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फिल्म समीक्षा: 83 : बेहतरीन, लाजवाब और बेमिसाल, जरूर देखनी चाहिए

निर्देशक कबीर खान ने 1983 के उस लम्हे को इस शिद्दत के साथ परदे पर उतारा है जिसे देखते हुए ऐसा महसूस होता है जैसे हम स्वयं उस पल के सहभागी हैं। कबीर खान ने हिन्दी सिने इतिहास की कालजयी फिल्मों के निर्देशकों में अपना नाम लिखवाने में सफलता हासिल करने के साथ ही फिल्म को भी कालजयी फिल्मों श्रेणी में शामिल करवा लिया है। उन्होंने महान सिनेमा बनाने में सफलता प्राप्त कर ली है। यह आज के दौर की बॉलीवुड की शोले और लगान है। ढाई घंटे लम्बी इस फिल्म में एक भी पल ऐसा नहीं है जहाँ यह महसूस होता हो कि फिल्म कहीं कमजोर पड़ रही है। हालांकि मध्यान्तर से पूर्व फिल्म का ज्यादातर हिस्सा सितारों के परिचय में जाता है लेकिन इस हिस्से को इस तरह से कबीर खान ने अपने निर्देशन से परदे पर उकेरा वह कमाल का है। कबीर खान ने फिल्म में भावनाओं का जो ज्वार पैदा किया है वह दर्शकों की आँखें गीली कर देता है। दर्शक फिल्म देखते वक्त यह भूल जाता है कि वह सिनेमाघर में बैठा है।
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