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फिल्म समीक्षा: इमोशन्स के साथ दिल छूती है जर्सी, रुलाएगी

—राजेश कुमार भगताणी
पिछले सप्ताह बहुप्रचारित केजीएफ-2 को देखने के बाद इस सप्ताह एक और रीमेक जर्सी देखने का मौका मिला। लम्बे समय से प्रतीक्षित इस फिल्म को लेकर पूर्वानुमान बना लिया था कि यह मूल तमिल फिल्म जर्सी का मुकाबला नहीं कर पाएगी लेकिन फिल्म देखने के बाद हमें अपनी विचारधारा बदलने को मजबूर होना पड़ा। यदि फिल्म के शुरूआती 30 मिनटों को सम्पादक टेबल पर कम कर दिया जाता तो यह फिल्म अपनी शुरूआत से लेकर अन्तिम दृश्य तक आपको नहीं छोड़ सकती। विशेष रूप से फिल्म मध्यान्तर के बाद से आपको पूरी तरह से अपने साथ जकड़ लेती है। इसी हिस्से में निर्देशक ने जो भावनाओं का ज्वार दृश्यों के मार्फत उकेरा वह आपको रूला देता है। यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।
अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) एक बेहतरीन बल्लेबाज है लेकिन इसके बावजूद उसका भारतीय क्रिकेट टीम में चयन नहीं होता है। निराश होकर वह क्रिकेट खेलना ही छोड़ देता है। बीवी विद्या तलवार (मृणाल ठाकुर) और बेटा रोहित तलवार (रोनित कामरा) हैं, इसलिए नौकरी करते हैं। लेकिन उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है। जिसके चलते पति-पत्नी में तनाव बढ़ जाता है, लेकिन अर्जुन बेटे पर जान छिडक़ता है। बेटा भी बाप को क्रिकेट की दुनिया का हीरो मानता है। बेटे की खुशी के लिए अर्जुन 36 साल की उम्र में फिर से क्रिकेट खेलना शुरू करता है।
परिपक्व लगे शाहिद, मृणाल में नजर आया ठहराव
शाहिद कपूर की परिपक्वता की दाद देनी पड़ेगी। पद्मावत के बाद से वे अपने आपको पूरी तरह से किरदार के अनुरूप निखारते जा रहे हैं। कबीर सिंह इसका उदाहरण है। और अब जर्सी में उन्होंने एक बार फिर स्वयं को बेहतरीन अभिनेता सिद्ध किया है। अर्जुन तलवार के किरदार में वे ऐसे जमे हैं कि न चाहते हुए उनकी तारीफ मुँह से निकल जाती है। उन्होंने खुशी, गम, मायूसी, हताशा, बेचैनी, मोहब्बत सारे इमोशन्स को बखूबी अपने चेहरे पर अभिव्यक्त किया है। मृणाल ठाकुर ने विद्या के किरदार को एक ठहराव दिया है। हालांकि इन दोनों की कैमिस्ट्री ठीक-ठाक है। कोच के किरदार में पंकज कपूर ने जो कुछ परदे पर पेश किया वह लाजवाब है। बाल कलाकार रोनित कामरा बरबस ही दर्शकों के दिलों में बस जाता है। इस बाल कलाकार की संवाद अदायगी जबरदस्त है।
पिछले सप्ताह बहुप्रचारित केजीएफ-2 को देखने के बाद इस सप्ताह एक और रीमेक जर्सी देखने का मौका मिला। लम्बे समय से प्रतीक्षित इस फिल्म को लेकर पूर्वानुमान बना लिया था कि यह मूल तमिल फिल्म जर्सी का मुकाबला नहीं कर पाएगी लेकिन फिल्म देखने के बाद हमें अपनी विचारधारा बदलने को मजबूर होना पड़ा। यदि फिल्म के शुरूआती 30 मिनटों को सम्पादक टेबल पर कम कर दिया जाता तो यह फिल्म अपनी शुरूआत से लेकर अन्तिम दृश्य तक आपको नहीं छोड़ सकती। विशेष रूप से फिल्म मध्यान्तर के बाद से आपको पूरी तरह से अपने साथ जकड़ लेती है। इसी हिस्से में निर्देशक ने जो भावनाओं का ज्वार दृश्यों के मार्फत उकेरा वह आपको रूला देता है। यही इस फिल्म की सबसे बड़ी कामयाबी है।
अर्जुन तलवार (शाहिद कपूर) एक बेहतरीन बल्लेबाज है लेकिन इसके बावजूद उसका भारतीय क्रिकेट टीम में चयन नहीं होता है। निराश होकर वह क्रिकेट खेलना ही छोड़ देता है। बीवी विद्या तलवार (मृणाल ठाकुर) और बेटा रोहित तलवार (रोनित कामरा) हैं, इसलिए नौकरी करते हैं। लेकिन उसे नौकरी से भी हाथ धोना पड़ता है। जिसके चलते पति-पत्नी में तनाव बढ़ जाता है, लेकिन अर्जुन बेटे पर जान छिडक़ता है। बेटा भी बाप को क्रिकेट की दुनिया का हीरो मानता है। बेटे की खुशी के लिए अर्जुन 36 साल की उम्र में फिर से क्रिकेट खेलना शुरू करता है।
परिपक्व लगे शाहिद, मृणाल में नजर आया ठहराव
शाहिद कपूर की परिपक्वता की दाद देनी पड़ेगी। पद्मावत के बाद से वे अपने आपको पूरी तरह से किरदार के अनुरूप निखारते जा रहे हैं। कबीर सिंह इसका उदाहरण है। और अब जर्सी में उन्होंने एक बार फिर स्वयं को बेहतरीन अभिनेता सिद्ध किया है। अर्जुन तलवार के किरदार में वे ऐसे जमे हैं कि न चाहते हुए उनकी तारीफ मुँह से निकल जाती है। उन्होंने खुशी, गम, मायूसी, हताशा, बेचैनी, मोहब्बत सारे इमोशन्स को बखूबी अपने चेहरे पर अभिव्यक्त किया है। मृणाल ठाकुर ने विद्या के किरदार को एक ठहराव दिया है। हालांकि इन दोनों की कैमिस्ट्री ठीक-ठाक है। कोच के किरदार में पंकज कपूर ने जो कुछ परदे पर पेश किया वह लाजवाब है। बाल कलाकार रोनित कामरा बरबस ही दर्शकों के दिलों में बस जाता है। इस बाल कलाकार की संवाद अदायगी जबरदस्त है।
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