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झारखंड में फिर से आदिवासी केंद्रित सियासत, हुई थी JMM नीत गठबंधन की जीत और BJP की हार

रांची। झारखंड विधनसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) नीत गठबंधन की जीत और पांच साल सत्ता पर काबिज रही भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार के बाद से झारखंड में एक बार आदिवासी केंद्रित सियासत की सुगबुगाहट शुरू हो गई है। भाजपा ने सत्ता खोने के बाद ही यह मान लिया था कि झारखंड में गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री का प्रयोग उसके लिए भारी साबित हुआ। कहा तो यह भी जा रहा है कि चुनाव के बाद से ही भाजपा ने एक दमदार आदिवासी चेहरे की तलाश शुरू कर दी थी।
लोकसभा चुनाव में झारखंड में जबरदस्त सफलता पाने के बाद भाजपा को आशा थी कि विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का जलवा दिखेगा, लेकिन चुनाव परिणाम से भाजपा चारों खाने चित्त हो गई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद बेचैनी में भाजपा नेतृत्व ने बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश में बाबूलाल मरांडी को अपनाने में तनिक भी देरी नहीं की।
14 साल से अलग हुए भाजपाई और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए घर वापसी में ही अपनी भलाई समझी। कहा जा रहा है कि बाबूलाल को जहां एक कार्यकर्ताओं वाली बड़ी पार्टी की दरकार थी, वहीं भाजपा को एक दमदार आदिवासी चेहरे की जरूरत थी, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा और सदन के बाहर भी टक्कर दे सके। झारखंड में बाबूलाल से अच्छा नेता इस पैमाने पर कोई नहीं टिक सकता था।
चर्चा है कि बाबूलाल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में विधानसभा में हेमंत के खिलाफ कमान संभालेंगे। भाजपा जहां चुनाव हारकर झारखंड के नब्ज को पहचान पाई, वहीं कांग्रेस ने झारखंड की सियासत को चुनाव पूर्व ही भांपकर अपने संगठन में बदलाव कर लिया था, जिसका उसे चुनाव में लाभ भी मिला।
कांग्रेस ने गैर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए अजय कुमार को चुनाव से कुछ समय पहले हटाकर आदिवासी नेता रामेश्वर उरांव को पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कमान थमाई। इसका नतीजा भी चुनाव परिणाम देखने को मिला और कांग्रेस ने पहली बार 16 सीटों पर जीत दर्ज की।
लोकसभा चुनाव में झारखंड में जबरदस्त सफलता पाने के बाद भाजपा को आशा थी कि विधानसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे का जलवा दिखेगा, लेकिन चुनाव परिणाम से भाजपा चारों खाने चित्त हो गई। विधानसभा चुनाव में हार के बाद बेचैनी में भाजपा नेतृत्व ने बड़े आदिवासी चेहरे की तलाश में बाबूलाल मरांडी को अपनाने में तनिक भी देरी नहीं की।
14 साल से अलग हुए भाजपाई और झारखंड विकास मोर्चा (झाविमो) के प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए घर वापसी में ही अपनी भलाई समझी। कहा जा रहा है कि बाबूलाल को जहां एक कार्यकर्ताओं वाली बड़ी पार्टी की दरकार थी, वहीं भाजपा को एक दमदार आदिवासी चेहरे की जरूरत थी, जो मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधानसभा और सदन के बाहर भी टक्कर दे सके। झारखंड में बाबूलाल से अच्छा नेता इस पैमाने पर कोई नहीं टिक सकता था।
चर्चा है कि बाबूलाल विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता के रूप में विधानसभा में हेमंत के खिलाफ कमान संभालेंगे। भाजपा जहां चुनाव हारकर झारखंड के नब्ज को पहचान पाई, वहीं कांग्रेस ने झारखंड की सियासत को चुनाव पूर्व ही भांपकर अपने संगठन में बदलाव कर लिया था, जिसका उसे चुनाव में लाभ भी मिला।
कांग्रेस ने गैर आदिवासी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए अजय कुमार को चुनाव से कुछ समय पहले हटाकर आदिवासी नेता रामेश्वर उरांव को पार्टी के प्रदेश नेतृत्व की कमान थमाई। इसका नतीजा भी चुनाव परिणाम देखने को मिला और कांग्रेस ने पहली बार 16 सीटों पर जीत दर्ज की।
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