस्टिवल में लोग मंडी के पारम्पारिक व्यंजनों को खूब पसन्द कर रहे हैं। फूड फैस्टिवल में रूखे भटूरू, आलू की सब्जी, झोल पकौड़ी, चिलड़ा, माह की दाल, मक्की की रोटी, कददू का खट्टा, कचौरी, भल्ले इत्यादि पारम्पारिक व्यंजनों के स्टॉल लगाए गए हैं।
इन सभी स्टॉल पर मंडी के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने के लिए लोगों की काफी भीड़ उमड़ रही है। जब इस बारे पारंपरिक व्यंजनों का चटकारा ले रहे थाची के मनोज कुमार, कृष्ण कुमार, सुन्दरनगर की सुप्रीति, संधोल की अयोध्या भण्डारी, ऊना के राजेन्द्र कुमार, हमीरपुर के विजय राणा और पंजाब के राजकुमार से बातचीत की तो कहना है कि उन्होंने न केवल मंडी के इन पारम्पारिक व्यंजनों का स्वाद पहली बार चखा बल्कि खाने के बाद इनकी खूब तारीफ भी की। इनका कहना है कि इस तरह के आयोजनों से वर्तमान पीढ़ी को हमारे पारंपरिक व्यजंनों को जानने व चखने का अवसर मिलता है।
संधोल की रहने वाली अयोध्या देवी का कहना है कि झोल पकौड़ी रियासत काल के समय का पकवान है। राजा-महाराजा भी इस व्यंजन का स्वाद बड़े चाव के साथ चखते थे। बदलते वक्त में फास्ट फूड के दौर में हमारे इन पारम्पारिक व्यंजनों की नई पीढ़ी तक पहुंच नहीं हो पा रही है लेकिन इस तरह के आयोजनों से न केवल इन पारम्पारिक व्यंजनों का प्रचार-प्रसार होगा बल्कि इन्हें जीवित रखने की नई किरण जागृत हुई है। साथ ही कहना है कि इन व्यंजनों को तैयार करने वाले स्थानीय लोगों की आर्थिकी भी सुदृढ़ होगी।
इन सभी स्टॉल पर मंडी के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद चखने के लिए लोगों की काफी भीड़ उमड़ रही है। जब इस बारे पारंपरिक व्यंजनों का चटकारा ले रहे थाची के मनोज कुमार, कृष्ण कुमार, सुन्दरनगर की सुप्रीति, संधोल की अयोध्या भण्डारी, ऊना के राजेन्द्र कुमार, हमीरपुर के विजय राणा और पंजाब के राजकुमार से बातचीत की तो कहना है कि उन्होंने न केवल मंडी के इन पारम्पारिक व्यंजनों का स्वाद पहली बार चखा बल्कि खाने के बाद इनकी खूब तारीफ भी की। इनका कहना है कि इस तरह के आयोजनों से वर्तमान पीढ़ी को हमारे पारंपरिक व्यजंनों को जानने व चखने का अवसर मिलता है।
संधोल की रहने वाली अयोध्या देवी का कहना है कि झोल पकौड़ी रियासत काल के समय का पकवान है। राजा-महाराजा भी इस व्यंजन का स्वाद बड़े चाव के साथ चखते थे। बदलते वक्त में फास्ट फूड के दौर में हमारे इन पारम्पारिक व्यंजनों की नई पीढ़ी तक पहुंच नहीं हो पा रही है लेकिन इस तरह के आयोजनों से न केवल इन पारम्पारिक व्यंजनों का प्रचार-प्रसार होगा बल्कि इन्हें जीवित रखने की नई किरण जागृत हुई है। साथ ही कहना है कि इन व्यंजनों को तैयार करने वाले स्थानीय लोगों की आर्थिकी भी सुदृढ़ होगी।
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