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फेफड़े के कैंसर के इलाज में टागेर्टेड और इम्यूनो थेरेपी बेहद कारगर
नई दिल्ली। फेफड़े के कैंसर के इलाज में टागेर्टेड थेरेपी बेहद कारगर साबित हो सकती है। विशेषज्ञों का मानना है कि टागेर्टेड और इम्यूनोथेरेपी से स्टेज 4 फेफड़े के कैंसर वाले रोगी भी अच्छी गुणवत्ता वाला जीवन जी रहे हैं।
नई दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) के सीनियर विशेषज्ञ डॉ. उल्लास बत्रा ने बताया कि फेफड़े के कैंसर का पता प्राय: बाद के स्टेज में ही हो पाता है। इसीलिए मात्र 15 प्रतिशत मामलों में ही इसका इलाज संभव हो पाता है। हालांकि टागेर्टेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसी रणनीतियों और नए शोध से उम्मीद की किरण दिखी है।
डॉ. बत्रा ने कहा, ‘‘ फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे अहम जोखिम कारक किसी भी रूप में धूम्रपान करना है, चाहे वह सिगरेट, बीड़ी या सिगार हो। धूम्रपान करने से फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका 15 से 30 गुना बढ़ जाती है और धूम्रपान न करने वाले लोगों की तुलना में इन व्यक्तियों के फेफड़ों के कैंसर से मरने की आशंका भी अधिक होती है। निष्क्रिय धूम्रपान यानी धूम्रपान करने वाले आसपास रहना भी बहुत हानिकारक है। अध्ययनों से पता चला है कि निष्क्रिय तंबाकू के संपर्क में आने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम 20 प्रतिशत बढ़ जाता है। फेफड़े के कैंसर के अन्य जोखिम कारक रेडॉन, एस्बेस्टस, कोयले का धुआं और अन्य रसायनों के संपर्क में रहना है। ’’
आंकड़ों के आधार पर डॉ. बत्रा ने बताया कि फेफड़े का कैंसर होने की औसत आयु 54.6 वर्ष है और फेफड़ों के कैंसर के अधिकांश रोगियों की आयु 65 वर्ष से अधिक है। इसमें यह भी ध्यान देने की बात है कि फेफड़े के कैंसर के मामले में पुरुष-महिला अनुपात 4.5 :1 है। उम्र और धूम्रपान के असर से पुरुषों में खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
ग्लोबोकैन की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में फेफड़ों के कैंसर के भारत में 67,795 नये केस दर्ज हुए। इसी दौरान फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की संख्या 63,475 रही। फेफड़े के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। आईसीएमआर के अनुसार, अगले चार वर्षों में फेफड़े के कैंसर के नए मामलों की संख्या 1.4 लाख तक पहुंच सकती है।
नई दिल्ली स्थित राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर (आरजीसीआईआरसी) के सीनियर विशेषज्ञ डॉ. उल्लास बत्रा ने बताया कि फेफड़े के कैंसर का पता प्राय: बाद के स्टेज में ही हो पाता है। इसीलिए मात्र 15 प्रतिशत मामलों में ही इसका इलाज संभव हो पाता है। हालांकि टागेर्टेड थेरेपी और इम्यूनोथेरेपी जैसी रणनीतियों और नए शोध से उम्मीद की किरण दिखी है।
डॉ. बत्रा ने कहा, ‘‘ फेफड़ों के कैंसर के लिए सबसे अहम जोखिम कारक किसी भी रूप में धूम्रपान करना है, चाहे वह सिगरेट, बीड़ी या सिगार हो। धूम्रपान करने से फेफड़ों का कैंसर होने की आशंका 15 से 30 गुना बढ़ जाती है और धूम्रपान न करने वाले लोगों की तुलना में इन व्यक्तियों के फेफड़ों के कैंसर से मरने की आशंका भी अधिक होती है। निष्क्रिय धूम्रपान यानी धूम्रपान करने वाले आसपास रहना भी बहुत हानिकारक है। अध्ययनों से पता चला है कि निष्क्रिय तंबाकू के संपर्क में आने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर का जोखिम 20 प्रतिशत बढ़ जाता है। फेफड़े के कैंसर के अन्य जोखिम कारक रेडॉन, एस्बेस्टस, कोयले का धुआं और अन्य रसायनों के संपर्क में रहना है। ’’
आंकड़ों के आधार पर डॉ. बत्रा ने बताया कि फेफड़े का कैंसर होने की औसत आयु 54.6 वर्ष है और फेफड़ों के कैंसर के अधिकांश रोगियों की आयु 65 वर्ष से अधिक है। इसमें यह भी ध्यान देने की बात है कि फेफड़े के कैंसर के मामले में पुरुष-महिला अनुपात 4.5 :1 है। उम्र और धूम्रपान के असर से पुरुषों में खतरा और ज्यादा बढ़ जाता है।
ग्लोबोकैन की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में फेफड़ों के कैंसर के भारत में 67,795 नये केस दर्ज हुए। इसी दौरान फेफड़े के कैंसर से मरने वालों की संख्या 63,475 रही। फेफड़े के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। आईसीएमआर के अनुसार, अगले चार वर्षों में फेफड़े के कैंसर के नए मामलों की संख्या 1.4 लाख तक पहुंच सकती है।
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