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पैनेलिस्ट के मुताबिक जलियांवाला बाग़ हत्याकांड से आज़ादी की लड़ाई को मिली नई दिशा
तिवाड़ी ने कहा कि जलियांवाला बाग़ हत्याकांड कोई अचानक घटी घटना नहीं थी बल्कि यह ब्रिटिश राज द्वारा किए जा रहे ज़ुल्मों का हिस्सा था। उन्होंने बताया कि इससे पहले कूका लहर के समय 1872 में इस लहर के नेताओं को पंजाब में तोपों के आगे बांध कर उड़ा कर शहीद किया गया था। उन्होंने बताया कि माहिरों के मुताबिक बैसाखी वाले दिन हुए जलियांंवाला बाग़ हत्याकांड के दौरान निहत्थे लोगों पर 1500 से अधिक गोलियाँ चलाईं गई थीं।
गोष्ठी में हिस्सा लेते हुए प्रो. सुखदेव सिंह सोहल ने इस हत्याकांड के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला गया, जिनमें उस समय की भारतीय सेना की बनावट, ब्रिगेडियर-जनरल आर. डायर के पद और जि़म्मेदारी शामिल थे। उन्होंने 1857 की घटनाओं संबंधी भी जानकारी सांझा की। उन्होंने बताया कि जनरल डायर और लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओडवाहर दोनों आयरलैंड से सम्बन्धित थे और दोनों की सोच भी काफ़ी मिलती थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के द्वारा इस हत्याकांड सम्बन्धी काफ़ी समय बहुत सी जानकारी सार्वजनिक न होने देने के लिए अपनाए गए तरीकों संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि ऐसा होने के कारण बहुत समय इस हत्याकांड संबंधी बहुत कुछ साझा नहीं हो सका।
गोष्ठी के दौरान मनोज जोशी ने इस हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका संबंधी भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद भी इस हत्याकांड के अध्ययन सम्बन्धी जितना काम किया जाना चाहिए था, उतना काम नहीं किया गया। पैनेलिस्टस ने बताया कि अमृतसर में उस समय पर विभिन्न हिस्सों में बैन लगाया गया था परन्तु इस सम्बन्धी जलियांवाला बाग़ के नज़दीक अनाऊंसमेंट नहीं की गई थी।
कीश्वर देसाई ने कहा कि जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हिंसा की क्रूर उदाहरण है जो बताती है कि किसी बात का शांतमयी ढंग से विरोध करने वालों के मन में दहशत पैदा करने के लिए क्या-क्या किया गया। कीश्वर देसाई ने बताया कि उनकी किताब-जलियांवाला बाग़ 1919 -द रियल स्टोरी, उनको श्रद्धांजलि है जो इस हत्याकांड में मारे गए।
गोष्ठी में हिस्सा लेते हुए प्रो. सुखदेव सिंह सोहल ने इस हत्याकांड के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला गया, जिनमें उस समय की भारतीय सेना की बनावट, ब्रिगेडियर-जनरल आर. डायर के पद और जि़म्मेदारी शामिल थे। उन्होंने 1857 की घटनाओं संबंधी भी जानकारी सांझा की। उन्होंने बताया कि जनरल डायर और लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओडवाहर दोनों आयरलैंड से सम्बन्धित थे और दोनों की सोच भी काफ़ी मिलती थी। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के द्वारा इस हत्याकांड सम्बन्धी काफ़ी समय बहुत सी जानकारी सार्वजनिक न होने देने के लिए अपनाए गए तरीकों संबंधी जानकारी देते हुए कहा कि ऐसा होने के कारण बहुत समय इस हत्याकांड संबंधी बहुत कुछ साझा नहीं हो सका।
गोष्ठी के दौरान मनोज जोशी ने इस हत्याकांड के बाद महात्मा गांधी द्वारा निभाई गई भूमिका संबंधी भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद भी इस हत्याकांड के अध्ययन सम्बन्धी जितना काम किया जाना चाहिए था, उतना काम नहीं किया गया। पैनेलिस्टस ने बताया कि अमृतसर में उस समय पर विभिन्न हिस्सों में बैन लगाया गया था परन्तु इस सम्बन्धी जलियांवाला बाग़ के नज़दीक अनाऊंसमेंट नहीं की गई थी।
कीश्वर देसाई ने कहा कि जलियांवाला बाग़ हत्याकांड हिंसा की क्रूर उदाहरण है जो बताती है कि किसी बात का शांतमयी ढंग से विरोध करने वालों के मन में दहशत पैदा करने के लिए क्या-क्या किया गया। कीश्वर देसाई ने बताया कि उनकी किताब-जलियांवाला बाग़ 1919 -द रियल स्टोरी, उनको श्रद्धांजलि है जो इस हत्याकांड में मारे गए।
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