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सेंसर बोर्ड ने फिर लगाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर लगाम
बहुत से लोगों के मुंह से सुना होगा समाज बदल रहा है, पर क्या वाकई में ऐसा है। आपको लगता है? चलिए फिलहाल इस पर बात करेंगे तो बहुत लंबी खिचती चली जाएगी। हम असल मुद्दे पर आते हैं। इन दिनों फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुर्का’ चर्चा का विषय बनी हुई है। चाहे वो आमजन हो या जानी-मानी हस्ती। हर कोई इस फिल्म को लेकर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। गौरतलब है कि, सेंसर बोर्ड ने 24 फरवरी को अवॉर्ड विनिंग फिल्म ‘लिपस्टिक अंडर माई बुरका’ को प्रमाण-पत्र देने से इनकार कर दिया। अलंकृता श्रीवास्तव की नारीवादी फिल्म लिपस्टिक अंडर माई बुर्का छोटे शहर की चार महिलाओं की यौन इच्छाओं के बारे में है। सेंसर बोर्ड का कहना है कि, फिल्म में ऑडियो पोर्नोग्राफी, सेक्सुअल सीन्स और अभद्र शब्दों की भरमार है। इसके अतिरिक्त यह सिर्फ समुदाय विशेष पर इंगित है जिसके चलते देश में अस्थिरता का माहौल पैदा होने की संभावना है। सीबीएफसी के चेयरमैन पहलाज निहलानी ने इस मामले पर पहले जहां खुलकर बात करने से मना कर दिया था, वहीं 25 फरवरी को उन्होंने कहा कि, लोगों और मीडिया को सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया नहीं मालूम है। उन्होंने कहा कि सीबीएफसी उनके मुताबिक काम नहीं करेगा। पहलाज ने फिल्म मेकर्स को सलाह देते हुए कहा कि, हिंदुस्तान की परंपरा को आगे रख कर फिल्म बनाएं। सेंसर बोर्ड के इस बयान को भोपाल की मुस्लिम त्योहार कमेटी मजलिसे शूरा ने फिल्म का बायकाट करने का फतवा जारी किया है।
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