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चरस माफिया के कारोबार में महिलाओं का दखल, छ: साल में 33 गिरफ्तार
कुल्लू (धर्मचंद यादव)। देवभूमि कुल्लू घाटी जहां पिछले लम्बे समय से काले सोने (चरस) के लिए कुख्यात होती जा रही है वहीं अब चरस माफिया में पिछले कुछ अरसे से महिलाओं की मौजूदगी से चरस के कारोबार में नए अंदाज का आगाज भी हुआ है। उल्लेखनीय है कि कुल्लू घाटी पिछले कई वर्षों से चरस के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम होती जा रही है। चरस के बढते कारोबार के चलते कुल्लू में खासतौर पर विदेशी चरस माफिया ने अपना जाल बिछा रखा है, जिसमें प्रारम्भिक तौर में चरस माफिया ने नेपाली मूल व स्थानीय गरीब लोगों को चरस के कोरियर के तौर पर प्रयोग किया, मगर पुलिस द्वारा लगातार की जा रही छापेमारी और नेपाली मूल के लोगों की गिरफ्तारियों के चलते चरस माफिया ने कुल्लू घाटी व नेपाल की गरीब महिलाओं को भी अपने शिकंजे में फांसना शुरू कर दिया है। जिसका खुलासा कुछ अरसे गाहेबगाहे चरस की खेप ले जाती हुई गिरफ्तार हो रही महिलाओं से होता है।
हालांकि पूर्व में महिलाओं की संलिप्तता इस धंधे में नाममात्र की थी। मगर नब्बे के दशक के बाद इस धंधे में महिलाओं का दखल बढने लगा है। पुरूष तस्करों की लगातार गिरफ्तारी को मद्देनजर रखते हुए चरस माफिया ने तस्करी का तरीका बदलते हुए स्थानीय व यहां रह रही नेपाल मूल की महिलाओं को बडे स्तर पर चरस तस्करी के काम पर लगा दिया है। पत्रकार के साथ चरस माफिया के लिए काम कर चुकी एक महिला से हुई मुलाकात में उक्त महिला ने खुलासा करते हुए बताया कि कुल्लू की दर्जनों गरीब व खास जातिवर्ग की महिलाएं चरस माफिया के लिए काम कर रही हैं।
उक्त महिला ने बताया कि वह खुद पिछले कई साल पहले चरस माफिया के लिए काम कर चुकी है। जिस दौरान वह मनाली से गोवा तक चरस की खेप लेकर गई है। उसने बताया कि गोवा तक एक किलो चरस की खेप पहुंचाने की एवज में उसे दो लाख रूपये तक मिलते थे। उसने बताया कि वह दूसरे राज्यों के अलावा हिमाचल प्रदेश में ज्वालाजी, पठानकोट, सिरमौर तथा स्वारघाट तक भी चरस की खेप पहुंचाने का काम करती रही है। पारिवारिक तौर पर कमजोर आर्थिकी वाली यह महिला विधवा है और गरीबी व बच्चों के पालन पोषण के चलते चरस तस्करी के गैर कानूनी धंधे में संलिप्त हुई थी।
उक्त महिला के मुताबिक बच्चों की परवरिश व उनकी पढाई-लिखाई का खर्चा पूरा करने के लिए मजबूरी में उसे चरस माफिया के लिए काम करना पडा। हालांकि अब यह महिला चरस तस्करी का धंधा छोड चुकी है मगर उसका कहना है कि अभी भी कुल्लू घाटी की अनेकों महिलाएं चरस तस्करी के गैर कानूनी कारोबार में संलिप्त हैए जिनमें अधिकतर गरीब व विधवाएं हैं। जिन्हें अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए चरस माफिया के साथ मिलकर चरस कोरियर के तौर पर काम करना पड रहा है।
रात्री नाकाबंदी के दौरान नहीं होती महिला पुलिस कर्मी
चरस माफिया में महिलाओं के दखल से पुलिस भी अन्जान तो नहीं है मगर रात को नाकाबंदी के दौरान तलाशी लेने के लिए पुलिस दल में कोई महिला कर्मचारी न होने की वजह से भी महिला तस्करों को काफी फायदा होता है। सूत्रों के मुताबिक महिला चरस तस्करों में नेपाली मूल की महिलाएं भी शामिल हैं, जबकि कई कम उम्र की महिलाओं पर तो पुलिस तस्कर होने का शक भी नहीं कर पाती हैए यही नहीं बल्कि यह महिलाएं अपना सामान भी दूसरी जगह रखती हैं और बस में आराम से सफर करती हुई गंतव्य पर सामान को उठाकर चलती बनती हैं।
छ: साल में गिरफ्तार हुई 33 महिलाएं
चरस माफिया के लिये कोरियर के तौर पर काम करने वाली महिलाओं में अभी तक 33 महिलाएं गिरफ्तार हो चुकी हैं हालांकि यह आंकडा केवल वर्ष 2011 से लेकर अभी तक का है। जिसमें वर्ष 2011 में सबसे ज्यादा 13 महिलाएं चरस की तस्करी करने के आरोप में गिरफ्तार हुई हैं। जबकि 2012 में 1, 2013 में 3, 2014 में 7, 2015 में भी 7 और 2016 में 2 महिलाएं चरस तस्करी के आरोप में गिरफ्तार हो चुकी हैं। महिलाओं को चरस तस्करी में शामिल होने के परिणाम आने वाले समय में काफी गम्भीर हो सकते हैं।
हालांकि पूर्व में महिलाओं की संलिप्तता इस धंधे में नाममात्र की थी। मगर नब्बे के दशक के बाद इस धंधे में महिलाओं का दखल बढने लगा है। पुरूष तस्करों की लगातार गिरफ्तारी को मद्देनजर रखते हुए चरस माफिया ने तस्करी का तरीका बदलते हुए स्थानीय व यहां रह रही नेपाल मूल की महिलाओं को बडे स्तर पर चरस तस्करी के काम पर लगा दिया है। पत्रकार के साथ चरस माफिया के लिए काम कर चुकी एक महिला से हुई मुलाकात में उक्त महिला ने खुलासा करते हुए बताया कि कुल्लू की दर्जनों गरीब व खास जातिवर्ग की महिलाएं चरस माफिया के लिए काम कर रही हैं।
उक्त महिला ने बताया कि वह खुद पिछले कई साल पहले चरस माफिया के लिए काम कर चुकी है। जिस दौरान वह मनाली से गोवा तक चरस की खेप लेकर गई है। उसने बताया कि गोवा तक एक किलो चरस की खेप पहुंचाने की एवज में उसे दो लाख रूपये तक मिलते थे। उसने बताया कि वह दूसरे राज्यों के अलावा हिमाचल प्रदेश में ज्वालाजी, पठानकोट, सिरमौर तथा स्वारघाट तक भी चरस की खेप पहुंचाने का काम करती रही है। पारिवारिक तौर पर कमजोर आर्थिकी वाली यह महिला विधवा है और गरीबी व बच्चों के पालन पोषण के चलते चरस तस्करी के गैर कानूनी धंधे में संलिप्त हुई थी।
उक्त महिला के मुताबिक बच्चों की परवरिश व उनकी पढाई-लिखाई का खर्चा पूरा करने के लिए मजबूरी में उसे चरस माफिया के लिए काम करना पडा। हालांकि अब यह महिला चरस तस्करी का धंधा छोड चुकी है मगर उसका कहना है कि अभी भी कुल्लू घाटी की अनेकों महिलाएं चरस तस्करी के गैर कानूनी कारोबार में संलिप्त हैए जिनमें अधिकतर गरीब व विधवाएं हैं। जिन्हें अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए चरस माफिया के साथ मिलकर चरस कोरियर के तौर पर काम करना पड रहा है।
रात्री नाकाबंदी के दौरान नहीं होती महिला पुलिस कर्मी
चरस माफिया में महिलाओं के दखल से पुलिस भी अन्जान तो नहीं है मगर रात को नाकाबंदी के दौरान तलाशी लेने के लिए पुलिस दल में कोई महिला कर्मचारी न होने की वजह से भी महिला तस्करों को काफी फायदा होता है। सूत्रों के मुताबिक महिला चरस तस्करों में नेपाली मूल की महिलाएं भी शामिल हैं, जबकि कई कम उम्र की महिलाओं पर तो पुलिस तस्कर होने का शक भी नहीं कर पाती हैए यही नहीं बल्कि यह महिलाएं अपना सामान भी दूसरी जगह रखती हैं और बस में आराम से सफर करती हुई गंतव्य पर सामान को उठाकर चलती बनती हैं।
छ: साल में गिरफ्तार हुई 33 महिलाएं
चरस माफिया के लिये कोरियर के तौर पर काम करने वाली महिलाओं में अभी तक 33 महिलाएं गिरफ्तार हो चुकी हैं हालांकि यह आंकडा केवल वर्ष 2011 से लेकर अभी तक का है। जिसमें वर्ष 2011 में सबसे ज्यादा 13 महिलाएं चरस की तस्करी करने के आरोप में गिरफ्तार हुई हैं। जबकि 2012 में 1, 2013 में 3, 2014 में 7, 2015 में भी 7 और 2016 में 2 महिलाएं चरस तस्करी के आरोप में गिरफ्तार हो चुकी हैं। महिलाओं को चरस तस्करी में शामिल होने के परिणाम आने वाले समय में काफी गम्भीर हो सकते हैं।
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