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दिलीप कुमार: बॉलीवुड के ट्रेजेडी किंग
वह निश्चित रूप से, मनोज कुमार
की 1981 की रिलीज 'क्रांति' में वापस आएं। यह फिल्म अस्सी के दशक की
बॉलीवुड की चुनी हुई शैली में एक मल्टीस्टारर थी और दिलीप कुमार को ऐसे
भव्य-माउंटेड प्रोडक्शंस में तैयार लेने वाले मिले, जिन्हें हर उम्र के कई
नायकों की जरूरत थी। उन्हें सुभाष घई मल्टीस्टारर 'विधाता' (1982) और
'कर्मा' (1986) के साथ-साथ 1991 में 'सौदागर' में विशेष रूप से देखा गया
था। 'शक्ति' (1982), 'मजदूर' (1983) के रूप में दो-नायक या बहु-नायक
परियोजनाएं थी, 'मशाल' (1984) और 'दुनिया' (1984) एक अभिनेता के रूप में
उनके अंतिम चरण को चिह्न्ति करते हैं, जिसकी परिणति 1998 में 'किला' के साथ
हुई थी।
पांच दशक का अभिनय इस विडंबना से संतुलित है कि दिलीप कुमार ने कभी निर्देशक के रूप में कोई फिल्म रिलीज नहीं की। कहा जाता है कि अपने जीवनकाल में वह दो बार निर्देशन से जुड़े रहे। कहा जाता है कि उन्होंने 1966 के नाटक 'दिल दिया, दर्द लिया' का निर्देशन आधिकारिक तौर पर बताए गए निर्देशक अब्दुल रशीद कारदार के साथ किया था। हालांकि उन्हें इस परियोजना के लिए निर्देशक के रूप में श्रेय नहीं दिया जाता है। (आईएएनएस)
पांच दशक का अभिनय इस विडंबना से संतुलित है कि दिलीप कुमार ने कभी निर्देशक के रूप में कोई फिल्म रिलीज नहीं की। कहा जाता है कि अपने जीवनकाल में वह दो बार निर्देशन से जुड़े रहे। कहा जाता है कि उन्होंने 1966 के नाटक 'दिल दिया, दर्द लिया' का निर्देशन आधिकारिक तौर पर बताए गए निर्देशक अब्दुल रशीद कारदार के साथ किया था। हालांकि उन्हें इस परियोजना के लिए निर्देशक के रूप में श्रेय नहीं दिया जाता है। (आईएएनएस)
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