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पद्मावती विवाद को हल करने के बजाय जानबूझकर दी गई है हवा : गहलोत
अलवर। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने मंगलवार को अलवर के बहरोड़ में जनसंपर्क किया। इस दौरान उन्होंने फिल्म पद्मावती के विवाद के संबंध में भी मीडिया से बात की।
उन्होंने कहा कि पद्मावती की अलग कहानी है। मेरा मानना है कि कला का सम्मान होना चाहिए, कलाकार का सम्मान होना चाहिए, परंतु उनको भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी जाति, धर्म या वर्ग यह महसूस नहीं करे कि हमारा अपमान हो रहा है। पद्मावती फिल्म जब विवाद में आई थी, आज भारत सरकार, राज्य सरकार किसकी है? बीजेपी की। अगर सूचना प्रसारण मंत्रालय बुलाकर बात करता, संजय लीला भंसाली से बात करता। करणी सेना के नेताओं से बात करता। फिर सेंसर बोर्ड के चेयरमैन से बात करता तो फैसला हो सकता था, परंतु क्योंकि गुजरात के चुनाव चल रहे थे, जानबूझकर इन्होंने इसको हवा दी। एक-एक करके बैन लगाए गए, एक साथ नहीं लगाए। कभी राजस्थान सरकार लगा रही है, कभी मध्यप्रदेश, कभी गुजरात। यह जानबूझकर आग लगाई गई और उसके परिणाम से आज सुप्रीम कोर्ट को सामने आना पड़ा। आप देख रहे हो देश के अंदर क्या माहौल बना, अनावश्यक तनाव का माहौल बन गया और अनावश्यक रूप से ये हालात बन गए कि सुप्रीम कोर्ट में फिर जाना पड़ा सरकार को। ये तमाम सोची समझी चालें हैं। इनको वोट लेने थे गुजरात में, इनको बताना था कि कितने आपके खैरख्वाह हैं। हकीकत ये है कि ये आग लगाते हैं, जब घाव होते हैं, अब मरहम लगा रहे हैं ये लोग। जानबूझकर। इसके अलावा कुछ भी नहीं है। चाहते तो विवाद पैदा होते ही सात दिन में विवाद समाप्त हो सकता था, यह मेरा मानना है।
उन्होंने कहा कि गुजरात चुनाव हो या आगे चुनाव हो। भाजपा जानबूझकर जातियों को लड़ाने का काम करती है। मुख्यमंत्री के अलवर में, अजमेर में, माण्डलगढ़ में जातिवाइज चार्ट निकल रहे हैं, इतने बजे कौन-कौन जातियां आएंगी, इतने बजे कौनसी जातियां आएंगी। उस रूप में ये बुला-बुलाकर भ्रमित कर रहे हैं, भड़का रहे हैं लोगों को। यह स्थिति है।
उन्होंने कहा कि पद्मावती की अलग कहानी है। मेरा मानना है कि कला का सम्मान होना चाहिए, कलाकार का सम्मान होना चाहिए, परंतु उनको भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी जाति, धर्म या वर्ग यह महसूस नहीं करे कि हमारा अपमान हो रहा है। पद्मावती फिल्म जब विवाद में आई थी, आज भारत सरकार, राज्य सरकार किसकी है? बीजेपी की। अगर सूचना प्रसारण मंत्रालय बुलाकर बात करता, संजय लीला भंसाली से बात करता। करणी सेना के नेताओं से बात करता। फिर सेंसर बोर्ड के चेयरमैन से बात करता तो फैसला हो सकता था, परंतु क्योंकि गुजरात के चुनाव चल रहे थे, जानबूझकर इन्होंने इसको हवा दी। एक-एक करके बैन लगाए गए, एक साथ नहीं लगाए। कभी राजस्थान सरकार लगा रही है, कभी मध्यप्रदेश, कभी गुजरात। यह जानबूझकर आग लगाई गई और उसके परिणाम से आज सुप्रीम कोर्ट को सामने आना पड़ा। आप देख रहे हो देश के अंदर क्या माहौल बना, अनावश्यक तनाव का माहौल बन गया और अनावश्यक रूप से ये हालात बन गए कि सुप्रीम कोर्ट में फिर जाना पड़ा सरकार को। ये तमाम सोची समझी चालें हैं। इनको वोट लेने थे गुजरात में, इनको बताना था कि कितने आपके खैरख्वाह हैं। हकीकत ये है कि ये आग लगाते हैं, जब घाव होते हैं, अब मरहम लगा रहे हैं ये लोग। जानबूझकर। इसके अलावा कुछ भी नहीं है। चाहते तो विवाद पैदा होते ही सात दिन में विवाद समाप्त हो सकता था, यह मेरा मानना है।
उन्होंने कहा कि गुजरात चुनाव हो या आगे चुनाव हो। भाजपा जानबूझकर जातियों को लड़ाने का काम करती है। मुख्यमंत्री के अलवर में, अजमेर में, माण्डलगढ़ में जातिवाइज चार्ट निकल रहे हैं, इतने बजे कौन-कौन जातियां आएंगी, इतने बजे कौनसी जातियां आएंगी। उस रूप में ये बुला-बुलाकर भ्रमित कर रहे हैं, भड़का रहे हैं लोगों को। यह स्थिति है।
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