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बारां का डोल मेला शुरू, विमान में सवार हो प्रकृति का सौंदर्य निहारने निकले हैं भगवान

khaskhabar.com : गुरुवार, 20 सितम्बर 2018 11:25 AM (IST)
बारां का डोल मेला शुरू, विमान में सवार हो  प्रकृति का सौंदर्य निहारने निकले हैं भगवान
बारां। बारां के लोकजीवन का प्रतीक, धार्मिक भावनाओं से औतप्रोत तथा सांप्रदायिक सद्भावना का पैगाम देने वाला बारां का प्रसिद्ध डोल मेला गुरुवार को भाद्रपद शुक्ला जलझूलनी एकादशी को शुरू हो गया। शहर के विभिन्न मंदिरों के 55 विमानों की गाजे-बाजो के साथ निकलने के साथ ही मेला प्रारंभ हो जाएगा। मेले का आयोजन नगर परिषद के तत्वावधान में एक पखवाडें तक होगा।

बारां तथा इसके आसपास का बसा क्षेत्र जिसे राजस्थान के अनाज का कटोरा कहे, अथवा पांच नदियो को बहाने वाला मिनी पंजाब। या फिर बारां डोल शोभायात्रा को देखकर रामदेवरा। इस सभी का मिला जुला रूप है राजस्थान के कोटा-बीना भोपाल रेल लाइन के मध्य स्थित बारां का यह क्षेत्र। पार्वती, परवन तथा कालीसिंध नदियों के मैदानो के बीच बसा हुआ यह क्षेत्र विभिन्न आपदाओ के पश्चात जुझना और इस संघर्ष को भी पर्वो के माहौल में भुलकर मधुर मुस्कान बिखेरना जानता है।

नदियां इसका जीवन है प्रक्रति की गोद को यहां के लोगो ने संवारा भी है। यदि धनियां तथा चावल उगाकर राजस्थान का बारां जिला पूरे राजस्थान में छाया हैं, तो डोल शोभायात्रा जैसे मेले को भी आकर्षित किया है। कोटा के हाडौती संभाग का ही नही वरन पूरे राजस्थान एवं मध्यप्रदेश उ.प्र. तक के दूरदराज क्षेत्रो में ख्याति प्राप्त कर चुका है।

हाडौती के इतिहास में उल्लेख है कि बूंदी के महाराजा सुलजन हाडा ने रणथम्भोर का किला अकबर को सौप दिया था। उस समय वहां से दो देवो की मूर्तियो को लाया गया था। एक प्रतिमा रगंनाथ पीठ की तथा दूसरी कल्याणराय की थी। रंगनाथजी की मूर्ति को राजस्थान के बूंदी में स्थापित किया तो कल्याणरायजी को बारां लाया गया। बूंदी की तत्कालीन महारानी ने श्रीजी मंदिर का निर्माण कराया। बारां मे स्थित कल्याणराय श्रीजी मंदिर जहां से शोभायात्रा शुरू होती हैं, वो 600 से 700 वर्ष से भी अधिक पुराना बताया जाता हैं।

यहां गौरतलब है कि मंदिर-मस्जिद के निर्माण के दौरान बारां जिले का म.प्र. की सरहद से सटा शाहाबाद क्षेत्र औरंगजेब की छावनी बना हुआ था। इसलिए मंदिर से सटकर वहां एक जामा मस्जिद बनवाई। दोनो मंदिर मस्जिद एक दिवार से सटे है और दोनो समुदाय के लिए श्रद्वा के केन्द्र बनें। भगवान विग्रह के डोल श्रीजी मंदिर से तो मुस्लिम समुदाय के ताजिए भी यही मजिस्द से शुरू होते हें। यहीं मंदिर-मजिस्द इस शहर को सौहार्द से रहने की सीख देते हुए सद्भाव की भावना से रहने का पैगाम भी देता हैं।


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