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फिल्म रिव्यू :1998 में हुए पोखरण परिक्षण की सच्चाई दिखाती हैं फिल्म...
कहानी- परमाणु की शुरूआत होती है अश्वत रैना (जॉन अब्राहम) से जो कि अनुसंधान और विश्लेषण विभाग के एक ईमानदार सिविल सेवक हैं। जो कि भारत के प्रधानमंत्री को अपने खुद के परमाणु परीक्षण के लिए राजी करने की कोशिश करते हैं। ताकि दुनिया को भारत की ताकत का अंदाजा हो सके। दुर्भाग्य से अश्वत का अधिकारी मजाक बनाते हैं और उसका आइडिया चुरा लिया जाता है।
हालांकि ये ऑपरेशन CIA की तेज-तर्रार निगरानी की वजह से फेल हो जाता है और अश्वत पर साला इल्जाम डाल कर उसे बलि का बकरा बना दिया जाता है। जिसके चलते उसका सस्पेंशन भी हो जाता है। सिस्टम से धोखा मिलने के बाद वो मसूरी में अपने परिवार के साथ समय बिताने पहुंच जाता है। 3 साल बाद, शासन में बदलाव के बाद अश्वत को नए प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव हिमांशु शुक्ला (बमन ईरानी) द्वारा वापस बुला लिया जाता है।
अश्वत को राजस्थान स्थित पोखरण के मरुस्थल में दूसरा परमाणु परिक्षण करने के लिए कहा जाता है। अतरंगी वैज्ञानिकों और अर्मी जवानों के साथ, अश्वत निकल पड़ता है भारत का गर्व बढ़ाने के लिए लेकिन उसके रास्त में रोड़ा बनते हैं CIA सेटेलाइट, पाकिस्तानी जासूस और दुविधा। पूरी कहानी जानें के लिए अब आपकों फिल्म देखनी पड़ेगी ही।
हालांकि ये ऑपरेशन CIA की तेज-तर्रार निगरानी की वजह से फेल हो जाता है और अश्वत पर साला इल्जाम डाल कर उसे बलि का बकरा बना दिया जाता है। जिसके चलते उसका सस्पेंशन भी हो जाता है। सिस्टम से धोखा मिलने के बाद वो मसूरी में अपने परिवार के साथ समय बिताने पहुंच जाता है। 3 साल बाद, शासन में बदलाव के बाद अश्वत को नए प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव हिमांशु शुक्ला (बमन ईरानी) द्वारा वापस बुला लिया जाता है।
अश्वत को राजस्थान स्थित पोखरण के मरुस्थल में दूसरा परमाणु परिक्षण करने के लिए कहा जाता है। अतरंगी वैज्ञानिकों और अर्मी जवानों के साथ, अश्वत निकल पड़ता है भारत का गर्व बढ़ाने के लिए लेकिन उसके रास्त में रोड़ा बनते हैं CIA सेटेलाइट, पाकिस्तानी जासूस और दुविधा। पूरी कहानी जानें के लिए अब आपकों फिल्म देखनी पड़ेगी ही।
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