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वस्त्र उद्योग के साथ फड़ चित्रकला और ऐतिहासिक धरोहर के लिए पर्यटकों को लुभाता है भीलवाड़ा
—राजेश कुमार भगताणी
भीलवाड़ा भारत के राजस्थान राज्य का एक जिला है। जिले का मुख्यालय भीलवाड़ा है, जहाँ वस्त्रों का एक विस्तृत कारोबार है। कभी भीलों के गाँव के रूप में ख्यात रहा यह स्थान आज भारत की टैक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में वस्त्र उद्योग के चलते ज्यादातर आने वाले व्यवसायी होते हैं लेकिन एक बार जब वे यहाँ आ जाते हैं तो उन्हें यहाँ की बसावट, मंदिर, किले, पर्यटन के तौर पर आकर्षित करते हैं और वे भीलवाड़ा को पूरी तरह से देखे बिना वापस अपने शहरों को नहीं जा पाते हैं। राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित भीलवाड़ा सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें आंगूचा, ओझियाणा एवं हुरडा मुख्य है। भीलवाड़ा के बागोर गांव में भी खुदाई से पाषाण युगीन सभ्यता का पता चला है। यह जिला पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
भीलवाडा-उदयपुर मार्ग पर 45 मिलोमीटर दूर गंगापुर में गंगाबाई की प्रसिद्ध छतरी पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस छतरी का निर्माण सिंधिया महारानी गंगाबाई की याद में महदजी सिंधिया ने करवाया था।
राजस्थान के लोक देवता देवनारायण जी का तीर्थ स्थल भीलवाड से 55 किलोमीटर दूर खारी नदी के बायें किनारे पर स्थित है। इनका यहाँ एक भव्य मंदिर स्थित है। इसे इसके निर्माता भोजराव के नाम पर सवाईभोज कहते हैं। भीलवाड़ा घूमने के लिए आपको ज्यादा समय की जरूरत नहीं है। आप इसे अल्पावधि अर्थात् अपने सप्ताहांत के दो दिन में ही अपने परिवार के साथ घूमने का आनन्द ले सकते हैं। मंदिर, किले, ऐतिहासिक इमारतों के साथ-साथ आप वस्त्र उद्योग के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। साथ ही इस जिले के इतिहास को नजदीक से देख और जान सकते हैं।
आइए डालते हैं एक नजर भीलवाड़ा के ऐतिहासिक दस्तावेज पर—
इतिहास
भीलवाड़ा का इतिहास 11वीं शताब्दी से संबंधित है। कहा जाता है कि यहाँ पर आदिवासी जनजाति भील रहती थी, जिसने मेवाड़ के महाराणा प्रताप की मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध युद्ध में बहुत मदद की थी। इसी के आधार पर इसका नाम भीलवाड़ा पड़ा। उस समय भील राजाओं ने अपने गाँव में जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि, इस जगह की स्थापना की असल तारीख और समय का अब तक पता नहीं चल पाया है। पुष्टि के अनुसार, वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल थी जहाँ भिलाडी के नाम से जाने जाने वाले सिक्कों का खनन किया जाता था और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। वर्षों से यह राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा को देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाड़ा भूतपूर्व उदयपुर रियासत का हिस्सा था।
भीलवाड़ा भारत के राजस्थान राज्य का एक जिला है। जिले का मुख्यालय भीलवाड़ा है, जहाँ वस्त्रों का एक विस्तृत कारोबार है। कभी भीलों के गाँव के रूप में ख्यात रहा यह स्थान आज भारत की टैक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। वर्तमान में वस्त्र उद्योग के चलते ज्यादातर आने वाले व्यवसायी होते हैं लेकिन एक बार जब वे यहाँ आ जाते हैं तो उन्हें यहाँ की बसावट, मंदिर, किले, पर्यटन के तौर पर आकर्षित करते हैं और वे भीलवाड़ा को पूरी तरह से देखे बिना वापस अपने शहरों को नहीं जा पाते हैं। राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भाग में स्थित भीलवाड़ा सूती वस्त्र उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ पाषाण युगीन सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए हैं। इनमें आंगूचा, ओझियाणा एवं हुरडा मुख्य है। भीलवाड़ा के बागोर गांव में भी खुदाई से पाषाण युगीन सभ्यता का पता चला है। यह जिला पारंपरिक फड़ चित्रकला के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्ध है।
भीलवाडा-उदयपुर मार्ग पर 45 मिलोमीटर दूर गंगापुर में गंगाबाई की प्रसिद्ध छतरी पुरातात्विक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस छतरी का निर्माण सिंधिया महारानी गंगाबाई की याद में महदजी सिंधिया ने करवाया था।
राजस्थान के लोक देवता देवनारायण जी का तीर्थ स्थल भीलवाड से 55 किलोमीटर दूर खारी नदी के बायें किनारे पर स्थित है। इनका यहाँ एक भव्य मंदिर स्थित है। इसे इसके निर्माता भोजराव के नाम पर सवाईभोज कहते हैं। भीलवाड़ा घूमने के लिए आपको ज्यादा समय की जरूरत नहीं है। आप इसे अल्पावधि अर्थात् अपने सप्ताहांत के दो दिन में ही अपने परिवार के साथ घूमने का आनन्द ले सकते हैं। मंदिर, किले, ऐतिहासिक इमारतों के साथ-साथ आप वस्त्र उद्योग के बारे में पूरी जानकारी ले सकते हैं। साथ ही इस जिले के इतिहास को नजदीक से देख और जान सकते हैं।
आइए डालते हैं एक नजर भीलवाड़ा के ऐतिहासिक दस्तावेज पर—
इतिहास
भीलवाड़ा का इतिहास 11वीं शताब्दी से संबंधित है। कहा जाता है कि यहाँ पर आदिवासी जनजाति भील रहती थी, जिसने मेवाड़ के महाराणा प्रताप की मुगल सम्राट अकबर के विरुद्ध युद्ध में बहुत मदद की थी। इसी के आधार पर इसका नाम भीलवाड़ा पड़ा। उस समय भील राजाओं ने अपने गाँव में जटाऊ शिव मंदिर का निर्माण करवाया। हालांकि, इस जगह की स्थापना की असल तारीख और समय का अब तक पता नहीं चल पाया है। पुष्टि के अनुसार, वर्तमान भीलवाड़ा शहर में एक टकसाल थी जहाँ भिलाडी के नाम से जाने जाने वाले सिक्कों का खनन किया जाता था और इसी संप्रदाय से जिले का नाम लिया गया था। वर्षों से यह राजस्थान के प्रमुख शहरों में से एक के रूप में उभरा है। आजकल भीलवाड़ा को देश में टेक्सटाइल सिटी के रूप में जाना जाता है। 1948 में राजस्थान का भाग बनने से पूर्व भीलवाड़ा भूतपूर्व उदयपुर रियासत का हिस्सा था।
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