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सोनिया क्या कांग्रेस को पुनर्जीवित कर पाएंगी? अभी ये चुनौतियां हैं सामने
नई दिल्ली। सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) को कांग्रेस (Congress) की कमान दोबारा संभाले लगभग एक महीना हो चुका है, लेकिन पार्टी लोकसभा चुनाव के झटकों से अभी तक उबर नहीं पाई है और पार्टी के पुनर्जीवित होने की कोई स्पष्ट योजना दिख भी नहीं रही है।
हालिया लोकसभा चुनाव में 542 सीटों में सिर्फ 52 सीटें जीतने वाली देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अंदरूनी कलह से भरी पड़ी है। इसके अलावा पार्टी में दिशाहीनता भी दिखती है। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को सिर्फ 44 सीटों पर जीत मिली थी।
निराशा और बेटे द्वारा पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बीच सोनिया को 10 अगस्त को पार्टी की सर्वोच्च नियामक इकाई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
साल 2017 में अध्यक्ष नियुक्त किए गए राहुल ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
सोनिया की सबसे पहली जिम्मेदारी पार्टी में एकजुटता बनाने, इस्तीफे रोकने और महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में आगामी कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी करनी है।
सोनिया ने 12 सितंबर को पार्टी के सभी महासचिवों, प्रदेश प्रभारियों और प्रदेश अध्यक्षों के साथ बैठक की और पार्टी तथा महात्मा गांधी की विचारधारा का आह्वान करते हुए समन्वय की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने पार्टी के सभी नेताओं को न सिर्फ सोशल मीडिया पर सक्रिय होने, बल्कि जनता के बीच जाकर आर्थिक मंदी तथा अन्य विभिन्न सेक्टरों में सरकार की 'असफलताओं' पर प्रकाश डालने की सलाह दी।
पार्टी में कुछ धड़े कहते हैं कि सोनिया ने पिछले एक महीने में गलतियां सुधारने वाले कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में दुर्दशा के बाद पार्टी को पुनर्जीवित करने में वे असफल रही हैं।
पार्टी के एक नेता ने आईएएनएस से कहा, "हमें अभी तक कोई सुधारवादी योजना नहीं दिखी है। अभी तक कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया गया।"
उन्होंने कहा कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में अभी 'एक व्यक्ति, एक पद' पर निर्णय नहीं लिया गया है।
एक साथ कई पद संभालने वाले नेताओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद पर महासचिव और हरियाणा प्रभारी की भी जिम्मेदारी है। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट भी प्रदेश अध्यक्ष हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अभी तक शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी कार्यकर्ताओं के बिखर चुके मनोबल को दोबारा सुदृढ़ करने का कोई संकेत नहीं मिला है। उन्होंने कहा, "और पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए पार्टी में बड़े सुधार की जरूरत है।"
इसके अलावा पार्टी को जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां कर्नाटक, तेलंगाना, गोवा की तरह नेतृत्व परिवर्तन करने की जरूरत है। इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के बाद इस्तीफों का दौर चला था।
इन राज्यों में पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के कई विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे दिए हैं। कर्नाटक में पार्टी ने जुलाई में अपनी 14 महीने पुरानी गठबंधन सरकार भाजपा के हाथों गंवा दी, जब उसके कई विधायकों ने पाला बदल लिया।
कांग्रेस ने कहा कि इस साल जुलाई में उत्तर प्रदेश में सभी जिला इकाइयां भंग कर दी गई थीं, लेकिन उन्हें पुनर्गठित करने के लिए अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
उन्होंने कहा, "और अब उत्तर प्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। तो वहां पार्टी का नेतृत्व कौन करने वाला है?"
हालिया लोकसभा चुनाव में 542 सीटों में सिर्फ 52 सीटें जीतने वाली देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी अंदरूनी कलह से भरी पड़ी है। इसके अलावा पार्टी में दिशाहीनता भी दिखती है। साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में भी पार्टी को सिर्फ 44 सीटों पर जीत मिली थी।
निराशा और बेटे द्वारा पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ने के बीच सोनिया को 10 अगस्त को पार्टी की सर्वोच्च नियामक इकाई कांग्रेस कार्यसमिति (सीडब्ल्यूसी) की बैठक में पार्टी का अंतरिम अध्यक्ष नियुक्त किया गया।
साल 2017 में अध्यक्ष नियुक्त किए गए राहुल ने लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
सोनिया की सबसे पहली जिम्मेदारी पार्टी में एकजुटता बनाने, इस्तीफे रोकने और महाराष्ट्र, झारखंड और हरियाणा में आगामी कुछ महीनों में होने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी करनी है।
सोनिया ने 12 सितंबर को पार्टी के सभी महासचिवों, प्रदेश प्रभारियों और प्रदेश अध्यक्षों के साथ बैठक की और पार्टी तथा महात्मा गांधी की विचारधारा का आह्वान करते हुए समन्वय की जरूरत पर जोर दिया।
उन्होंने पार्टी के सभी नेताओं को न सिर्फ सोशल मीडिया पर सक्रिय होने, बल्कि जनता के बीच जाकर आर्थिक मंदी तथा अन्य विभिन्न सेक्टरों में सरकार की 'असफलताओं' पर प्रकाश डालने की सलाह दी।
पार्टी में कुछ धड़े कहते हैं कि सोनिया ने पिछले एक महीने में गलतियां सुधारने वाले कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन कुछ लोग मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में दुर्दशा के बाद पार्टी को पुनर्जीवित करने में वे असफल रही हैं।
पार्टी के एक नेता ने आईएएनएस से कहा, "हमें अभी तक कोई सुधारवादी योजना नहीं दिखी है। अभी तक कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया गया।"
उन्होंने कहा कि पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व में अभी 'एक व्यक्ति, एक पद' पर निर्णय नहीं लिया गया है।
एक साथ कई पद संभालने वाले नेताओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद पर महासचिव और हरियाणा प्रभारी की भी जिम्मेदारी है। इसी तरह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष और राजस्थान के उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट भी प्रदेश अध्यक्ष हैं।
उन्होंने आगे कहा कि अभी तक शीर्ष नेतृत्व की तरफ से पार्टी कार्यकर्ताओं के बिखर चुके मनोबल को दोबारा सुदृढ़ करने का कोई संकेत नहीं मिला है। उन्होंने कहा, "और पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों का मनोबल बढ़ाने के लिए पार्टी में बड़े सुधार की जरूरत है।"
इसके अलावा पार्टी को जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां कर्नाटक, तेलंगाना, गोवा की तरह नेतृत्व परिवर्तन करने की जरूरत है। इन राज्यों में लोकसभा चुनाव के बाद इस्तीफों का दौर चला था।
इन राज्यों में पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के कई विधायकों ने सामूहिक इस्तीफे दिए हैं। कर्नाटक में पार्टी ने जुलाई में अपनी 14 महीने पुरानी गठबंधन सरकार भाजपा के हाथों गंवा दी, जब उसके कई विधायकों ने पाला बदल लिया।
कांग्रेस ने कहा कि इस साल जुलाई में उत्तर प्रदेश में सभी जिला इकाइयां भंग कर दी गई थीं, लेकिन उन्हें पुनर्गठित करने के लिए अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है।
उन्होंने कहा, "और अब उत्तर प्रदेश में 13 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं। तो वहां पार्टी का नेतृत्व कौन करने वाला है?"
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