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अंडा-डिटर्जेंट मिश्रण में छिपा है फसल सुरक्षा का राज, नील गायों को रखेगा दूर
नीम की खली भी है कारगर
उन्होंने बताया कि नीम की खली से भी फसलों को बचाया जा सकता है। इसके लिए तीन किलो नीम की खली और तीन किलो ईंट भट्टे की राख का पाउडर बनाकर प्रति बीघा के हिसाब से छिडक़ाव करें। नील गाय खेतों में नहीं आएंगी।
फसलों को भी होगा फायदा
इतना ही नहीं, नीम खली और ईंट भट्टे की राख का छिडक़ाव करने से फसल को भी फायदा होगा। नीम की खली से कीट और रोगों की लगने की समस्या भी कम हो जाती है। इससे नील गाय खेत के आस-पास भी नहीं आती है। नीम की गंध से जानवर फसलों से दूर रहते हैं, इसका छिडक़ाव महीने या फिर पंद्रह दिनों में किया जा सकता है। खली से फसलों में अल्प मात्रा में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है और यह फसल में लगने वाले कीट-पतंगों से भी फसल को सुरक्षित रखता है। भट्टे की राख में सल्फर होती है, जिससे फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
ये भी आजमाएं
- 4 लीटर मट्ठे में आधा किलो छिला हुआ लहसुन पीसकर मिलाकर इसमें 500 ग्राम बालू डालें। इस घोल को पांच दिन बाद छिडक़ाव करें। इसकी गंध से करीब 20 दिन तक नील गाय खेतों में नहीं आएगी। इसे 15 लीटर पानी के साथ भी प्रयोग किया जा सकता है।
- 20 लीटर गोमूत्र, 5 किलोग्राम नीम की पत्ती, 2 किग्रा धतूरा, 2 किग्रा मदार की जड़, फल-फूल, 500 ग्राम तंबाकू की पत्ती, 250 ग्राम लहसुन, 150 लाल मिर्च पाउडर को एक डिब्बे में भरकर वायुरोधी बनाकर धूप में 40 दिन के लिए रख दें। इसके बाद एक लीटर दवा 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिडक़ाव करने से महीना भर तक नील गाय फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इससे फसल की कीटों से भी रक्षा होती है।
उन्होंने बताया कि नीम की खली से भी फसलों को बचाया जा सकता है। इसके लिए तीन किलो नीम की खली और तीन किलो ईंट भट्टे की राख का पाउडर बनाकर प्रति बीघा के हिसाब से छिडक़ाव करें। नील गाय खेतों में नहीं आएंगी।
फसलों को भी होगा फायदा
इतना ही नहीं, नीम खली और ईंट भट्टे की राख का छिडक़ाव करने से फसल को भी फायदा होगा। नीम की खली से कीट और रोगों की लगने की समस्या भी कम हो जाती है। इससे नील गाय खेत के आस-पास भी नहीं आती है। नीम की गंध से जानवर फसलों से दूर रहते हैं, इसका छिडक़ाव महीने या फिर पंद्रह दिनों में किया जा सकता है। खली से फसलों में अल्प मात्रा में नाइट्रोजन की आपूर्ति होती है और यह फसल में लगने वाले कीट-पतंगों से भी फसल को सुरक्षित रखता है। भट्टे की राख में सल्फर होती है, जिससे फसलों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
ये भी आजमाएं
- 4 लीटर मट्ठे में आधा किलो छिला हुआ लहसुन पीसकर मिलाकर इसमें 500 ग्राम बालू डालें। इस घोल को पांच दिन बाद छिडक़ाव करें। इसकी गंध से करीब 20 दिन तक नील गाय खेतों में नहीं आएगी। इसे 15 लीटर पानी के साथ भी प्रयोग किया जा सकता है।
- 20 लीटर गोमूत्र, 5 किलोग्राम नीम की पत्ती, 2 किग्रा धतूरा, 2 किग्रा मदार की जड़, फल-फूल, 500 ग्राम तंबाकू की पत्ती, 250 ग्राम लहसुन, 150 लाल मिर्च पाउडर को एक डिब्बे में भरकर वायुरोधी बनाकर धूप में 40 दिन के लिए रख दें। इसके बाद एक लीटर दवा 80 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिडक़ाव करने से महीना भर तक नील गाय फसलों को नुकसान नहीं पहुंचाती है। इससे फसल की कीटों से भी रक्षा होती है।
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