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Maha Shivratri : 21 फरवरी को है महाशिवरात्रि, जानें क्या है महत्व और इससे जुड़ी पौराणिक कथाएं
शिवरात्रि के बारे में हमारे वेद, पुराणों में बताया गया है कि जब
समुद्र मंथन हो रहा था, उस समय समुद्र से चौदह रत्न प्राप्त हुए थे। उन
रत्नों में हलाहल भी था, जिसकी गर्मी से सभी देव व दानव त्रस्त होने लगे
कोई भी उसे पीने को तैयार नहीं हुआ। अंत में शिवजी ने हलाहल को पान किया।
उन्होंने लोक कल्याण की भावना से अपने को उत्सर्ग कर दिया। इसलिए उनको
महादेव कहा जाता है। जब हलाहल को उन्होंने अपने कंठ के पास रख लिया तो उसकी
गर्मी से कंठ नीला हो गया। तभी से उन्हें नीलकंठ भी कहते हैं।
शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उन्हें मारकर लोगों की रक्षा करते हैं, इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है। पुराणों में कहा जाता है कि एक समय पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर बैठी थी। उसी समय पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है, जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्याध रहता था, जो जीवों को मारकर या जीवित बेचकर अपना भरण पोषण करता था। वह किसी सेठ का रुपया रखे हुए था। उचित तिथि पर कर्ज न उतार सकने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बंद कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी त्रयोदशी थी। अत: वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने सुना।
दूसरे दिन भी उसने कथा सुनी। चतुर्दशी को उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि दूसरे दिन वह कर्ज पूरा कर देगा। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिए। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आएगा। अत: उसने पास के बेल वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बेल के नीचे शिवलिंग था। जब वह अपने छिपने का स्थान बना रहा था, उस समय बेल के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था, साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गए।
एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किंतु उसकी कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि प्रत्यूष होने पर वह स्वयं आएगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि प्रत्यूष होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थीं। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराए। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया।
शिव का अर्थ कल्याण होता है। जब संसार में पापियों की संख्या बढ़ जाती है तो शिव उन्हें मारकर लोगों की रक्षा करते हैं, इसीलिए उन्हें शिव कहा जाता है। पुराणों में कहा जाता है कि एक समय पार्वती शिवजी के साथ कैलाश पर बैठी थी। उसी समय पार्वती ने प्रश्न किया कि इस तरह का कोई व्रत है, जिसके करने से मनुष्य आपके धाम को प्राप्त कर सके? तब उन्होंने यह कथा सुनाई थी कि प्रत्यना नामक देश में एक व्याध रहता था, जो जीवों को मारकर या जीवित बेचकर अपना भरण पोषण करता था। वह किसी सेठ का रुपया रखे हुए था। उचित तिथि पर कर्ज न उतार सकने के कारण सेठ ने उसको शिवमठ में बंद कर दिया। संयोग से उस दिन फाल्गुन बदी त्रयोदशी थी। अत: वहां रातभर कथा, पूजा होती रही जिसे उसने सुना।
दूसरे दिन भी उसने कथा सुनी। चतुर्दशी को उसे इस शर्त पर छोड़ा गया कि दूसरे दिन वह कर्ज पूरा कर देगा। उसने सोचा रात को नदी के किनारे बैठना चाहिए। वहां जरूर कोई न कोई जानवर पानी पीने आएगा। अत: उसने पास के बेल वृक्ष पर बैठने का स्थान बना लिया। उस बेल के नीचे शिवलिंग था। जब वह अपने छिपने का स्थान बना रहा था, उस समय बेल के पत्तों को तोड़कर फेंकता जाता था जो शिवलिंग पर ही गिरते थे। वह दो दिन का भूखा था। इस तरह से वह अनजाने में ही शिवरात्रि का व्रत कर ही चुका था, साथ ही शिवलिंग पर बेल-पत्र भी अपने आप चढ़ते गए।
एक पहर रात्रि बीतने पर एक गर्भवती हिरणी पानी पीने आई। व्याध ने तीर को धनुष पर चढ़ाया किंतु उसकी कातर वाणी सुनकर उसे इस शर्त पर जाने दिया कि प्रत्यूष होने पर वह स्वयं आएगी। दूसरे पहर में दूसरी हिरणी आई। उसे भी छोड़ दिया। तीसरे पहर भी एक हिरणी आई उसे भी उसने छोड़ दिया और सभी ने यही कहा कि प्रत्यूष होने पर मैं आपके पास आऊंगी। चौथे पहर एक हिरण आया। उसने अपनी सारी कथा कह सुनाई कि वे तीनों हिरणियां मेरी स्त्री थीं। वे सभी मुझसे मिलने को छटपटा रही थीं। इस पर उसको भी छोड़ दिया तथा कुछ और भी बेल-पत्र नीचे गिराए। इससे उसका हृदय बिल्कुल पवित्र, निर्मल तथा कोमल हो गया।
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